"किसान वोट अपनी समस्याओं के नाम पर नहीं, जाति और धर्म के नाम पर करता है"

"देश में राजनीति की बात आती है तो दो सबसे बड़े फैक्टर सामने आते हैं, जाति और धर्म। पिछले कुछ सालों में 8 राज्यों में हुऐ चुनाव और सर्वे से पता चला है कि अभी भी देश में 55 प्रतिशत वोटर प्रत्याशी की जाति देखकर वोट करते हैं।" भगवान मीणा का लेख

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किसान वोट अपनी समस्याओं के नाम पर नहीं, जाति और धर्म के नाम पर करता है


भगवान सिंह मीणा

देश में हमेशा किसान मुद्दा रहा है या किसानों की समस्याएं मुद्दा रही हैं, देश-प्रदेश की राजनीतिक पार्टियां किसान हितेषी होने का नाटक हमेशा से करती आई हैं। पार्टियों से बढ़कर तो इनके नेता होते हैं, जो अपने आप को किसानों का मसीहा कहते हैं, लेकिन बात जब किसान हित में काम करने की आती है तो राजनीतिक पार्टियां जाति की बात करने लगती हैं, ये सदियों से जाति का कार्ड खेलती आई हैं, जिसमें इनको सफलता भी मिलती आई है।

देश में राजनीति की बात आती है तो दो सबसे बड़े फैक्टर सामने आते हैं, जाति और धर्म। पिछले कुछ सालों में 8 राज्यों में हुऐ चुनाव और सर्वे से पता चला है कि अभी भी देश में 55 प्रतिशत वोटर प्रत्याशी की जाति देखकर वोट करते हैं। हाल में हुए सर्वे से पता चला है कि मध्य प्रदेश में यह आंकड़ा सबसे ज्यादा 65 प्रतिशत है।

चौंकाने वाली बात यह भी है कि कॉलेज की पढ़ाई कर चुके 15 से 16 प्रतिशत वोटर भी अपनी जाति के प्रत्याशी और धर्म को महत्व देते हैं। हाल में मध्य प्रदेश में चुनाव हुआ जिसका एक आंकड़ा है।

कांग्रेस ने किस जाति को कितने टिकट दिये

ओबीसी - 58 गुर्जर 4, लोधी 4, यादव 8 और सोनी 1

ब्राह्मण - 30

क्षत्रीय -32

अनुसूचित जाति - 35

अनुसूचित जनजाति - 47

मुस्लिम - 3

सिंधी - 1

सिख - 3

वैश्य -

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भाजपा ने किस जाति को कितने टिकट दिये

ओबीसी - 53, सोनी 1, जाट 2, कलार 2, दांगी 1, यादव 5, लोधी 7, किरार-कुर्मी-पटेल 12, कुशवाहा 4, मीणा 2 और पाटीदार 4

ब्राह्मण - 29

क्षत्रीय - 33

जैन - 9

वैश्य - 8

सिंधी - 1

मुस्लिम - 1

सिख - 1

इस आंकडे से अंदाजा लगाया जा सकता है कि पार्टी किस तरह से जाति के नाम पर टिकट बांटती है। राजस्थान में 2018 में हुए चुनाव में कांग्रेस और भाजपा दोनों पार्टियों ने जाट समाज के 33-33 उम्मीदवारों को टिकट दिया था। बात छत्तीसगढ़ की करते हैं तो कुल 90 सीटों में से 29 सीटें एसटी-एससी के लिए आरक्षित हैं, 59 सिटी सामान्य वर्ग में है, लेकिन जिस में से 10 सीटें पर आरक्षित वर्ग की श्रेणी वाली जातियो का कब्जा है।

