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बाढ़ संग जीने की कला: “बाढ़ पर्यवेक्षक, बाढ़ पीड़ित और बाढ़ जीवित… तीन हफ्ते की मेरी तीन मुश्किल स्थितियां”

बिहार में 17 जिलों के 30 लाख से ज्यादा लोग इन दिनों बाढ़ प्रभावित हैं। सिर्फ ग्रामीण ही नहीं शहरी इलाके भी भीषण तबाही का सामना कर रहे हैं। भागलपुर इस बार काफी प्रभावित है। यहां तक कि विश्वविद्यालय परिसर में नाव चल रही है। एक शिक्षिका और शोधार्थी का बाढ़ में अनुभव है ये लेख

‘सिल्क सिटी‘के नाम से मशहूर भागलपुर शहर दक्षिणी बिहार में गंगा किनारे बसा एक जिला हैI इस शहर में रहने वाले लोगों के लिए बाढ़ हर दो साल में आनेवाली एक सामान्य घटनाक्रम का हिस्सा हैI हालाँकि स्थानीय लोगों का कहना है कि इस साल की बाढ़ विगत कुछ वर्षों के मुकाबले सामान्य जन जीवन को अधिक असामान्य कर देने वाली है।

जलवायु परिवर्तन और इसके प्रभाव जैसी बातें जो पहले आने वाले वर्षों में विकराल स्वरूप लेने जैसी लगती थी, अब अनुमानित समय से कम में और अपेक्षाकृत अधिक डरावने ढंग से हमारे सामने हैं। बाढ़ को इस कदर नजदीक से देखने का मेरा यह पहला अनुभव था और यह क्रमशः आश्चर्य, स्वागत, आशंका और भय जैसे भावों से भर गया है। इस लेख के दो उद्देश्य हैं – पहला, अपने मन के भावों से क्रमशः परिचित होने का अनुभव साझा करना और दूसरा, शहरी बाढ़ के बहुआयामी पक्षों पर नज़र डालने की एक कोशिशI

अनुपम मिश्र (गाँधी शान्ति प्रतिष्ठान) और दिनेश मिश्र (बाढ़ मुक्ति अभियान) जैसे पारम्परिक जल ज्ञान के जानकार मानते हैं कि बाढ़ को समस्या के तौर पर देखने से बचने की जरूरत हैI हालाँकि, बाढ़ के अपने अनुभव को लिखने के दौरान आगे आने वाले दिनों में समस्याओं की आहट से मेरा मन ज़रूर आहत है।

विगत तीन सप्ताह में अपने आपको तीन भूमिकाओं में- बाढ़ पर्यवेक्षक (फ्लड आब्जर्वर), बाढ़ पीड़ित (फ्लड विक्टिम) और बाढ़ जीवित (फ्लड सरवय्वर) में देखना और महसूस करना आसान नहीं रहा है। महज कुछ सप्ताह में ये तीन भूमिकाएं अपने बदलते मनोभावों को शाब्दिक रूप देने के साथ ही अन्य बाढ़ पीड़ित लोगों के साथ अपने को एकाकार रूप में महसूस करना भी हैI

शहरी बाढ़ के आने पर किस तरह हर दिन एक नए अनुभव के तौर पर नयी समस्याओं और उनके समाधान पर विचार करने को विवश करता है, यह लेख शायद स्थिति का अनुमान लगाने में मदद कर सके।

नाव पर तिलक मांझी यूनिवर्सिटी भागलपुर के शिक्षक। फोटो साभार- डॉ. रुचि श्री

भागलपुर का तिलक माझी विश्वविद्यालय शहर के नाथनगर क्षेत्र में स्थित यह विश्विद्यालय गंगा के बेहद क़रीब है और स्थानीय लोग इसे “डूब का इलाका” कहते हैं। अगस्त महीने के पहले सप्ताह में मैंने पहली बार बाढ़ को नजदीक आते देखना शुरु किया। साइकिल से विश्वविद्यालय जाने के क्रम में लालबाग प्रोफेसर कॉलनी से महज एक किलोमीटर दूर स्थित दिलदारपुर गाँव (दियारा क्षेत्र में स्थित और हर साल बाढ़ आने के लिए मजबूर और मशहूर) की तरफ से पानी बढ़ना शुरू हुआ। घर से बस 300 मीटर दूरी पर नाव को देखना और साथ ही बाढ़ प्रभावित गाँव के लोगों का सुरक्षित स्थानों में पलायन करते देखना मुझे विस्मय और चिंता के मिश्रित भाव से भर रहा था। हालाँकि, एक सप्ताह के अन्दर यह ग्रामीण बाढ़ अब शहरी बाढ़ का रूप ले चुकी थी और एक नाव प्रोफेसर कॉलोनी के अन्दर थी।

शोध इस तरह जीवन में उतर आएगा और मैं ख़ुद बाढ़ पीड़ित के रूप में अपनी कहानी लिखूँगी यह कुछ दिनों पहले तक कल्पना से परे था। बाढ़ से नहीं घबराने के मेरे मंसूबे लगातार कमजोर पड़ रहे थे। पहले दिन जब सायकिल कि बजाय नाव से पढ़ाने जाना पड़ा तो ‘बाढ़ संग जीने की कला की क़वायद’ मन में थी, एकाध फोटो फेसबुक पर डालते समय तनिक ध्यान नहीं था कि अगले दो-तीन दिन में जीवन इतना असामान्य हो जायेगा।

