लेखक- प्रभुनाथ शुक्ल
दिल्ली की आबोहवा जहरीली हो चुकी है। सांस लेना भी मुश्किल हो चला है। गुरुग्राम (गुड़गांव) में इसे नियंत्रित करने के लिए धारा 144 लगाना पड़ा। हमारे लिए यह कितनी बड़ी बिडंबना है। स्थिति को देखते हुए स्कूल-कॉलेज बंद कर दिए गए। जहरीली होती दिल्ली हमारे लिए बड़ा खतरा बन गई है। पर्यावरण की चिंता किए बगैर विकास का सिद्धांत मुश्किल में डाल रहा है। यह पूरी मानव सभ्यता के लिए चिंता का विषय है। समय रहते अगर इस पर लगाम नहीं लगाया गया तो धुंध और धुंए का मेल आने वाली पीढ़ी को निगल जाएगा और देश मास्क और ऑक्सीजन के साथ सफर करने को मजबूर होगा।
दिल्ली सरकार के उठाए कदम वैकल्पिक राहत दे सकते हैं, लेकिन यह अंतिम समाधान साबित नहीं होंगे। दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण के लिए पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उप्र के किसानों पर आरोप मढ़ना उचित नहीं है। फसलों के अपशिष्ट जलाने से इस तरह का प्रदूषण कभी नहीं फैला, फिर आज कैसे फैलेगा। संबंधित राज्यों में किसान पहले से भी फसले जलाते रहे हैं, लेकिन इसका प्रभाव इतना अधिक क्यों है? यह खुद एक सवाल है।
प्रदूषण से निजात के लिए हमारे लिए नैसर्गिक ऊर्जा का दोहन ही सबसे सस्ता और अच्छा विकल्प है। दिल्ली और केंद्र सरकार को इसके लिए संकल्पबद्ध होना होगा। हमारी नीतियां हाथी दांत सी हैं। करना कम, दिखाना ज्यादा। इसी का नतीजा है कि समस्याएं दिन ब दिन बढ़ती जा रही हैं, लेकिन उसका निदान फिलहाल उपलब्ध नहीं है इसलिए कि हम देश को राजनीतिक नारों और उपलब्धियों से सुधारने की कोशिश करते हैं, जिससे यह संभव नहीं हैं। हम जमीनी हकीकत को दबा नहीं सकते हैं।
आज दुनिया भर में बढ़ता पर्यावरण प्रदूषण बड़ी चुनौती बन गया है। दिल्ली में तकरीबन 60 लाख से अधिक दुपहिया वाहन पंजीकृत हैं। प्रदूषण में इनकी भागीदारी 30 फीसदी है। कारों से 20 फीसदी प्रदूषण फैलता है। जबकि दिल्ली के प्रदूषण में 30 फीसदी हिस्सेदारी दुपहिया वाहनों की है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने दुनिया के 20 प्रदूषित शहरों में 13 भारतीय शहरों को रखा है, जिसमें दिल्ली चार प्रमुख शहरों में शामिल है।
दिल्ली चीन की राजधानी बीजिंग से भी अधिक प्रदूषित हो चली है। दिल्ली में 85 लाख से अधिक गाड़ियां हर रोज सड़कों पर दौड़ती हैं, जबकि इसमें 1400 नई कारें शामिल होती हैं। इसके अलावा दिल्ली में निर्माण कार्यों और इंडस्ट्री से भी भारी प्रदूषण फैल रहा है। हालांकि इसकी मात्रा 30 फीसदी है, जबकि वाहनों से होने वाला प्रदूषण 70 फीसदी है। शहर की आबादी हर साल चार लाख बढ़ जाती है, जिसमें तीन लाख लोग दूसरे राज्यों से आते हैं।
आबादी का आंकड़ा एक करोड़ 60 लाख से अधिक हो चला है। सरकार का दावा है कि 81 फीसदी लोगों ने ऑड-ईवन फॉर्मूले को दोबारा लागू करने की बात कही है। सर्वे में 63 फीसदी लोगों ने इसे लगातार लागू करने की सहमति दी है। वहीं 92 फीसदी लोगों का कहना था कि उन्हें दो कार रखनी होंगी, वे दूसरी कार नहीं खरीदेंगे।
