रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर के इस बयान के बाद कि राफेल डील अब ‘निर्णायक अवस्था’ में है। यह माना जा रहा है कि फ्रांस के साथ भारत की राफेल डील लगभग पूरी हो चुकी है। यह डील 7.8 बिलियन यूरो अर्थात लगभग 59 हजार करोड़ में सम्पन्न होगी। जिसके तहत दासाल्ट एविएशन द्वारा निर्मित 36 राफेल लड़ाकू विमान खरीदे जाएंगे। इस डील के सम्पन्न होते ही लगातार कम हो रहीं स्कावड्रन से जूझ रही भारतीय वायुसेना में नयी स्फूर्ति आ जाएगी। यह भारत के सुरक्षा और सामरिक लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण सौदा होगा।
भारत और फ्रांस के बीच राफेल विमान खरीदने को लेकर वर्ष 2007 से ही बातचीत चल रही है लेकिन यह डील किसी न किसी कारण से अटकी हुई थी। पिछले वर्ष प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की फ्रांस की यात्रा के दौरान इसमें तब नई स्फूर्ति आई जब प्रधानमंत्री ने यह घोषणा की कि भारत फ्रांस की सरकार से सीधे 36 फाइटर जेट्स खरीदेगा। उल्लेखनीय है कि पिछली सरकार (यूपीए सरकार) में भारत ने फ्रांस से 126 विमानों की खरीद सम्बंधी लगभग 1.20 लाख करोड़ का सौदा करना चाहा था। इसमें से 36 विमान सीधे दासाल्ट-एविएशन से खरीदने थे जबकि शेष 90 विमान भारत में ही तैयार होने थे लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने यूपीए सरकार के उक्त सौदे को रद्द कर सीधे फ्रांस सरकार से नई डील कर ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की फ्रांस में की गई घोषणा के बावजूद भी नई डील में कई रुकावटें बनी हुई थीं, जिसमें सबसे महत्वपूर्ण थी कीमत और दूसरी ऑफसेट क्लॉज सम्बंधी।
ध्यान रहे कि फ्रांस नई डील करीब 65 हजार करोड़ रुपए में करना चाहता था और साथ ही 30 फीसदी ऑफसेट क्लॉज चाहता था जबकि भारत चाहता था कि फ्रांस यह कीमत कम करे। अंततः यह सौदा लगभग 59 हजार करोड़ रुपए में तय हुआ। रक्षा मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार भारत 36 लड़ाकू विमानों की कीमत 65,000 करोड़ रुपए या 12 अरब डॉलर से कम करवा कर 60,000 करोड़ यानी नौ अरब डॉलर तक लाने में कामयाब रहा है। हालांकि अंतिम कीमत इससे भी थोड़ी कम यानी 58,653 करोड़ रुपए यानी लगभग 8.8 अरब डॉलर रहने की संभावना है। यही नहीं फ्रांस 50 फीसदी ऑफसेट क्लॉज के लिए भी तैयार हो गया है।
उल्लेखनीय है कि इस क्लॉज के तहत फ्रांस सौदे में प्राप्त धन का 50 फीसदी हिस्सा भारत में ही सैन्य प्रौद्योगिकी (मिलेट्री-टेक्नालॉजी) में निवेश करेगा। अब यह संभव है कि अगले महीने यानी मई तक राफेल विमान सौदे पर हस्ताक्षर हो जाएं लेकिन फ्रांस से राफेल विमानों के भारत आने में अभी कम से कम डेढ़ वर्ष का समय लग जाएगा। दरअसल भारतीय वायुसेना को कम से कम 44 स्क्वाड्रनों की आवश्यकता है लेकिन वर्तमान में इसके पास सिर्फ 32 स्क्वाड्रन ही सक्रिय हालत में हैं (रूस निर्मित मिग-21 विमानों के तीन स्क्वाड्रन को वायुसेना द्वारा डी-कमीशन किए जाने के बाद सही अर्थों में 31 ही रह गयी थी हालांकि इसमें बाद में सुखोई-30एमकेआई स्क्वाड्रन को जोड़ा गया) इनमें से भी 14 स्क्वाड्रन चलन से बाहर हो चुके मिग-21 और मिग-27 के भरोसे हैं, जिन्हें अगले वर्ष से रिटायर करना ही होगा (वर्ष 2019-20 तक मिग-21 और मिग-27 के 14 स्क्वाड्रन कम हो जाएंगे।) रही बात स्वदेश निर्मित एलसीए तेजस की तो अभी उसे वायुसेना के काबिल बनाने में समय लगेगा। कुछ अन्य स्क्वाड्रन मिराज-2000 और जगुआर