भागलपुर की यूनिवर्सिटी परिसर में भरा पानी। 

मेरी छः साल की बेटी मानवी के लिए नाव और बाढ़ दोनों ही बेहद रोमांचक अनुभव थे जबकि मेरा मन डर और आशंका से व्याप्त था।

यहाँ बाढ़ पर विमर्श के विस्तार में जाना संभव नहीं पर शहरी बाढ़ के तीन चार मोटे बिन्दुओं पर नज़र डालने की कोशिश करते हैं- पहली समस्या आयी पानी और बिजली कीI पूरे मोहल्ले का केंद्रीकृत वाटर सप्लाई होने से जैसे ही बाढ़ पानी मोटर के पाइप तक पहुँच गई, मोटर चलना और टंकी में पानी आना बंद और साथ ही कभी भी बिजली चले जाने की आशंका भीI

दूसरी समस्या थी बाढ़ के पानी में कई तरह के कीड़े, बिच्छू तथा सांप आदि को रेंगते देखनाI पानी में कचरा और ख़ासकर अंतहीन प्लास्टिक (बोतल, पॉलिथीन, आदि) बड़ी मात्रा में तैर रहे थे और दुर्गन्ध तथा गंदगी का आलम दिन-ब-दिन मुश्किल होता गयाI भूतल पर रह रहे लोगों के घरों में पानी आ जाने से हो रही परेशानी को देखकर यह एक दैवीय कृपा से कम नहीं लगा कि मैं मकान के दूसरे तल पर रहती हूँI सचमुच, जब कई बार मन घबरा रहा होता है तो ना जाने कैसी छोटी छोटी बातें मन को कहीं फुसलाये रखने के काम आती है।

भूतल (Ground Floor) के निवासियों द्वारा अपने सामानों के बचाव के लिए ऊपर के तल पर ख़ाली घरों में रखवाने से लेकर कुछ लोगों द्वारा कॉलोनी से बाहर किराये पर घर लेते देखना दुखद थाI कई लोगों ने वापस क्वार्टर में वापस आकर नहीं रहने का फैसला लियाI तात्कालिक सुरक्षा के लिए लोग विश्वविद्यालय के अतिथि गृह में रहने के लिए विवश थेI

मैंने भी एक सप्ताह के लिए पटना जाकर रहने का निर्णय लिया और स्टेशन पर पहुँचकर पता चला रेलवे ट्रैक पर पानी आ जाने से अब कुछ दिनों तक रेल सेवा बाधित रहेगीI फिर किसी तरह नवगछिया के रास्ते दूसरे दिन ट्रेन लेकर पटना पहुँच पाईI इस पूरे क्रम में बाढ़ से हुई शारीरिक और मानसिक यातना से मैं बीमार हो गयीI

आने वाले दिनों की अनिश्चितता ने मन में उथल-पुथल मचा रखी थीI एक सप्ताह बाद वापस आने के पहले अपनी कमजोरी और भागलपुर में स्थिति असामान्य होने के मद्देनजर बेटी को उसके दादा दादी के पास भेजने का निर्णय लेना उचित जान पड़ाI बाढ़ के दूरगामी प्रभाव सामने थेI वापस आने पर तीन चार दिन कॉलोनी से बाहर अपने दोस्तों के घर शरण लेनी पड़ीI

अंत में, इस लेख के बहाने मन में आता है कि बाढ़ एक तरफ अमीर और गरीब का भेद मिटा देता है तो दूसरी तरफ ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के भाव कोI भागलपुर के शहरी बाढ़ के अनुभव में मैंने विस्थापन से लेकर रेलवे सेवा बाधित होने और पीने के पानी जैसी समस्याओं का सामना किया और इस पूरे क्रम में बिहार में बाढ़ के लगभग हर साल आने वाली वाली घटना पर सोचती रहीI

शायद यह कहना गलत नहीं होगा कि जल सम्बन्धी विषयों पर शोध करना एक बात है और बाढ़ का सामना करने की हिम्मत बनाना नितांत अलग बातI जीवन में अनुभव की बड़ी भूमिका होती है और इस बार बाढ़ को इतने करीब से देखना मिश्रित भावों से भर गया हैI उम्मीद है, बिहार में अगली बाढ़ इतनी भयानक ना हो और हम इस बार से सीख लेकर ज्यादा तैयारी के साथ समाज, व्यक्ति और राज्य के बीच बाढ़ के बहाने सामंजस्य की पहल कर सकेंI

लेखिका- डॉ. रुचि श्री, तिलका माझी भागलपुर विश्वविद्यालय (बिहार) के स्नातकोत्तर राजनीति विज्ञान विभाग में सहायक प्राध्यापिका हैं. लगभग पंद्रह सालों से पानी की राजनीति के विभिन्न आयामों (निजीकरण, सामाजिक आन्दोलन, नदी, बाढ़, आदि) पर शोध एवं लेखन कर रही हैं।

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