केंद्रीय कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह का लेख: किसानों के हितों के लिए कृषि संरचना का विकास

ये लेख कृषि और किसान कल्याण मंत्री राधामोहन सिंह के ब्लॉक से लिया गया है। जिसमें उन्होंने खेती की नई कार्यशैली के बारे में बताया है।
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ये लेख कृषि और किसान कल्याण मंत्री राधामोहन सिंह के ब्लॉक से लिया गया है। जिसमें उन्होंने खेती की नई कार्यशैली के बारे में बताया है।

माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के निर्देशन में गत वर्षों में कृषि और किसानों की बेहतरी के लिए जो सतत प्रयास किए गये हैं उनके उत्साहजनक और सकारात्मक परिणाम दिखने लगे हैं।

मोदी सरकार किसानों के कल्याण के लिए जिस मनोयोग से काम में जुटी है, इससे किसानों के जीवन में गुणात्मक सुधार आ रहा है। मोदी सरकार ने देश के विकास के लिए देश के सामने नई कार्यविधि, पारदर्शी कार्यशैली के नए प्रतिमान रचे हैं।

सरकार ने समयबद्ध तरीके से प्रधानमंत्री जी के कुशल मार्गदर्शन में किसान कल्याण की योजनाओं के पूर्ण क्रियान्वयन के लक्ष्यों को मिशन मोड में परिवर्तित किया है। सुशासन के नये आयामों, नवाचारों एवं सुधारवादी दृष्टिकोण से एक आधुनिक और भविष्योन्मुख भारत की नींव हमारी सरकार ने रखी है।

मोदी सरकार किसानों के मन में देश की कृषि उन्नति के लिए की गई नई पहलों के प्रति जागरूकता लाने में सफल हुई है। आज तक के कार्यकाल में किसानों एवं ग्रामीणों के जीवन स्तर में गुणात्मक परिवर्तन लाने का सतत एवं सशक्त प्रयास किया है।


राष्ट्रीय किसान कमीशन के अध्यक्ष डॉ. स्वामीनाथन जी ने तत्कालीन सरकार को वर्ष 2006 में दी गई रिपोर्ट में यह अनुशंसा की थी कि कृषि आधारित सोच के साथ-साथ किसानों के कल्याण पर भी उचित ध्यान दिया जाना चाहिए। यह किसान ही है जो कि आर्थिक बदलावों में किये गये प्रयासों को महत्वपूर्ण दिशा प्रदान करता है।

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अत: व्यवस्था में आमूल परिवर्तन हेतु कृषि में फसल उपरांत प्रसंस्करण बाजार एवं इससे संबंधित व्यवस्था पर समुचित ध्यान देना होगा। नैसर्गिक संपदाओं में लगातार क्षरण और जलवायु परिवर्तन को देखते हुए कृषि कमीशन ने विज्ञान आधारित प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन एवं सतत उत्पादन व विकास की तरफ भी ध्यान देने की बात कही थी।

अभी 6 अगस्त, 2018 को स्वयं डॉ. स्वामीनाथन ने टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित अपने लेख में कहा है, “यद्यपि राष्ट्रीय किसान आयोग रिपोर्ट वर्ष 2006 में प्रस्तुत की गई थी परंतु, जब तक प्रधानमंत्री, श्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में सरकार नहीं बनी थी तब तक इस पर बहुत काम नहीं हुआ था। सौभाग्यवश पिछले 4 वर्षों के दौरान किसानों की दशा और आय में सुधार करने के लिए कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए हैं।”

पिछले 4 वर्षों में, देश में कृषि क्षेत्र में सतत विकास करने, किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य दिलाने तथा कृषि उत्पादन लागत में कमी करने के लिए बहुत सारे प्रयास किये गये हैं। इन प्रयासों से हमारे जीवन में महत्वपूर्ण सुखदायी परिवर्तन हो रहे हैं। देशव्यापी स्वॉयल हेल्थ कार्ड स्थापित करना इसी सोच का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

