भारत और इस्राइल अब अंतरिक्ष क्षेत्र में बनाएंगे रिश्ते

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भारत और इस्राइल अब अंतरिक्ष क्षेत्र में बनाएंगे रिश्तेइस्राइल और भारत दोनों ही अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में काफी मजबूत हैं। दोनों ने ही अपनी सीमाओं को अपने पड़ोसियों से सुरक्षित बनाने के लिए बड़ी रकम खर्च की है।

नई दिल्ली (भाषा)। शत्रुतापूर्ण पड़ोस के माहौल में रहकर बड़ी-बड़ी समस्याओं से उबर चुके भारत और इस्राइल अब आतंकवाद के प्रकोप से निपटने के लिए और अंतरिक्ष क्षेत्र के असैन्य अनुप्रयोगों के लिए अंतरिक्ष संबंधी प्रौद्योगिकी के संयुक्त अन्वेषण के लिए आपस में हाथ मिला रहे हैं। इस्राइल और भारत दोनों ही अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में काफी मजबूत हैं। दोनों ने ही अपनी सीमाओं को अपने पड़ोसियों से सुरक्षित बनाने के लिए बड़ी रकम खर्च की है।

इस्राइल स्पेस एजेंसी (आईएसए) और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के प्रमुखों ने इस उच्च प्रौद्योगिकी क्षेत्र में सहयोग का खाका तैयार करने के लिए इस सप्ताह बेंगलूरु में मुलाकात की। यदि सब चीजें योजना के अनुरुप चलती हैं तो वर्ष 2017 की शुरुआत में श्रीहरिकोटा से दो इस्राइली नैनो-सेटेलाइट प्रक्षेपित किए जाएंगे।

आईएसए के महानिदेशक एवी ब्लासबर्जर ने इस बात की पुष्टि की कि जिन प्रमुख क्षेत्रों में सहयोग की संभावनाएं तलाशी जा रही हैं, उनमें से एक क्षेत्र ‘सूक्ष्म तरंगों की मदद से रिमोट सेंसिंग' का है।

निश्चित तौर पर यह एक ऐसी प्रौद्योगिकी है, जिसमें रडारसैट नामक कुछ ‘विशेष पक्षी' (उपग्रह) तैनात किए जाते हैं। इनमें दिन और रात के समय के निरीक्षण की क्षमता तो है ही, साथ ही साथ ये बादलों से घिरे आसमानों को भी भेदकर देख सकते हैं। इससे दुश्मनों का छिपना मुश्किल हो जाएगा।

आम तौर पर इस परिष्कृत प्रौद्योगिकी को अकसर ‘जासूसी उपग्रह' कहा जाता है क्योंकि ये किसी भी मौसम में हर पल दुश्मन पर नजर रखते हैं। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके इस्राइली समकक्ष बेंजामिन नेतन्याहू के साझा प्रशंसक हैं और दोनों ही एक-दूसरे की शासन शैली का सम्मान करते हैं।

ब्लासबर्जर ने कहा कि दोनों देशों के बीच माहौल बहुत अच्छा है और संयुक्त परियोजनाओं और संयुक्त अंतरिक्ष अभियानों के लिए बड़ी संभावना हो सकती है।'' इस्राइल के पास कुछ उत्कृष्ट रडार इमेजिंग प्रौद्योगिकी है और वर्ष 2008 में भारत ने इस्राइल की ओर से टेकएसएआर नामक उपग्रह प्रक्षेपित किया था। 295 किलोग्राम वजन वाले उपग्रह को श्रीहरिकोटा से भारत के ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी) की मदद से सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया गया था।

इस्राइल के पास ऐसा कोई स्वदेशी रॉकेट नहीं था, जो इस तरह के उपग्रह को प्रक्षेपित कर सकता। ऐसे में भारत का पूर्वोन्मुख रॉकेट पोर्ट इसके उड़ानपथ के उपयुक्त था। खबरों की मानें तो, इस उपग्रह ने इस्राइल को उसके शत्रु पड़ोसियों की सैन्य क्षमताओं का पता लगाने में मदद की। इसे अपनी तरह के सबसे आधुनिक उपग्रहों में से एक माना जाता था।

