ग्रामीण इलाकों से गुजर रहा था तो देखा एक के बाद एक तालाब सूखे पड़े हैं। ये वही तालाब हैं जिन्हें सरकार ने मनरेगा के अन्तर्गत जल संचय के लिए बनवाए थे। इस साल अनावृष्टि का बहाना भी नहीं चलेगा इसलिए इन पर जो खर्चा हुआ वह प्रधानों से वसूला जाना चाहिए। जब तक ऐसा नहीं होगा कागज पर सड़कें बनती रहेंगी, तालाब खुदते रहेंगे और नहरें की सफाई भी नाम की होती रहेगी। आवश्यकता है वोटों का मोह छोड़कर कड़े कदम उठाने की।
पानी के मामले में और भी कड़ाई की आवश्यकता है क्योंकि जल के बिना तो जीवन ही कठिन हो जाएगा। जल के विषय में हमारे लोगों को कुछ भ्रान्तियां हैं कि यह असीमित है अथाह है और जितना चाहेंगे जमीन के अन्दर से लेते रहेंगे। ऐसा सम्भव हो सकता है यदि सतह पर पानी का समुचित संचय हो, जमीन के अन्दर का पानी सोच समझ कर खर्च हो और अधिकाधिक मात्रा में जमीन के अन्दर जल संचय का प्रयास हो।
पृथ्वी पर जल का बजट लगभग निश्चित रहता है और ठोस, द्रव व भाप तीनों अवस्थाओं में पाया जाता है। पहाड़ों पर ठोस अवस्था में मौजूद बर्फ जब पिघलती है तो द्रव रूप में जल नदियों के माध्यम से समुद्र तक पहुंचता है। समुद्र की सतह से भाप बनकर पानी आसमान में जाता है जहां पर ठंडा होकर द्रव बनकर धरती पर गिरता है। इस वर्षाजल का कुछ भाग पहाड़ों पर रह जाता है, कुछ धरती के अन्दर भूजल के रूप में चला जाता है और बाकी सब वापस समुद्र में जाता है। इसे जलचक्र कहते हैं जो हमेशा चलता रहता है।
इस चक्र में यदि मानवजनित व्यवधान आया तो प्रकृति अपना धर्म बदल देती है और कभी अतिवृष्टि और कभी अनावृष्टि होती है। वैज्ञानिक लोग समय-समय पर ग्रीनहाउस प्रभाव, ओज़ोन परत में छेद, निर्वनीकरण जैसी बातों की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करते रहते हैं। एक मोटा सिद्धान्त है कि यदि हम प्रकृति को चैन से नहीं रहने देंगे तो प्रकृति भी हमें चैन से नहीं रहने देगी।
समुद्र सतह से उठकर मानसूनी हवाएं फिर से पहाड़ पर पानी बरसाती हैं और बर्फ बनती है। कुछ वर्षाजल अनुकूल परिस्थितियां मिलने पर जमीन के अन्दर पहाड़ी और मैदानी इलाकों में संचित हो जाता है और उसी प्रकार जमा रहता है जैसे किसान अपने लिए बक्खारी में फसल के बाद अनाज बचाकर रखता है। यह शुद्ध पानी होता है क्योंकि जमीन के अन्दर जाते हुए छन-छनकर जाता है। इस प्रकार मनुष्य के पीने के लिए पानी का यह एकमात्र स्रोत है क्योंकि समुद्र का पानी खारा है और सतह पर पानी प्रदूषित हो रहा है।
इस प्रकार धरती पर भूतलीय जल के रूप में और धरती के अन्दर भूजल के रूप में पानी उपलब्ध है। यदि समझदारी से इसका उपयोग किया जाए तो मानव जाति के लिए हमेशा ही यह पानी उपलब्ध रहेगा लेकिन दुरुपयोग करने से बूंद बूंद पानी के लिए मनुष्य तरस जाएगा। हमारे पूर्वजों ने एक मोटा नियम बनाया था कि भूजल पीने के लिए और सतह का पानी सिंचाई और पशुओं के प्रयोग के लिए होता था। अब उद्योगों और सिंचाई में अधिकाधिक भूजल के प्रयोग के कारण यह बंटवारा कठिन हो गया है फिर भी भूजल के संचय और प्रदूषण-रहित बनाए रखने का सतत प्रयास होना ही चाहिए।
हमारे देश के उत्तरी प्रान्तों में प्रचुर मात्रा में भूजल मौजूद है लेकिन दक्षिण भारत में ऐसा नहीं है। चीन जैसे अनेक देशों में भी भूजल की कमी है लेकिन उन्होंने धरती की सतह पर भरपूर जल संचय की व्यवस्था कर ली है। हमारे लिए सबसे महत्वपूर्ण बात है भूजल को प्रदूषण से बचाना क्योंकि एक बार प्रदूषित हो जाने के बाद इसे शुद्ध करना सम्भव नहीं। पानी की उपलब्धता मानव जाति के अस्तित्व का सवाल है इसी लिए कुछ लोग मानते हैं कि अगला विश्वयुद्ध पानी के लिए होगा। इससे बचने के उपाय खोजते रहना होगा।
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