वर्तमान वित्त वर्ष का कुल बजट लगभग 27,86,349 करोड़ रुपए है। इसमें से कृषि मंत्रालय को 138,564 करोड़ रुपए, ग्रामीण विकास मंत्रालय को 117,650 करोड़ रुपए, रासायनिक उर्वरकों पर सब्सिडी के लिए 80,000 करोड़ रुपए और मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय को मात्र 3,737 करोड़ रुपए आवंटित किए गए थे। इन सबको जोड़ दें तो ग्रामीण भारत का 2019-20 का कुल बजट लगभग 340,000 करोड़ रुपए है। यह सम्पूर्ण बजट का लगभग 12 प्रतिशत है जबकि ग्रामीण भारत में लगभग 70 प्रतिशत आबादी बसती है।
मार्च 2018 की तिमाही में देश की जीडीपी विकास दर 8.1 प्रतिशत थी जो सितम्बर 2019 की तिमाही में गिरकर 4.5 प्रतिशत पर आ गई है। वित्त वर्ष 2019-20 में जीडीपी विकास दर पांच प्रतिशत से कम रहने का अनुमान है। अर्थव्यवस्था में छाई मंदी का मूल कारण मांग की कमी को बताया गया है। इससे उबरने के लिए हमें ग्रामीण क्षेत्र के लिए उचित मात्रा में बजट आवंटन करना होगा। इससे मांग तत्काल बढ़ेगी और अर्थव्यवस्था के पहिये गति के साथ चल पड़ेंगे।
सरकार ने एक बहुत ही सराहनीय योजना- प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (पीएम- किसान) शुरू की है। इस योजना का 2019-20 में 75,000 करोड़ रुपए का बजट है। परन्तु खेती की बढ़ती लागत को देखते हुए आगामी बजट में इसमें दी जाने वाली राशि को 6,000 रुपए से बढ़ाकर 24,000 रुपए प्रति किसान प्रति वर्ष किया जाना चाहिए। इस एक कदम से ही ग्रामीण क्षेत्रों में तुरन्त क्रय-शक्ति बढ़ेगी और अर्थव्यवस्था की गाड़ी तेजी से आगे बढ़ेगी।
पशुपालन और दुग्ध उत्पादन कृषि का अभिन्न अंग है और कृषि जीडीपी में इसकी लगभग 30 प्रतिशत हिस्सेदारी है। परन्तु पशुपालन और डेयरी कार्य हेतु बजट मात्र 2,932 करोड़ रुपए है। दुग्ध उत्पादन और पशुपालन जैसी अति महत्वपूर्ण आर्थिक गतिविधि का बजट कृषि बजट का कम से कम 30 प्रतिशत यानी लगभग 45,000 करोड़ रुपए होना चाहिए।
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पशुपालन से होने वाली आय कृषि आय की तरह आयकर से भी मुक्त नहीं है। आगामी बजट में इस विसंगति को दूर किया जाना चाहिए। दूध के क्षेत्र में अमूल जैसी किसानों की अपनी सहकारी संस्थाएं काम कर रही हैं। ये उपभोक्ता द्वारा खर्च की गई राशि का 75 प्रतिशत किसानों तक पहुंचाती हैं। पिछले साल सरकार ने घरेलू कंपनियों के आयकर की दर को 30 प्रतिशत से घटाकर 22 प्रतिशत कर दिया था, परन्तु किसानों की इन सहकारी संस्थाओं पर आयकर पहले की तरह 30 प्रतिशत की दर से ही लग रहा है। जबकि 2005-06 तक इन सहकारी संस्थाओं पर कंपनियों के मुकाबले पांच प्रतिशत कम दर से आयकर लगता था। कंपनियों से भी अधिक आयकर लगाना किसानों के साथ अन्याय है, इसे तत्काल 2005-06 से पहले वाली व्यवस्था के अनुरूप यानी 17 प्रतिशत किया जाना चाहिए।
सरकार को दुग्ध उत्पादन की लागत कम करने हेतु सस्ता पशु-आहार, सस्ती पशु-चिकित्सा और दवाइयां उपलब्ध कराने के लिए बजट में कदम उठाने चाहिए। ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ती आवारा पशुओं की संख्या एक विकराल समस्या बन गई है। इनकी संख्या सीमित करने और इनके आर्थिक उपयोग के लिए विशेष बजट प्रावधान करने होंगे।
