मोदी की अति आलोचना राजनैतिक बूमरैंग करेगी

Dr SB Misra | Jan 14, 2017, 15:56 IST



कभी सोचा है नरेंद्र मोदी को दिन रात गाली देने वालों में राहुल गांधी, ममता बनर्जी और अरविन्द केजरीवाल के नाम सबसे आगे हैं। और कभी सोचा है कि क्या गरीबों की चिन्ता करने वाला इनके जैसा कोई दूसरा नहीं है, कम्युनिस्ट भी नहीं, उड़ीसा के नवीन पटनायक या बिहार के नीतीश कुमार भी नहीं। देश के मजदूर संगठनों या किसान संघों ने कोई आन्दोलन नहीं छेड़ा और इन लोगों को कभी राष्ट्रीय स्तर पर इतना आक्रामक नहीं देखा। क्या देश की जनता इन्हें गम्भीरता से लेकर मोदी को देश का अहित करने वाला मान लेगी। आखिर मामला क्या है?

देश के लोगों को पता चल गया है कि मोदी पर भ्रष्टाचार का इल्जाम लगाते हुए सहारा और बिड़ला का नाम लेकर जो लोग सुप्रीम कोर्ट गए थे उन्हें मुंह की खानी पड़ी है। देश को यह भी पता है कि मोदी सरकार पर अभी तक भ्रष्टाचार का इल्जाम किसी जिम्मेदार एजेंसी या व्यक्ति ने नहीं लगाया है। गुजरात प्रदेश का मुख्यमंत्री रहते हुए भी मोदी की छवि साफ़ सुथरी रही है। इसके विपरीत आलोचकों के निहित कारण दिखाई देते हैं।

राहुल गांधी ज़मानत पर चल रहे हैं, ममता बनर्जी के एक मंत्री जेल में है और चिटफंड का मामला गले में अटका है। अरविन्द केजरीवाल के सचिवालय पर सीबीआई के छापे में अनेक दस्तावेज मिले हैं जिन्हें समझाने में कठिनाई हो रही है। राहुल गांधी बार-बार अज्ञात कारणों से विदेश में अज्ञात स्थानों को जाते रहते हैं। राहुल गांधी के बहनोई राबर्ट वाड्रा पर अनेक मुकदमे चल रहे हैं सम्पत्ति से सम्बन्धित। उनके दादाजी फीरोज़ गांधी ने जिस नेशनल हेराल्ड के मैनेजिंग एडिटर के रूप में अखबार समूह के लिए यश और सम्पन्नता अर्जित की थी उसे बेच दिया गया है। इटली से खरीदे गए हेलिकॉप्टर अगस्टा से जुड़े सवाल मुंह बाएं खड़े हैं। ऐसी हालत में पीड़ा तो होगी ही।

मोदी ने नकदी से कालाधन भगाने के बाद बेनामी सम्पत्ति से भी काला धन हटाने की योजना बनाई है। इस योजना में अनेक बड़े लोग फंसेंगे और उन्हें मालूम है कि मोदी का निशाना अचूक होता है। यह कहना कि मोदी डरते हैं बड़ा अजीब लगता है। संसद में जो बात कहकर राहुल गांधी भूकंप पैदा करना चाहते थे उसकी तो उच्चतम न्यायालय ने हवा निकाल दी। अब कौन डरता है समय बताएगा। इतना तो साफ़ है कि मोदी का तीसरा कदम विदेशी कालाधन होगा और विदेशों में मोदी की मान प्रतिष्ठा इतनी है कि वह कालाधन ढूंढना कठिन नहीं होगा। विदेशी सरकारों के साथ मोदी के मित्रवत सम्बन्ध विदेशी कालाधन उजागर करने में सहायक होंगे।

बहुत पहले सोनिया गांधी ने मोदी को मौत का सौदागर जरूर कहा था लेकिन उसके बाद व्यक्तिगत आक्षेप कम ही लगाए हैं। एक आशंका यह है कि मोदी राजनैतिक दलों के चन्दे में पारदर्शिता लाने के लिए पार्टियों के फंड को सूचना के अघिकार अधिनियम 2005 के दायने में ला दें। अरविन्द केजरीवाल को मिल विदेशी चन्दे की काफी चर्चा मीडिया में हुई थी, पता नहीं क्या हुआ। ऐसे लोग यदि नोटबन्दी के बहाने मोदी की अति आलोचना करें तो गम्भीरता से नहीं लिया जा सकता।

नोटबन्दी को लेकर अर्थशास्त्रियों मनमोहन सिंह, चिदम्बरम और प्रणब मुखर्जी की आलोचना को गम्भीरता से लेना होगा लेकिन उनकी आलोचना का उत्तर समय देगा। उनके सवाल अकादमी हैं। मोदी पर जो इल्जाम आलोचक लगा रहे हैं वे चिपकेंगे नहीं। कांग्रेस के लोग एकाधिकार का आरोप लगाने में शरमाते हैं क्योंकि आपातकाल मुंह बाएं खड़ा है। मोदी के काम की चीर फाड़ या तो संसद में या पांच साल पूरे होने के बाद करनी चाहिए, यही प्रजातंत्र का तकाजा है।

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