मनोज पाठक
बिहार सरकार महात्मा गांधी के चंपारण सत्याग्रह के 100 साल पूरे होने पर चंपारण शताब्दी समारोह के जरिए कई कार्यक्रमों का आयोजन कर गांधी के संदेश और विचारों को गाँव-गाँव तक पहुंचाने का प्रयास कर रही है, लेकिन गांधी का सपना तभी पूरा होगा, जब सभी भूमिहीनों को भूमि उपलब्ध हो जाएगी।
सौ साल पहले महात्मा गांधी किसानों को अन्याय से मुक्ति दिलाने के लिए अप्रैल, 1917 में चंपारण पहुंचे थे। यहां के आंदोलन के बाद ही मोहनदास करमचंद गांधी से ‘महात्मा गांधी’ कहलाए। गांधी के इस आंदोलन से शुरू हुई प्रक्रिया जमींदारी उन्मूलन तक पहुंची थी।
प्रसिद्ध गांधीवादी डॉ़ एस़ एऩ सुब्बाराव ने कहा, “चंपारण सत्याग्रह का संदेश 100 साल बाद आज ज्यादा प्रासंगिक हो गया है। आज जमीन पूंजीपतियों के निशाने पर हैं। बिहार जैसे राज्य में जमींदारी उन्मूलन के बाद भूमि सुधार का काम ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। बड़े-बड़े जमीन मालिकों के पास अब भी फर्जी नामों पर जमीन है।”
उन्होंने कहा कि ‘सबका साथ सबका विकास’ और ‘न्याय के साथ विकास’ के सरकारी जुमलों के बीच बिहार में छह लाख लोग भूमिहीन हैं। ये आवास के हक से वंचित हैं। सुब्बाराव का कहना कि भूमि का सवाल हल न होना हिंसा का सबसे बड़ा कारण है। ‘चंपारण सत्याग्रह शताब्दी’ के अवसर पर आयोजित एक समारोह में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का संबोधन शराबबंदी व फरक्का बराज पर ही केंद्रित रहा। भूमि या गांधी के दूसरे विचारों के संदर्भ में उनका कोई स्पष्ट दृष्टिकोण नहीं झलका।
भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय के सामाजिक जाति गणना के आंकड़ों के मुताबिक, बिहार के कुल एक करोड़ 78 लाख 29 हजार 66 परिवारों में से 54 प्रतिशत भूमिहीन हैं। इसी तरह बिहार भूदान यज्ञ समिति को 2,32,139 दानपत्रों के माध्यम से 6,48,593 एकड़ भूमि दान में मिली। इसमें 1,03,485 एकड़ भूमि अभी भी अयोग्य भूमि में सम्पुष्ट भूमि श्रेणी के अंतर्गत बची हुई है, जिसे भूमिहीनों के बीच वितरित किया जाना बाकी है।
बिहार में ‘ऑपरेशन भूमि दखल देहानी’ के अंतर्गत आजादी के बाद से राज्य में अब तक 23,77,763 परिवारों को भूमि का पर्चा दिया गया था, लेकिन उसमें से मात्र 16,75,720 परिवारों को भूमि पर कब्जा मिला, जबकि 1,47,226 परिवारों को कब्जा नहीं मिला और 5,00,564 परिवारों के बारे में रिकार्ड और भूमि की जानकारी उपलब्ध नहीं है।
प्रसिद्ध गांधीवादी पी़ वी़ राजगोपाल का कहना है, “पहचान और स्वाभिमान के लिए भूमि का मालिकाना हक जरूरी है। राज्य के हर कमजोर वर्ग के पास भी अपना घर और अपनी जमीन हो, इसके लिए सबको जागरूक होना पड़ेगा।”वह नरेंद्र मोदी के मुख्यमंत्री रहते गुजरात के एक वाकये को याद करते हुए कहते हैं, “इस देश में इस तरह के भी कानून हैं, जो उद्योगपतियों को एक रुपये प्रति एकड़ की दर पर जमीन उपलब्ध कराते हैं, मगर गरीबों को नहीं।”
बिहार के राजस्व व भूमि सुधार विभाग के मंत्री मदन मोहन झा का दावा है कि सरकार कमजोर वर्ग की भूमि समस्याओं को लेकर चिंतित है। इसके लिए सरकार ने कई कदम भी उठाए हैं और उठा रही है। मंत्री की बातों से इतर सर्व सेवा संघ के अध्यक्ष महादेव विद्रोही का कहना है कि आज भी गांधी का ‘अंतिम जन’ जगह-जगह धक्के खा रहा है। सिर्फ भूदान की बात करें तो 11 हजार एकड़ भूमि भूमिहीनों को नहीं देकर 79 संस्थाओं को दे दिया गया है। ये संस्थाएं आज कुछ लोगों की जमींदारी बनकर रह गई है।
भूमि अधिकार की लड़ाई लड़ रहे पंकज ने कहा, “बिहार भूमि सुधार कानून, 1961 की उपधारा 45बी को संशोधित कर राजस्व मंत्री ने अदालत में चल रहे दर्जनों सीलिंग के वादों को समाप्त कर दिया है। सिर्फ पश्चिमी चंपारण में 6000 एकड़ भूमि वितरण के लिए तैयार है। इस 6000 एकड़ में 5200 एकड़ भूमि हरिनगर चीनी मिल की अधिशेष भूमि है।”
पंकज का कहना है कि इन जमीनों में से 1200 एकड़ भूमि पर चंपारण सत्याग्रह के सूत्रधार राजकुमार शुक्ल के नाम पर कृषि विश्वविद्यालय की स्थापना की जानी चाहिए और बाकी जमीन भूमिहीनों के बीच बांट दी जानी चाहिए।गांधीवादी अशोक भारत का मानना है कि गांधी के केंद्र में ‘अंतिम व्यक्ति’ था, आज उसकी स्थिति को विश्लेषित करने और ठोस कदम उठाने का वक्त है, यही चंपारण सत्याग्रह शताब्दी वर्ष की सार्थकता होगी।
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)
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