नाईट्रोजन उपयोग क्षमता को बढाने के लिए और उपयोग की मात्रा तथा इससे जुडी लागत को घटाने के लिए सरकार ने कृषि में केवल नीम कोटिड यूरिया के उपयोग को अनिवार्य बनाया है। चूंकि इससे उत्पादकता में सुधार हुआ है और खेती की लागत घटी है, इससे इसके गलत उपयोग और गैर-कृषि क्षेत्र में इसके उपयोग को रोकने में भी मदद मिली है।

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सतत कृषि विकास एवं मृदा स्वास्थ्य हेतु ऑर्गेनिक खेती को परंपरागत विकास योजना के साथ जोड़ दिया गया है, जिसमें पुआल का इन-सीटू प्रबंधन भी शामिल है। प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के लागू होने से खेती के कार्यों में उचित जल प्रबंधन हो सकेगा, सरकार द्वारा उठाया गया यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण कदम है।

सरकार ने पुरानी योजनाओं के विस्तृत अध्ययन के बाद उनमें सुधार किया है तथा विश्व की सबसे बड़ी किसान अनुकूल प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना तथा मौसम आधारित फसल बीमा योजना 2016 में शुरू किया है। जिसके तहत कृषि क्षेत्र के सभी जोखिमों से सुरक्षा प्रदान की गई है।


राष्ट्रीय किसान कमीशन ने किसानों की आय बढ़ाने हेतु बहुत सारे सुधारों की संस्तुति की थी, जिसको आधार मानकर सरकार ने बहुत सारी सुधार योजनाएं लागू की हैं। Model Agricultural Land Leasing Act, 2016 राज्यों को जारी किया, जो कृषि सुधारों के संदर्भ में अत्यंत ही महत्वपूर्ण कदम है जिसके माध्यम से भू-धारकों एवं लीज प्राप्त कर्ता दोनों के हितों का ख्याल रखा गया है।

बाजार सुधार लागू करने से बाजारों में पारदर्शिता बढ़ी है। देश की राष्ट्रीय इलैक्ट्रोनिक ई-मार्केट स्कीम 2016 (ई-नाम) एक ऐसा ही एकीकृत उपाय है जो कि देश के कृषि बाजारों को एक साथ जोड़ता है। सरकार ने देश की 585 कृषि उत्पाद समितियों के अलावा भी मंडियों के बीच खुले व्यापार पर ध्यान देकर राष्ट्रीय कृषि बाजार की स्थापना की है।

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देश के वर्ष 2018 के बजट में, नई बाजार संरचना के बारे में बहुत सारी बातें कही गयी हैं, जिसकी बहुत दिनों से आवश्यकता भी थी। छोटे एवं सीमांत किसान, अपनी छोटी सी उपज को नजदीकी बाजार में बेच सकें, इसके लिए भी व्यवस्था की गयी है। 22,000 ग्रामीण बाजारों का देशभर में फैलाव, ग्रामीण कृषि मार्केट के विकास के अंतराल को कम करता है।

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नया आधारभूत ढांचा, छोटे एवं सीमांत किसान, ए.पी.एम.सी. या ई-नाम से जुड़कर अपनी छोटी-छोटी उपज को भी प्रभावशाली ढ़ंग से बेच सकेंगे। ग्रामीण कृषि बाजार स्थापित होने से किसान सीधे तौर पर उपभोक्ताओं या रिटेलर्स को अपना उत्पाद बेच सकेंगे। हम और एक मजबूत एवं सक्षम कृषि बाजार के उचित न्यायिक ढांचे का विकास हासिल कर सकें इस हेतु मोदी सरकार ने मॉडल (कृषि उत्पाभद एवं पशुधन विपणन अधिनियम 2016) बनाकर सभी प्रदेशों को दे दिया गया है तथा कृषि उत्पाद तथा पशुधन कन्ट्रेक्ट फार्मिंग एवं सेवा नियमावली 2018 भी राज्यों को लागू करने हेतु दिया गया है।