भाजपा ने 14 सीटें साहू समाज के उम्मीदवारों को दी, इससे पता लगाया जा सकता है कि जाति के नाम पर कितने टिकट का बंटवारा चुनाव में होता है। मैं किसी जाति या धर्म को टिकट दिए जाने के विरोध नहीं कर रहा हूं, मैं केवल आंकड़े दिखा रहा हूं। आजादी के बाद जब देश में चुनाव आता है तो देश में दोनों पार्टियां जातिगत माहौल बनाती हैं। जब देश में जातिगत जनगणना कराई गई तो हम सब कहते थे कि समाज के हितों के लिए कराई जा रही है। पर पार्टियों का उद्देश्य तो कुछ और ही था।

लेकिन जाति के आधार पर वोट देने का माहौल रहता नहीं, बनाया जाता है। राजनीतिक पार्टियां चुनाव भी क्षेत्र में जाति के आधार पर अपने नेताओं से माहौल बना कर किया जाता है, ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न की जाती है जिससे वोटर जाति के आधार पर वोट देने को मजबूर हो जाए।

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अगर आप अपने क्षेत्र में चुनावों में जीतने वाले उम्मीदवारों और चुनाव से हुई पहले की घटनाओं के बारे में सोचेंगे तो आपको पता चल जाएगा कि किस प्रकार से जातिगत माहौल बनाया गया था। और चुनावी मुद्दा उस ओर खींचा गया था। हम बात करें छोटे चुनाव की तो जातिगत आधार पर जो आंकड़े हमारे सामने आते हैं और भी चौंकाने वाले हैं। मंडी बोर्ड के चुनाव, जिला पंचायत, जनपद पंचायत, सहकारी संस्था के चुनाव में हम देखेंगे तो जाति के आधार पर और धर्म के आधार पर वोट देने वाले का 95% तक पहुंच जाता है।


शहर और गाँव में पार्टियां अलग-अलग रणनीति पर काम करती हैं। शहर के टिकट वितरण पर जातिगत समीकरण नहीं जाता क्योंकि शहरों में बाहर से आए हुए लोग रहते हैं, जिसमें सभी जाति के लोग रहते हैं, लेकिन आप जब ग्रामीणों क्षेत्रों मे देखेंगे तो एक विशेष जाति के वोटर क्षेत्र में अधिक रहते हैं। इसलिए ऐसी जातिगत सीटों पर जाति के आधार पर उम्मीदवारों का चुनाव किया जाता है।

साल 2018 में मध्य प्रदेश में हुए चुनाव में राजधानी भोपाल में सबसे कम प्रतिशत वोट पड़े और ग्रामीण क्षेत्रों में 25 प्रतिशत से अधिक वोट पड़े। यह आंकड़ा दिखाता है कि सत्ता की चाबी गाँव से ही आती है। और भारत में सबसे अधिक किसान हैं और किसान के बिना समर्थन के देश की कोई भी पार्टी सरकार बना नहीं सकती है।

यही कारण है कि किसान का वोट किसान की समस्याओं पर देने दिया जाता ही नहीं है। चुनाव आते-आते देश में जाति और धर्म की राजनीति खड़ी कर दी जाती है। जिससे किसान अपने ही नाम पर वोट नहीं कर पाता। अपनी समस्या के नाम पर वोट नहीं कर पाता। जाति और धर्म के नाम पर वोट करने को मजबूर हो जाता है।

यही कारण है कि किसानों कि समस्याओं पर कोई भी पार्टी की सरकार काम नहीं करती है क्योंकि जब उसको वोट किसान के नहीं, एक जाति के समर्थन करने वाले का मिल रहा है तो सरकार काम किसान के लिए क्यों करे, किसान को जाति और धर्म से ऊपर उठ कर वोट करना होगा क्योंकि किसान किसी भी जाति या धर्म का हो, उसकी समस्या एक जैसी ही हैं। जब किसान, किसान बनकर वोट करेगा तो सरकार किसानों के दबाव में किसान के लिए काम करेगी।

(भगवान सिंह मीणा राष्ट्रीय किसान मज़दूर महासंघ के प्रवक्ता एवं संस्थापक सदस्य हैं।)

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