वह दौर शायद गुजर गया जब गेंदबाज़ धोनी के सामने गेंदबाज़ी करने से सहमते थे

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वह दौर शायद गुजर गया जब गेंदबाज़ धोनी के सामने गेंदबाज़ी करने से सहमते थेमहेन्द्र सिंह धोनी

महेन्द्र सिंह धोनी जब विकेट पर बल्लेबाज़ी करने आते थे तो दुनिया के किसी भी हिस्से में हो रहे मैच में किसी भी स्कोर का पीछा करना नामुमकिन नहीं लगता था। दुनिया के सबसे बेहतरीन फिनिशर धोनी का करिश्मा शायद अब चुकने लगा है।

चार महीने के आराम के बाद महेन्द्र सिंह धोनी ज़रूर वनडे मैचों के ज़रिए क्रिकेट की दुनिया में जलवा दिखाने को बेताब होंगे लेकिन न्यूज़ीलैंड के साथ बीते दोनों मैचों में धोनी का वह जादू गायब था, जिसके दम पर एक फ़िल्म बनकर तैयार हो गई और जिसके तिलिस्म में सुशांत सिंह राजपूत भी अपनी फिल्म के साथ सौ करोड़ के सुनहरे क्लब में शामिल हो गए।

जब टीम मुसीबत में होती थी तो धोनी बल्ला थामकर आते थे और जब वह वापस पवेलियन लौट रहे होते तो चेहरे पर विजयी मुस्कान चस्पां होती थी। यही विजयी मुस्कान गायब हो गई है।

अपने इस जिताऊ भूमिका को निभाए, अगर आपको याद हो, एक अरसा गुज़र गया है। अरसा, यानी पूरा एक साल, जब इंदौर वनडे में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ धोनी ने नाबाद 92 रन बनाए थे।

हैरत की बात नहीं, कि अब तक उनके जिम्मे रहे फिनिशर के इस काम के लिए टीम इंडिया दूसरे विकल्पों की तरह ताक रही हो। इस सूची में रैना भी रहे लेकिन उनके फॉर्म में उतार-चढ़ाव आता रहा और वह इस रोल के लिए फिट नहीं पाए गए। अब इस फेहरिस्त में नया नाम हार्दिक पंड्या के रूप में देखा जा रहा है लेकिन पंड्या ने शुरुआत तो ठीक की है, लेकिन दिल्ली वनडे में वह खेल को अंत तक नहीं ले जा सके।

इन सब बातों के बाद भी बावजूद धोनी की स्थिति पर हमें सहानुभूति से विचार करना होगा। उनकी उम्र 35 साल से अधिक की हो चुकी है, अपने टेस्ट करियर को उन्होंने अलविदा कह दिया है। उनके खेल में ढलान आ रहा है और इंदौर वनडे के 92 रनों वाली उस धमाकेदार पारी के बाद से धोनी ने एक भी पचासा तक नहीं लगाया है।

शायद यह बदलते वक्त का इशारा है। धोनी की बल्लेबाज़ी में वह धमक नहीं रही, जिसने उनको लाखों-करोड़ों लोगों के दिलों की धड़कन बना दिया था।

दूसरी पारी में लक्ष्य का पीछा करते हुए धोनी ने 119 पारियों में 50 से अधिक के औसत से रन कूटे थे और करीब चार हजार रन इकट्ठे किए। गौरतलब यह भी है कि अपने अंतरराष्ट्रीय खेल जीवन में धोनी ने अपने सभी 20 मैन ऑफ द मैच पुरस्कार तभी हासिल किए हैं, जब भारत ने लक्ष्य का पीछा किया है।

लेकिन वह दौर शायद गुजर गया जब गेंदबाज़ धोनी के सामने गेंदबाज़ी करने से सहमते थे और कुट-पिसकर ड्रेसिंग रूम में लौटते तो अगले मैच में होने वाली कुटाई से बचने की कोशिशों पर चर्चा करते। धोनी अब उतने घातक और मारक नहीं रहे। इस बात की पुष्टि कर दी दिल्ली वनडे ने, जिसमें भारत छह रनों से हार गया।

धोनी को शतक लगाए तीन साल बीत गए हैं। याद कीजिए उन्होंने 19 अक्तूबर 2013 में मोहाली में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ सैकड़ा लगाया था। साल 2014 की जनवरी के बाद से धोनी का औसत 41 से थोड़ा ही ऊपर रहा है। वैसे, यह आंकड़े बहुत बुरे नहीं हैं, लेकिन धोनी के स्तर के तो नहीं ही हैं।

शायद यह उम्र का तकाजा है। शायद धोनी खेलते-खेलते थक गए हों। शायद, कप्तानी के बोझ ने उनकी बल्लेबाज़ी पर असर डाला हो। शायद, हम उनसे बहुत ज्यादा उम्मीद लगाए बैठे हैं। शायद लेकिन हमारी इन उम्मीदों को धोनी ने ही बढ़ाया है। धोनी को और हमें भी यह मान लेना चाहिए कि वक्त बदल गया है। भारत में बुढ़ाए खिलाड़ियों को बेइज्जत करके टीम से बाहर बिठाने की बड़ी बदतर परंपरा रही है। उम्मीद है कि धोनी ऐसा नहीं होने देंगे।

(यह लेख, लेखक के ब्लॉग गुस्ताख से लिया गया है।)

  

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