के हैं जिन्हें अपग्रेड किया जा रहा है इसलिए वे भी सेवा से बाहर हैं। कुल मिलाकर भारतीय वायुसेना के स्क्वाड्रन को अपडेट करना इसलिए जरूरी है क्योंकि भारतीय वायुसेना में स्क्वाड्रन की संख्या पिछले एक दशक में सबसे कम है। जबकि भारतीय वायुसेना को पाकिस्तान और चीन से सटी सीमाओं की रक्षा के लिए कम से कम 45 स्क्वाड्रनों की आवश्यकता है (हालांकि स्वीकृत 42 ही हैं)। हमारे दो पड़ोसी देश चीन और पाकिस्तान अपनी वायुसेना का बड़ी तेजी से आधुनिकीकरण कर रहे हैं और दोनों की ही भारत विरोधी जुगलबंदी चल रही है।
उल्लेखनीय है कि चीन ने हाल ही में पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान जे-20 का निर्माण किया है और शेनयांग जे-11, नानचांग क्यू-5, शियान जेएच-7 जैसे आधुनिकीकृत विमान हैं जिनसे प्रतिस्पर्धा करने के लिए भारत को अभी काफी मशक्कत करनी होगी। चीन रूस के साथ मिलकर पांचवी पीढ़ी के विमान (फाइटर्स, अटैकर्स और बम्बर्स) बड़ी तेजी से विकसित कर रहा है। जेएफ-17 इसी का नतीजा है और कई अन्य परियोजनाएं पाइपलाइन में हैं। दूसरी तरफ पाकिस्तान अमेरिका की मदद से अपनी वायुसेना का आधुनिकीकरण कर रहा है। अब तो अस्थायी रूप से रोकी गई एफ-16 विमानों की बिक्री प्रक्रिया भी पुनः शुरू हो रही है।
जब फ्रांस के साथ 25 जनवरी 2016 को राफेल को लेकर एमओयू पर हस्ताक्षर हुए तो राफेल की तरफ से बताया गया कि वह इस कदम से बहुत प्रसन्न है व अगले चार हफ्तों में डील को फाइनल करने में फ्रांस सरकार की सहायता करेगा। भारत के लिए यह खुशखबरी की बात थी। ध्यान रहे कि दासाल्ट एविएशन कम्पनी अक्टूबर 2014 तक 133 विमानों का निर्माण कर चुकी है। राफेल दो इंजन वाला मल्टीरोल फाइटर एयरक्राफ्ट है जो एक मिनट में 60 हजार फीट की ऊंचाई तक जा सकता है। इसमें हवा में भी ईधन भरा जा सकता है और एक बार के ईधन से 10 घंटे तक लगातार उड़ान भर सकता है। इसमें लगी गन 125 राउंड गोलियां निकाल सकती है। इसके साथ ही इसमें घातक एमबीडीए एमआईसीए, एमबीडीए मेटेओर, एमडीडीए अपाचे, स्टॉर्म शैडो एससीएएलपी मिसाइलें लगी रहती हैं। इसमें आरबीई-2 रडार तथा स्पेक्ट्रा वारफेयर सिस्टम के साथ-साथ ऑप्ट्रॉनिक सिक्योर फ्रंटल इंफ्रा-रेड सर्च व ट्रैक सिस्टम भी लगा होता है।
2012 में जब यह डील होनी थी उस समय लॉकहीड मार्टिन के एफ-16, बोइंग के एफ/ए-18 सुपर हार्नेट, यूरोफाइटर टाइफून, रूस के मिग-35, स्वीडन के सॉब ग्रीपेन और राफेल लाइन में थे। आईएएफ द्वारा सभी एयरक्राफ्ट्स का परीक्षण किया गया और अंतिम रूप से राफेल व यूरोफाइटर के पक्ष में डील करने का मन बनाया गया और अंततः राफेल के पक्ष में।
नई दिल्ली और पेरिस के बीच ‘शक्तियों की अनुरूपता’ का दायरा बढ़ा है। रक्षा सम्बंधों में जुड़ रहे नए आयाम न केवल भारत की वायु शक्ति को समृद्ध कर भारत की रक्षा पंक्ति को मजबूत करेंगे बल्कि भारत-फ्रांस को दुर्जेय व अन्योन्याश्रित सम्बंधों की ओर ले जाएंगे। यह कम से कम उस दौर में बेहद जरूरी है जब चीन पांचवीं पीढ़ी के विमानों का विकास कर भारत के समक्ष बेहद खतरनाक चुनौती पेश कर रहा है। पाकिस्तान उससे रणनीतिक साझेदारी कर भारत के समक्ष ऐसी समस्याएं खड़ी करना चाहता है जिससे भारत का विकास एवं सुरक्षा दोनों ही प्रभावित हों। ऐसे में जरूरी है कि भारत इन चुनौतियों को देखते हुए अपनी रक्षा पंक्ति को सुदृढ़, समृद्ध और आधुनिकीकृत करे।
(लेखक आर्थिक व राजनैतिक मामलों के जानकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)