लागत से न्यूनतम 50% ज्यादा समर्थन मूल्य देने का निर्णय लेकर सरकार ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है जिससे किसानों के बड़े हितों की भरपायी हो सके। इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह है कि सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य को लागू करने के लिए भी प्रतिबद्ध है। हरित क्रांति के शुरुआत से ही सरकारी खरीद केवल धान और गेहूं तक सीमित रही है।

वैसे कभी-कभी कुछ और जिंसों की खरीदारी भी की जाती रही है। किन्तु मोदी सरकार आने के बाद दलहन एवं तिलहन की खरीदारी में भारी वृद्धि हुई है। हम सभी तरह के किसानों जिसमें दलहन, तिलहन के आलावा अन्य मोटे अनाजों के उत्पादन करने वाले किसान शामिल हैं, को अपने क्रियाकलापों में शामिल कर राज्य सरकारों के माध्यम से लाभ पहुंचायेंगे।

न्यूनतम समर्थन मूल्य पर, इन फसलों की सुनिश्चित खरीद से, इनके उगाने वाले किसानों तथा इस सेक्टर को जो कि अभी तक उपेक्षित थे, को दरों में महत्वपूर्ण वृद्धि मिलेगी। ये ऐसी फसलें हैं, जो कि जलवायु के अनुकूल हैं तथा जो भविष्य में जलवायु परिवर्तन को सहने की क्षमता रखती हैं। मा. प्रधानमंत्री जी का देश की आजादी के 75वें वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुना करने का लक्ष्य से एक बड़े उद्देश्य की प्रतिपूर्ति होगी।

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न्यूनतम समर्थन मूल्य के निर्धारण हेतु नई नीति का निर्माण कर तथा सुनिश्चित लाभ दिलाकर विभिन्न फसलों एवं भौगौलिक परिस्थितियों अनुसार, जिसमें समानता एवं किसान कल्याण शामिल है, सरकार एक नयी दिशा प्रदान कर रही है।

छह अगस्त, 2018 को स्वयं डॉ. स्वामीनाथन ने टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित लेख में कहा है कि “कृषि की आर्थिक व्यवहार्य सुनिश्चित करने के लिए एनसीएफ की सिफारिश के आधार पर लाभकारी मूल्यों की हाल ही में की गयी घोषणा महत्वपूर्ण कदम है। इस बात पर बल देने के लिए सरकार ने अपनी अधिसूचना में यह सुनिश्चित किया है कि खरीफ, 2018 से अधिसूचित फसलों का एमएसपी उत्पादन की लागत का कम से कम 150 प्रतिशत होगा और मोटे अनाज के लिए एमएसपी 150-200 प्रतिशत होगा।”


खेती के अलावा पशुपालन, मछली पालन, जलजीवों के विकास को भी सरकार ने अपनी नीतियों एवं योजनाओं में उचित प्राथमिकता दी है। राष्ट्रीय गोकुल मिशन जो कि देशी नस्लों के संरक्षण एवं विकास पर आधारित है, पर ध्यान दिया जाना समुचित कृषि विकास का अभिन्न अंग है। इससे बहुत सारे लघु एवं सीमांत किसान जिसमें भूमिहीन कृषि मजदूर शामिल हैं, और जो देशी नस्लें पालते हैं, को उचित लाभ मिल रहा है। बड़े हर्ष का विषय है कि देश में 161 देशी नस्लों का पंजीकरण किया गया है, जिसके विकास के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद क्रियाशील है।

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इसी तरह से मछली उत्पादन विकास जिसमें कि समुद्री तथा मीठे पानी की मछलियां शामिल हैं, के लिए लागू परियोजनाओं से मछुआरों के जीवन में आशातीत सुधार हो रहे हैं। मछली उत्पादन क्षेत्र ने, कृषि के सभी क्षेत्रों से ज्यादा वृद्धि दर हासिल की है।

ऐसे लघु किसान जो कि परिवार के भरण पोषण हेतु समुचित आय नहीं कमा सकते हैं, के लिए सहयोगी कृषि को बढ़ावा दिया जा रहा है। सरकार की कृषि आधारित सहयोगी योजनाएं जिसमें मधुमक्खी पालन, मशरूम उत्पादन, कृषि वानिकी एवं बांस उत्पादन आदि शामिल हैं, खेत से नैसर्गिक संपदाओं के उत्पाद से कृषि जगत में अतिरिक्त रोजगार एवं आमदनी पैदा करने में सहायता मिलेगी।