बाद में भारत ने भी इस्राइल से ऐसा ही एक उपग्रह खरीदा था और इसे आरआईसैट-2 नाम दिया था। वर्ष 2009 में, इस 300 किलोग्राम के उपग्रह को पीएसएलवी की मदद से अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया गया था। बताया जाता है कि यह 10 सेमी जितनी छोटी वस्तुओं का भी पता लगा सकता है। भारत 400 किलोमीटर की उंचाई पर स्थित कक्षा में मौजूद इस उपग्रह का इस्तेमाल सीमापार पाकिस्तान में बने शिविरों में चल रही गतिविधियों पर नजर रखने के लिए करता है ताकि आतंकियों की घुसपैठ की कोशिशों को नाकाम किया जा सके।

विशेषज्ञों का कहना है कि आरआईसैट-2 से मिली तस्वीरों ने भारत को इस साल नियंत्रण रेखा पर ‘सर्जिकल हमले' करने में काफी मदद की। इस अभियान के जरिए भारतीय सेना ने पाक अधिकृत कश्मीर में बने कई आतंकी ठिकाने नष्ट कर दिए थे। दोनों देशों ने निश्चित तौर पर इन विशेष सूक्ष्मतरंगी छायांकन उपग्रहों की मदद से अपनी सीमाएं सुरक्षित कर ली हैं।

ब्लासबर्जर ने पहली बार यह पुष्टि की है कि भारत द्वारा इस्राइली उपग्रह ‘टेकएसएआर' प्रक्षेपित किए जाने में और उसका समरुप आरआईसैट-2 खरीदे जाने में दोनों देशों की अंतरिक्ष एजेंसियां सीधे तौर पर शामिल नहीं थीं। ब्लासबर्जर ने कहा कि आईएसए और इसरो दोनों ही असैन्य कार्यक्रमों को बढ़ावा देने वाले क्षेत्र में काम करती हैं।

उन्होंने कहा कि यदि भारत अनुरोध करता है तो ‘‘इस्राइल को आरआईसैट-2 की तरह के और अधिक टोही उपग्रह उसे (भारत को) देकर खुशी होगी।'' लेकिन सबसे अहम यह है कि दोनों देशों ने अब एक विशेष कार्य समूह का गठन किया है, जो यह अन्वेषण कर सकता है कि ‘सूक्ष्मतरंगीय छायांकन' किस तरह से दोनों देशों के लिए मददगार साबित हो सकता है और इसे कैसे बढाया जा सकता है।

भारत ने अब अपना विशेष रडार इमेजिंग उपग्रह आरआईसैट-1 विकसित करके प्रक्षेपित किया है। इस बात पर गौर किया जाना चाहिए कि रडार उपग्रह बाढ और कृषि संबंधी गतिविधियों का पता लगाने में बेहद मददगार हैं।

ब्लासबर्जर ने कहा, ‘‘इस्राइल के पास सटीकता वाले कैमरे बनाने और अंतरिक्षीय उपकरणों के आकार को निम्नतम करने की विशेष क्षमताएं हैं।'' वहीं दूसरी ओर उन्हें लगता है कि भारत के पास उच्च स्तर पर विकसित रॉकेट हैं, जो भारी उपग्रहों को अंतरिक्ष में स्थापित कर सकते हैं। आधुनिक अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी वाले इन देशों की ये ‘पूरक क्षमताएं' दोनों देशों के लिए लाभदायक हो सकती हैं।

दोनों अंतरिक्ष एजेंसियों के प्रमुख ऐसे संयुक्त दल बनाने पर भी सहमत हुए, जो अंतरिक्ष क्षेत्र में संभावनाएं तलाशने वाले इन दोनों देशों के बीच ‘इलेक्ट्रिकल प्रणोदन, रिमोट सेंसिंग और संचार' जैसे प्रमुख क्षेत्रों में एक सेतु बना सकते हैं।

बेंगलूरु में इसरो की कुछ इकाइयों का दौरा करने वाले ब्लासबर्जर का मानना है कि एकसाथ मिलकर काम करने से भविष्य में और अधिक काम होगा। ऐसा प्रतीत होता है कि धरती पर शत्रुतापूर्ण पडोसियों से घिरे होने के कारण भारत और इस्राइल अपने भविष्य को सुरक्षित करने के लिए अंतरिक्ष में हाथ मिलाने के लिए मजबूर हो रहे हैं।

      

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