वर्ष 2012 तक किसानों की सहकारी संस्थाओं को मिलने वाले ऋण को रिज़र्व बैंक ‘प्राथमिक क्षेत्र कृषि ऋण’ के रूप में परिभाषित करता था। आगामी बजट में 2012 से पहले की स्थिति को बहाल कर किसानों की इन सहकारी संस्थाओं को मिलने वाले ऋण को रिज़र्व बैंक पुनः ‘प्राथमिक क्षेत्र को दिए कृषि ऋण’ के रूप में ही परिभाषित करें, ताकि किसानों की इन संस्थाओं को महंगा ऋण लेने के लिए मजबूर ना होना पड़े।
ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार उपलब्ध कराने की मनरेगा योजना का बजट 60,000 करोड़ रुपए है। इस योजना को खेती किसानी से जोड़ने की आवश्यकता है ताकि किसानों की श्रम की लागत कम हो और इस योजना में गैर उत्पादक कार्यों में होने वाली धन की बर्बादी को रोका जा सके।
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कृषि हेतु रासायनिक उर्वरकों की सब्सिडी 80,000 करोड़ रुपए है। यूरिया खाद पर अत्यधिक सब्सिडी के कारण इस खाद का ज़रूरत से ज्यादा प्रयोग हो रहा है जिससे ज़मीन और पर्यावरण दोनों का क्षरण हो रहा है। इस सब्सिडी को भी सीधे किसानों के खातों में नकद भेजा जाए तो खाद सब्सिडी में भारी कमी भी होगी और रासायनिक खाद का अत्यधिक मात्रा में प्रयोग भी बंद होगा।
हम तिलहन को छोड़कर बाकी लगभग सभी कृषि उत्पादों में आत्मनिर्भर हैं या घरेलू मांग से ज्यादा उत्पादन कर रहे हैं। अतः हमें बजट में कृषि उत्पादों के प्रसंस्करण, भंडारण, शीतगृहों और वितरण प्रणाली की आधारभूत संरचना को विकसित करने हेतु उचित आवंटन करना होगा।
देश आज गेहूं-चावल के अत्यधिक मात्रा में भंडार होने से परेशान है। दिसंबर 2019 में भारतीय खाद्य निगम के भंडारों में लगभग 213 लाख टन चावल और 352 लाख टन गेहूं था, यानी कुल मिलाकर इन दोनों खाद्यान्नों का स्टॉक 565 लाख टन था। जबकि 1 जनवरी को यह बफर स्टॉक 214 लाख टन होना चाहिए। इसके अलावा 260 लाख टन धान भी गोदामों में पड़ी है। देश का खाद्य सब्सिडी का बिल 1.84 लाख करोड़ रुपए है जिसे तत्काल कम किया जाना चाहिए। खाद्य सब्सिडी को वास्तविक जरूरतमंदों तक ही सीमित करना होगा। इसके लिए लाभार्थियों को सीधे नकद राशि हस्तांतरण करना उचित होगा।
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कृषि उत्पादों का निर्यात किसानों की आमदनी बढ़ाने में बहुत मददगार होता है। भारत ने 2013-14 में 4,325 करोड़ डॉलर (आज के मूल्यों में लगभग तीन लाख करोड़ रुपये) मूल्य के कृषि उत्पादों का निर्यात किया था, परन्तु इसके बाद हम इस स्तर को कभी भी छू नहीं पाए। अतः हमें बजट में कृषि जिन्सों के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए विशेष बजट प्रावधान करने होंगे। अर्थव्यवस्था को मंदी से उबारने के लिए ग्रामीण भारत के लिए उठाए गए ये कदम अत्यधिक उपयोगी साबित होंगे।
(लेखक किसान शक्ति संघ के अध्यक्ष हैं)