राष्ट्रीय किसान कमीशन द्वारा दी गई उत्पादकता बढाने एवं कुपोषण को दूर करने संबंधी सिफारिशों को ध्यान में रखते हुए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा केवल पिछले चार साल में फसलों की कुल 795 उन्नत किस्में न विकसित की गई हैं। जिसमें से 495 किस्में जलवायु के विभिन्न दबावो के प्रति सहिष्णु है, जिसका लाभ किसान उठा रहे हैं।

कुपोषण की समस्या जो कि लंबे समय से भारतीय समाज में व्याप्त हैं, को दूर करने की दिशा में पहली बार सरकार द्वारा ऐतिहासिक पहल की गई जिसके अंतर्गत कुल 20 बायो-फॉर्टिफाइड किस्में विकसित कर खेती के लिए जारी की गईं। सीमान्त एवं लघु किसान परिवारों की आमदनी को बढ़ाने की दिशा में पहल करते हुए कुल 45 एकीकृत कृषि प्रणाली (Integrated Farming System) मॉडल विकसित किए गए, जिनसे मृदा स्वास्थ्य, जल उपयोग प्रभावशीलता को बढ़ाया जा रहा है और साथ ही कृषि की जैव विविधता का संरक्षण किया जा रहा है।

विभिन्न राज्यों में आर्थिक दृष्टि से मूल्यांकन करने पर ये मॉडल लाभकारी पाए गए हैं। भारत सरकार द्वारा इन मॉडलों को गांव-गांव तक पहुंचाने के लिए प्रत्येक कृषि विज्ञान केन्द्र में इस मॉडल को स्थापित किया जा रहा है एवं इनके प्रदर्शन भी किये जा रहे हैं। ताकि किसान भाई इसकी सफलता को देखकर इसे अपनाने के लिए प्रेरित हों और खेती से कहीं अधिक लाभ कमा सकें।

कृषि में नीतिगत सुधारों एवं नई-नई योजनाओं को सरकार द्वारा लागू करने के लिए आवश्यकता अनुसार बजट की व्यवस्था की गयी है। पिछले वर्षों में मोदी सरकार ने ऐसी योजनाओं के क्रियान्वयन एवं मजबूती प्रदान करने हेतु. 2,11,694 करोड़ रुपए का बजटीय प्रावधान किया है। इसके अलावा भी सरकार ने डेयरी, कॉपरेटिव, मछली तथा जलजीवों के उत्पादन, पशुपालन, कृषि बाजार एवं सूक्ष्म सिंचाई के आधारभूत ढांचे एवं व्यवस्था में सुधार हेतु सक्षम कार्पस फंड बनाए हैं। इस प्रकार से सरकार ने कृषि जगत एवं किसानों के कल्याण हेतु तथा उपभोक्ताओं की अभिरुचि को ध्यान में रखकर सतत उत्पादन की तरफ आय केंद्रित दृष्टिकोण अपनाया है।

किसानों की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने देश के सामने एक लक्ष्य रखा है। यह लक्ष्य है वर्ष 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने का। देश में पहली बार किसी प्रधानमंत्री ने किसानों की समग्र भलाई और कल्यानण के लिए इस तरह का कोई लक्ष्य देशवासियों के सामने रखा है।

इस विजन के अनुसरण में कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय अगस्त 2022 में, जब हमारा देश 75वां स्वतंत्रता दिवस समारोह मना रहा होगा, उस समय तक किसानों की आय दोगुनी करने के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए गठित समिति की सिफारिशों के आधार पर ठोस कार्यनीति अपना रहा है। परिणामों का प्रकटीकरण भी हो रहा है।  (लेख- कृषि मंत्री के ब्लॉक…https://radhamohansingh.in/blog/index.html . से साभार लिया गया है) 

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