हर साल 10 करोड़ से ज्यादा लोग हो रहे डेंगू का शिकार

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
हर साल 10 करोड़ से ज्यादा लोग हो रहे डेंगू का शिकारडेंगू से यूपी और दिल्ली समेत कई प्रदेशों में लोग पीड़ित हैं।

डेंगू का नाम सुनकर तो आजकल हाथ-पैर सुन्न होने लगे हैं। हर तरफ इसी की चर्चा है। डेंगू के नाम से डरना भी लाज़मी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की ताजा रपट के अनुसार डेंगू रोग अब एक विश्वव्यापी समस्या की तरफ अग्रसर हो रहा रोग है। डेंगू रोग बड़ी तेजी से अपने पैर पसारे जा रहा है, मच्छरों से फैलने वाले इस रोग का विस्तार पिछले पचास वर्षों में 30 गुना से भी ज्यादा हुआ है। विश्व में लगभग 250 करोड़ लोग डेंगू रोगग्रस्त इलाकों में रहते हैं और प्रतिवर्ष 10 करोड़ से ज्यादा लोग इसका शिकार बन जाते हैं। मच्छरों से फैलने वाला यह रोग दरअसल एक विषाणु/ वायरस, जिसे डीईएनवी (डेंगू वायरस) कहा जाता है, की वजह से होता है।

पूरा आधुनिक औषधीय विज्ञान जगत इसकी रोकथाम और उपचार के लिए शोध में लगा हुआ और इसके वैक्सिन बनाने के लिए भी अनेक शोध कार्यक्रम संपादित किए जा रहे हैं, किंतु इस प्रक्रिया में अभी तक कोई खासी उपलब्धि नहीं हो पायी है। जब-जब ऐसी समस्याएं अपना विकराल रूप लेती हैं तो सलाहकारों की कतारें भी लग जाती है। हर कोई डेंगू से बचने के लिए दवाओं और नुस्खों को सुझा रहा है। रोचक तथ्य ये है कि डेंगू का रोगकारक वायरस चार सीरोटाईप- डीईएनवी 1-4 (बाह्य तौर पर एक जैसे दिखने वाले किंतु आंतरिक संरचना और क्रियाविधिक तौर पर थोड़ी अलग संरचनाएं) वाला होता है, और यही एक मुख्य वजह है अब तक इसके वैक्सिन बना पाने में कारगर सफलता नहीं मिल पायी है, हालांकि समय रहते रोग की पहचान और उत्तम इलाज से काफी हद तक इस रोग की भयावहता से बचा जा सकता है।

डेंगू के मरीजों को सरकारी अस्पतालों में भर्ती कराने के लिए सिफारिश करानी पड़ती है।

डेंगू रोग के बारे में जानकारी, इसके कारकों और बचाव के तरीकों का संपूर्ण प्रचार और प्रसार जितना जरूरी है उतना ही महत्वपूर्ण है आम लोगों में डेंगू की भयावहता दूर करने को लेकर जागरुकता अभियान।

साफ सुधरे परिवेश में रहन-सहन, गंदगी की समय रहते सफाई, नालियों से पानी का बेहतर निकास, पानी का किसी भी तरह का ठहराव जैसे मसलों पर तत्परता से कार्यवाही हो जिससे इन खतरनाक मच्छरों को उपजने का मौका ना मिले। डेंगू के वायरस (डीईएनवी), वेक्टर (मच्छर) और होस्ट (मनुष्य) के बीच चलने वाले डेंगू चक्र के बारे में विस्तृत जानकारी, बचाव के साधन और अन्य जानकारियों से काफी हद तक डेंगू नाम की भयावहता पर काबू पाया जा सकता है, सिर्फ इतना जरूरी है कि हम समझदारी और होश से काम ले पाएं और इस भयावहता का डटकर सामना करें। मच्छरों से निजात पाने के पारंपरिक नुस्खों को भी आजमाकर देखा जा सकता है। पातालकोट मध्यप्रदेश के आदिवासी हर्बल जानकार अपने घरों के आस-पास सिताब और तुलसी जैसे पौधे के रोपण की सलाह देते हैं। इनका मानना है कि इन पौधों की गंध मात्र से मच्छर दूर भाग जाते हैं। दक्षिण गुजरात में आदिवासी सरसों के तेल में कपूर मिलाकर शरीर पर लगाते हैं, ऐसा करने से मच्छर मनुष्य की त्वचा के नजदीक नहीं आते हैं।

पातालकोट के हर्रा का छार नामक गाँव में आदिवासी कालमेघ पौधे के काढ़े के सेवन की सलाह देते हैं। इनके अनुसार कालमेघ बुखार पर पूरी तरह से नियंत्रण करता है, साथ ही रोगी को पपीते के जूस पिलाने की भी बात की जाती है। सूखाभाँड-पातालकोट में रह रहे आदिवासी हर्बल जानकारों के अनुसार कुटकी, गुडुची, भुई-आंवला, तुलसी और गुड़ का समांगी मिश्रण डेंगू से बचाव के लिए एक बढ़िया फॉर्मुला है। डाँग- गुजरात के आदिवासी रोगियों के रक्त की अशुद्धि या प्लेटलेट्स की कमी होने पर विजयसार की छाल का काढ़ा और मेथी की भाजी का रस पिलाया करते हैं, वहीं कुछ और हर्बल जानकार गुड़ और प्याज समान मात्रा खाने की सलाह भी देते हैं।

हालांकि इस तरह के पारंपरिक उपचारों से डेंगू रोग की समाप्ति के कोई भी क्लीनिकल प्रमाण उपलब्ध नहीं है फिर भी इस ज्ञान को आढ़े हाथों लेना थोड़ी मूर्खता होगी। जहां एक ओर आधुनिक विज्ञान के पास कोई सटीक इलाज नहीं हैं वहीं इन देसी नुस्खों को नकारना ठीक नहीं। आधुनिक विज्ञान से जुड़े वैज्ञानिक इन प्राकृतिक उपायों पर और गहन शोध कर कुछ सकारात्मक परिणाम दुनिया के सामने ला सकते हैं ताकि आम जनों तक डेंगू के सफलतम उपचार के लिए कारगर दवाएं उपलब्ध हो पाएं।

(लेखक हर्बल विषयों के जानकार हैं। यह उनके निजी विचार हैं।)

  

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.