इस सर्वे से यही लगता है कि पूरा शहर सरकार के साथ खड़ा है। फिर इसे अमल में क्यों नहीं लाया जाता? दिल्ली में वैकल्पिक ऊर्जा का उपयोग अधिक बढ़ाना होगा। शहर में स्थापित प्रदूषण फैलाने वाले प्लांटों के लिए ठोस नीति बनानी होगी। ग्लोबल वार्मिंग बढ़ रही हैं। इसमें कार्बन की सबसे बड़ी भूमिका है।
वैज्ञानिकों का दावा है कि आने वाले वर्ष 2021 तक छह डिग्री सेल्सियस तक तापमान बढ़ सकता है। भारत में गर्मी के शुरुआती दिनों में ही बेतहाशा गर्मी पड़ने लगी है, जबकि अमेरिका में ग्लोबल वार्मिंग के कारण बसंती मौसम है। दिल्ली में 16 साल पूर्व एक सर्वे में जो आंकड़े थे वह चौंकाने वाले थे। आज उनकी क्या स्थिति होगी यह विचारणीय बिंदु है।
दिल्ली में उस समय वाहनों से प्रतिदिन 649 टन कार्बन मोनोऑक्साइड और 290 टन हाइड्रोकार्बन निकलता था, जबकि 926 टन नाइट्रोजन और 6.16 टन से अधिक सल्फर डाईऑक्साइड की मात्रा थी, जिसमें 10 टन धूल शामिल है।
इस तरह प्रतिदिन तकरीबन 1050 टन प्रदूषण फैल रहा था। आज उसकी भयावहता समझ में आ रही है। उस दौरान देश के दूसरे महानगरों की स्थिति मुंबई में 650, बेंगलुरू में 304, कोलकाता में करीब 300, अहमदाबाद में 290, पुणे में 340, चेन्नई में 227 और हैदराबाद में 200 टन से अधिक प्रदूषण की मात्रा थी।
हमें बढ़ते वाहनों के प्रचलन और विलासिता की दुनिया से बाहर आना होगा, तभी हम बिगड़ते पर्यावरण प्रदूषण पर लगाम लगा सकते हैं। यह जहर हमारी पीढ़ी के लिए बेहद जानलेवा है। दुनिया भर में 30 करोड़ से अधिक बच्चे वायु प्रदूषण से प्रभावित हैं। सात में से एक बच्चा जहरीला धुंआ निगलने के लिए बाध्य है। पांच साल की उम्र में छह लाख बच्चों की मौत होती है।
एक आंकड़े के मुताबिक, भारत में 50 हजार से अधिक लोगों की मौत जहरीले प्रदूषण से हो चुकी है। सरकार और समाज को शहरों में साइकिलिंग पर अधिक जोर देना चाहिए। उप्र की समाजवादी सरकार ने लखनऊ में साइकिल परिपथ बनाने का काम किया, लेकिन यह वैज्ञानिक कम, राजनीतिक अधिक दिखा।
पर्यावरण के लिहाज से साइकिलिंग इको फ्रेंडली है। यह पर्यावरण प्रदूषण रोकने में सबसे अधिक सहायक है। दुनिया के दूसरे मुल्कों में भारत से अधिक साइकिलिंग की जाती है। हमारे पड़ोसी मुल्क चीन में साइकिल को अधिक महत्व दिया जाता है। यहां हर दो व्यक्तियों में एक के पास साइकिल है। चीन में साइकिल चलाने के लिए अलग से पथ की व्यवस्था है। 80 के दशक में सिर्फ तीन करोड़ साइकिलें थीं। तकनीक संपन्न देश जापान की 95 फीसदी आबादी साइकिल का उपयोग करती है। यहां प्रति हजार आबादी पर तकरीबन 450 साइकिलें हैं। साइकिलिंग रेस के लिए फ्रांस दुनिया में जाना जाता है।
अमेरिका में एक हजार की जनसंख्या पर 75 से अधिक साइकिलें हैं। प्रदूषित होते महानगरों में अगर हम साइकिल रिक्शा और साइकिलिंग को बढ़ावा देते हैं तो इससे एक तरफ जहां रोजगार में वृद्धि होगी, वहीं शहर की बिगड़ती आबोहवा पर लगाम लगेगी।
दूसरी बात, स्वास्थ्य में बेहतर सुधार आएगा। सरकार शहरों के लिए एक नीति बनाए और एक निश्चित दायरे में साइकिलिंग को अनिवार्य करे। हम प्रदूषण पर ऊर्जा के दूसरे स्रोतों और जागरूकता के माध्यम से ही विजय हासिल कर सकते हैं।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं) (आईएएनएस/आईपीएन)