सदन में हंगामा करने से कैसे रुकेंगे एमपी, एमएलए

Dr SB MisraDr SB Misra   17 Dec 2016 8:18 PM GMT

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सदन में हंगामा करने से कैसे रुकेंगे एमपी, एमएलएफोटो साभार: इंटरनेट

संसद में शायद होड़ इस बात की लगी है कि कौन दल सबसे अधिक दिनों तक संसद को बंधक बनाएगा। यूपीए के दिनों में एनडीए ने लगातार संसद काफी दिनों तक नहीं चलने दी थी तो अब विपक्ष के लोग हिसाब बराबर करने में लगे हैं। कभी इस बात पर कि बहस होगी या नहीं तो कभी वोटिंग के साथ बहस होगी या बिना वोटिंग, फिर पहले इस विषय पर बहस होगी या उस विषय पर। कर्मचारियों के लिए सेवा नियमावली होती है लेकिन जो नियमावली बनाते हैं वे निरंकुश हैं।

काम नहीं तो दाम नहीं यह नियम नौकरों और मजदूरों पर लागू होता है, काम न करने पर सर्विस ब्रेक हो जाती है और पेंशन घट जाती है और सर्विस बुक में इंट्री हो जाती है। राष्ट्रपति ने ऐडवर्स इंट्री तो कर दी लेकिन उसका असर भी नहीं दिखता। चुनाव आयोग ने नोटा के माध्यम से सभी प्रत्याशियों को रिजेक्ट करने का अधिकार तो वोटर को दिया है लेकिन काम न करने वाले विधायक अथवा संसद को वापस बुलाने का प्रावधान नहीं किया। ये कैसे सेवक हैं जो पूरी सुविधाएं और वेतन लेकर भी कोई काम नहीं करते।

संसद में हंगामा गाली-गलौज करने से उनके विरुद्ध अदालती कार्रवाई नहीं हो सकती इसलिए जो चाहे बोलते हैं और टीवी पर मनोरंजन प्रदान करते हैं। एक सांसद कहते हैं कि मैं बोलूंगा तो भूचाल आ जाएगा तो वे भूकंप लाने के गुनहगार नहीं बनना चाहते और धमकी देते रहते हैं। स्वयं प्रधानमंत्री कहते हैं उन्हें संसद में बोलने नहीं दिया जाता इसलिए जनसभाओं में बोलते हैं। उन्हें मालूम है जब सत्र चल रहा हो तो नीतिगत घोषणाएं बाहर नहीं की जानी चाहिए इसलिए यह स्पष्टीकरण प्रधानमंत्री ने दिया।

पांच साल के बाद विधायकों और सांसदों का रिपोर्ट कार्ड जारी होना चाहिए कि हाजिरी कितने प्रतिशत रही और बहस में भाग कितने दिन लिया। इस प्रकार पता चलेगा कि पास हुए या फेल। वर्तमान सत्र के आरम्भ में लगा था कि विपक्ष को लम्बी लाइनों में खड़े लोगों की चिन्ता है और नोटबन्दी की बन्दी कराकर रहेंगे। अब सरकार को अपने मंत्री रिजिजू को बचाने की और कांग्रेस को अगस्ता कम्पनी के हेलिकॉप्टर खरीद में मिली रिश्वत की चिन्ता है, भूल गया गरीबों का दर्द। लगता है काम न करने का कोई भी बहाना चलेगा।

संसद में तर्क-वितर्क तो होने ही चाहिए लेकिन अब कुतर्क अधिक होते हैं। विपक्ष ने यह तो कहा कि नोटबन्दी गलत है लेकिन यह भी बताना चाहिए था कि सही क्या है। यदि कालेधन, आतंकवाद और महंगाई पर नियंत्रण लाना है तो और क्या उपाय हो सकते थे। बहुतों ने कहा नोटबन्दी तो ठीक है लेकिन लागू करने का तरीका गलत है तो सही तरीका क्या है किसी ने नहीं बताया।

आज के सांसदों को न तो अपनी गरिमा की चिन्ता है और न संसद की। पुराने समय में जनसंघ के डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी, कांग्रेस के फीरोज़ गांधी, कम्युनिस्ट पार्टी के अनेक सांसद और अभी हाल कि दिनों में अटल जी को बोलते सुना है लेकिन अचानक क्या हो गया हमारे सांसदों को। मीडिया की जिम्मेदारी है कि सांसदों का वार्षिक रिपोर्ट कार्ड प्रकाशित और प्रचारित करे। सांसद किसी से नहीं डरते, न कानून से न अदालत से, न सरकार से और न नेता से डरते हैं वोटर से और वोटर की याद्दाश्त कम है इसलिए मीडिया का कर्तव्य है कि प्रति वर्ष सांसदों की असलियत जनता को यानी वोटर को बताता रहे।

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