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क्या हरित क्रांति ने दिया है अस्वास्थ्यकारी आहार को बढ़ावा?  

diabetes

हाल ही में एक अध्ययन में दावा किया गया है कि गरीब लोगों का तेजी से मधुमेह की चपेट में आना चेताने वाला है क्योंकि ये लोग उस वर्ग से आते हैं, जो गुणवत्तापूर्ण इलाज नहीं करवा पाते और अनाज के लिए जन वितरण प्रणाली के तहत चलने वाली राशन की दुकानों पर निर्भर करते हैं।

अधिकतर राशन की दुकानें चावल और गेहूं का वितरण कर रही हैं। उच्च कार्बोहाइड्रेट वाले ये अनाज देश में मधुमेह की एक नई और बेहद चिंताजनक लहर पैदा कर रहे हैं। हरित क्रांति और अस्वास्थ्यकर आहार के बीच के संबंध को समझने की अभी शुरुआत भर है। भारत को विश्व में मधुमेह की राजधानी कहा जाता है, यहां लगभग सात करोड़ लोग इस बीमारी से प्रभावित हैं।

लेकिन इससे भी ज्यादा चिंता की बात यह है कि अभी तक मधुमेह को अमीरों की बीमारी माना जाता था लेकिन ‘द लांसेट डायबिटीज एंड एंडोक्रिनोलॉजी’ में प्रकाशित नए शोधपत्र का कहना है कि भारत की मधुमेह की महामारी स्थानांतरित हो रही है और यह आर्थिक रूप से कमजोर समूहों को प्रभावित कर सकती है।

हरित क्रांति ने सिर्फ गेहूं और चावल की फसलों की वृद्धि को तेज किया। ये ग्लूकोज युक्त अनाज ही जन वितरण प्रणाली की रीढ़ बने और इसका नतीजा यह हुआ कि भारतीयों की एक पूरी पीढ़ी ऊर्जा के प्रमुख स्रोत के रूप में चावल और गेहूं को खाती आई है।

भारत के खानपान की पारंपरिक आदतों में बाजरा, ज्वार, रेड राइस, ब्राउन राइस को प्रमुखता दी जाती थी लेकिन जब पीडीएस ने बाजार को सस्ते पॉलिशयुक्त चावल और गेहूं से भर दिया तो न सिर्फ ये स्वास्थ्यप्रद अनाज धीरे-धीरे चलन से बाहर हो गए, बल्कि ये किसानों के लिए भी गैर लाभकारी हो गए। यह दुष्चक्र आज मधुमेह के चक्रवात को तेज कर रहा है।

शोधकर्ताओं का कहना है कि इन नतीजों से भारत जैसे देश में चिंता पैदा होनी चाहिए, क्योंकि वहां इलाज का खर्च मरीजों की जेब से जाता है। शोधकर्ता इस बीमारी से बचने के लिए रोकथाम के प्रभावी उपायों की तत्काल जरुरत को रेखांकित करते हैं। मद्रास डायबिटीज रिसर्च फाउंडेशन की उपाध्यक्ष और इस अध्ययन की प्रमुख लेखिका आर एम अंजना ने कहा, ‘‘यह चलन गहरी चिंता का विषय है क्योंकि यह कहता है कि मधुमेह की महामारी उन लोगों तक फैल रही है, जो इसके प्रबंधन के लिए धन खर्च करने का बहुत कम सामर्थ्य रखते हैं।’’

इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च- इंडिया डायबिटीज का अध्ययन भारत में मधुमेह के अध्ययन का राष्ट्रीय तौर पर सबसे बड़ा प्रतिनिधि अध्ययन है, इसमें देश के 15 राज्यों में से 57 हजार लोगों का डेटा है।

प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री और डायबेटोलॉजिस्ट जितेंद्र सिंह ने कहा, ‘‘चिकित्सीय शिकायत के साथ किसी अस्पताल या स्वास्थ्य केंद्र में जाने वाला हर तीसरे से चौथा व्यक्ति मधुमेह रोगी होता है।’’ उन्होंने कहा कि आज भारत की 70 प्रतिशत जनसंख्या 40 साल से कम उम्र वाली है, ऐसे में युवाओं में मधुमेह का तेजी से फैलना एक बड़ी चुनौती है।

मधुमेह के बढ़ते प्रकोप की जड़ें दरअसल इस तरीके से जुड़ी हैं कि कभी भुखमरी का शिकार रहा देश कैसे अतिरिक्त खाद्यान्न रखने वाला देश बन गया। यह हरित क्रांति के कारण संभव हो सका।

लेकिन हरित क्रांति ने सिर्फ गेहूं और चावल की फसलों की वृद्धि को तेज किया। ये ग्लूकोज युक्त अनाज ही जन वितरण प्रणाली की रीढ़ बने और इसका नतीजा यह हुआ कि भारतीयों की एक पूरी पीढ़ी ऊर्जा के प्रमुख स्रोत के रुप में चावल और गेहूं को खाती आई है। भारत के खानपान की पारंपरिक आदतों में बाजरा, ज्वार, रेड राइस, ब्राउन राइस को प्रमुखता दी जाती थी लेकिन जब पीडीएस ने बाजार को सस्ते पॉलिशयुक्त चावल और गेहूं से भर दिया तो न सिर्फ ये स्वास्थ्यप्रद अनाज धीरे-धीरे चलन से बाहर हो गए, बल्कि ये किसानों के लिए भी गैर लाभकारी हो गए। यह दुष्चक्र आज मधुमेह के चक्रवात को तेज कर रहा है।

अंजना ने कहा, ‘‘अस्वास्थ्यकर आहार और शारीरिक तौर पर निष्क्रियता अकेले ही मधुमेह की महामारी में 50 प्रतिशत का योगदान दे रही है। इसके अलावा पश्चिमी आहार शैली को अपनाने से मधुमेह की समस्या बढ़ रही है।’’ जंक फूड अैर फास्ट फूड अब अधिकतर शहरी झुग्गियों और गाँवों में उपलब्ध हैं। सड़क किनारे बनी खाने की दुकानों में पिज्जा, चाउमीन और मोमोज मिलना आम बात है।

अंजना ने कहा, ‘‘औद्योगिकीकरण, मशीनीकरण, शहरीकरण और वैश्विकरण सभी मधुमेह के उस बम में अपना योगदान दे रहे हैं, जो फटने का इंतजार कर रहा है।’’ नए अध्ययन के अनुसार, जिन पांच राज्यों में मधुमेह का प्रसार 7.3 प्रतिशत है. बिहार में यह दर 4.3 प्रतिशत है और चंडीगढ़ में यह दर 13.6 प्रतिशत है।

अध्ययन में शामिल लगभग आधे लोग ऐसे थे, जिन्हें परीक्षण से पहले तक यह पता ही नहीं था कि उन्हें मधुमेह है।

भारतीयों की बदलती जीवनशैली उन्हें पारंपरिक स्वास्थ्यप्रद भोजन से दूर लेकर जा रही है। अंजना का कहना है, ‘‘जंक फूड की उपलब्धता, आसान पहुंच और उनका किफायती होना भारत की सबसे बड़ी समस्या है।’’ उन्होंने कहा कि सौभाग्यवश सही तरह की जागरुकता लाकर यह सब बदला जा सकता है। फलों, सब्जियों और स्वास्थयप्रद अनाज को राशन की दुकानों पर उपलब्ध करवाकर ऐसा किया जा सकता है।

(लेखक विज्ञान के जानकार हैं ये उनके निजी विचार हैं। पीटीआई/भाषा )

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