आखिर चुनाव आरम्भ हो ही गए और अब विषाक्ता चुनाव प्रचार में कुछ सुधार होगा। बहुमत में कमी रह गई तो जोड़-तोड़ और खरीद-फरोख्त की दुकानें सजेंगी। सरकार मोदी की बनेगी या महागठबंधन की, यह कह नहीं सकते परंतु बहुमत जुटाने में मशक्कत कितनी करनी होगी, यह कहा नहीं जा सकता।
चुनाव परिणाम कुछ भी हों, लेकिन प्रजातंत्र की पराजय हुई है और चुनाव सुधारों की ओर ध्यान जरूर जाएगा। आवश्यकता है चुनाव आयोग के सुझावों को ध्यान में रखते हुए चुनाव प्रक्रिया में सुधार किए जाएं। चर्चा संसदीय प्रणाली के गुण-दोषों पर भी होनी चाहिए।
समय-समय पर चुनाव आयोग ने अनेक सुझाव दिए हैं, जिन्हें मानने से चुनाव प्रक्रिया और भारतीय राजनीति पर दूरगामी प्रभाव पड़ेगा। यह सुझाव कि पार्टियों को आयकर में छूट केवल राष्ट्रीय पार्टियों को ही मिले, इससे दलों की संख्या घटेगी।
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इसे मानने में मोदी सरकार को कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिए थी और कालेधन के खिलाफ लड़ाई को बल मिलता। इससे चुनाव आयोग का काम घटेगा और सरकार का खर्चा तथा प्रशासनिक दबाव भी कम होगा। चुनाव आयोग का सुझाव कि राजनैतिक पार्टियां अपने चन्दे का ऑडिट कराएं और आयोग के पास रिपोर्ट जमा करें। ऐसा कुछ दल करते ही होंगे अन्यथा आयकर में छूट कैसे जारी रहेगी।
एक सुझाव कि निर्णय सुनाने में विलंब न हो, अब माना जा चुका है और एक ही दिन में गणना हो जाती है। फिर भी अदालती कार्यवाही चलती रहती है। एक सुझाव जोड़ा जा सकता है कि विजयी प्रत्याशी को 50 प्रतिशत से अधिक वोट प्राप्त हों जिसके लिए वोटिंग वरीयता क्रम में हो।
सांसद के चुनाव खर्च को 70 हजार की सीमा में रखा जाए, यह सीमा आवश्यकतानुसार बढ़ाई जा सकी है। पहले चुनाव खर्च सीमित होता था और एक बार अटल जी ने कहा था हम चार जीपों से चुनाव लड़ लिया करते थे। लेकिन अब तो वाहनों की गिनती करना आसान नहीं है जो प्रत्येक प्रत्याशी प्रचार में लगाता है।
देश और प्रदेशों के चुनाव अलग-अलग होने से वाहनों द्वारा प्रदूषण भी बढ़ता है और इस पर पर्यावरण मंत्रालय को भी आपत्ति होनी चाहिए। इस मामले में शासक दल फायदे में रहता है और कई बार सुनने में आया कि शोरूम से वाहन निकाल कर प्रचार में दे दिए जाते हैं और वापस वहीं पहुंच जाते हैं।
एक अन्य महत्वपूर्ण सुझाव है कि एक प्रत्याशी केवल एक ही स्थान से चुनाव लड़े। अनेक बड़े नेता कई-कई स्थानों से चुनाव लड़ते हैं, स्वयं प्रधानमंत्री मोदी और नेता जी मुलायम सिंह दो स्थानों से लड़े थे और दोनों स्थानों से जीते थे। इस प्रकार एक स्थान से त्याग पत्र देने पर उपचुनाव का अनावश्यक खर्चा बढ़ता है। खर्च की अधिकतम सीमा का लाभ दो बार लिया जाता है। इस सुझाव को मानने से एक ही हानि है कि यदि प्रत्याशी का आंकलन गलत निकला और वह हार गया तो संसद उसके योगदान से वंचित रह जाएगी।
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पार्टियों की स्थिति 2014 के चुनावों तक यह थी कि केवल सात दलों को राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त थी। इसमें सम्मिलित थीं बहुजन समाज पार्टी, भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस, सीपीआई और सीपीएम, तृणमूल कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी। इनके अलावा 48 पार्टियों को प्रान्तीय स्तर पर मान्यता थी तथा सैकड़ों पार्टियां रजिस्टर्ड तो हैं, लेकिन मान्यता नहीं है। केवल मान्यता प्राप्त दलों को आयकर का लाभ मिलता है।
चुनाव आयोग ने एक सुझाव यह भी दिया है कि जो प्रत्याशी अथवा दल गलत सूचना दें, उन्हें जुर्माना देकर छोड़ा न जाए, बल्कि दो साल की सजा हो। यदि ऐसा हुआ तो लालू यादव की तरह वे जीवन भर स्वयं चुनाव नहीं लड़ सकेंगे। आयोग ने यह विषय अधूरा छोड़ दिया क्योंकि ऐसे लोगों को राजनीति में भाग लेने अथवा कोई पार्टी पद लेने से भी वंचित करना चाहिए।
चुनाव आयोग का यह सुझाव कि पार्टियों की मान्यता रद्द करने का अधिकार आयोग का होना चाहिए, विवादास्पद है क्योंकि आयोग ही अपराध तय करेगा और वही दंड देगा। साथ ही कुछ और बदलाव लाने होंगे।