क्या न्यूनतम आय गारंटी का दांव व्यवहारिक और कारगर है?

“हम जानते हैं कि 200 रुपये की पेंशन के लिये ही बुज़ुर्गों को कितने धक्के खाने पड़ रहे हैं। जबकि इस महंगाई में 200 रूपये महीना पेंशन देना अपमानित करने जैसा है लेकिन वह भी कहां मिल रहा है।”रीतिका खेरा कहती हैं।

Hridayesh JoshiHridayesh Joshi   28 Jan 2019 5:40 PM GMT

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
क्या न्यूनतम आय गारंटी का दांव व्यवहारिक और कारगर है?

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने न्यूनतम आय गारंटी यानी यूनिवर्सल बेसिक इंकम (यूबीआई) की बात कहकर लोकसभा चुनावों में नई हलचल मचा दी है। अब बीजेपी का संकट यह है कि यूबीआई के बारे में खुद प्रधानमंत्री के प्रमुख आर्थिक सलाहकार रहे अरविन्द सुब्रमण्यम ने कहा था कि यह बहुत ललचाने वाली और आकर्षक योजना है। उन्होंने पिछले साल यह भविष्यवाणी की थी कि यह योजना चुनावी घोषणा पत्र का हिस्सा होगी। लेकिन क्या कांग्रेस ने इस राजनीतिक रूप से हड़प लिया है।

सवाल ये भी है कि यूबीआई किसान कर्ज़माफी और ऊंचे न्यूनतम समर्थन मूल्य के बाद बड़ा चुनावी ट्रंप कार्ड तो हो सकता है लेकिन क्या यह वाकई गरीबों के लिये मददगार होगा।

आईआईएम अहमदाबाद में पढ़ा रही अर्थशास्त्री प्रोफेसर रीतिका खेरा कहती है कि इस घोषणा को यूबीआई कहना ही ग़लत है क्योंकि राहुल गांधी ने गरीबों के लिये एक योजना का ऐलान किया है। खेरा कहती हैं ये पता कैसे लगाया जा सकता है कि जिस योजना की राहुल घोषणा कर रहे वह अगर लागू होती भी है तो कितने लोगों को कवर किया जायेगा।

सवाल यह भी है कि इस योजना को लागू करने के लिये मौजूदा सब्सिडी में से कितनी कम की जायेंगी। पिछले साल दिसंबर में देश के 60 अर्थशास्त्रियों ने वित्तमंत्री अरूण जेटली को चिट्ठी लिखकर सामाजिक सुरक्षा पेंशन और मातृत्व लाभ के वादों को पूरा करने की थी।

ये भी पढ़ें- 2019 चुनाव जीती कांग्रेस तो गरीबों को दी जाएगी न्यूनतम आमदनी: राहुल गांधी




"हम जानते हैं कि 200 रुपये की पेंशन के लिये ही बुज़ुर्गों को कितने धक्के खाने पड़ रहे हैं। जबकि इस महंगाई में 200 रूपये महीना पेंशन देना अपमानित करने जैसा है लेकिन वह भी कहां मिल रहा है।" रीतिका खेरा कहती हैं।

उधर, बहस यह भी है कि क्या न्यूनतम आय गारंटी योजना को लागू करने के लिये पैसा कहां से आयेगा। कुछ जानकार कहते हैं कि गैरज़रूरीसब्सिडी बन्द किया जा सकता है।

ऐसी सोच रखने वाले अर्थशास्त्री खाद और पेट्रोल डीज़ल पर दी जाने वाली सब्सिडी को गैर ज़रूरी (Non Merit Susidy) सब्सिडी मानते हैं। वहीं गरीबों को अनाज़, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं को ज़रूरी (Merit) सब्सिडी माना जाता है। ये परिभाषा दिल्ली स्थिति नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी की एक रिपोर्ट में भी दी गई।

बिजनेस स्टैंडर्ड में छपी एक रिपोर्ट बताती है कि राज्य सरकारों और केंद्र की कुल सब्सिडी जहां 1987-88 में जीडीपी का कुल 12.9 प्रतिशत थी वहीं 2011-12 में यह जीडीपी का 10.6 प्रतिशत रह गई है। इसी दौर में ज़रूरी सब्सिडी जीडीपी के 3.8 प्रतिशत से बढ़कर 5.6 हुई और गैर ज़रूरी कहे जाने वाली सब्सिडी जीडीपी के 9.2 प्रतिशत घटकर करीब 5 प्रतिशत रह गई।

जानकार कह रहे है कि यूबीआई जैसी योजना के लिये गैर ज़रूरी सब्सिडी में कमी कर पैसा जुटाया जा सकता है और यह एक बेहतर विकल्प होगा।

लेकिन यह गणित इतना सीधा नहीं है और इसमें यह देखना होगा कि सरकार कितनी और कौन कौन सी सब्सिडी कम करेगी। क्या राज्य सरकारों और केंद्र के बीच कोई तालमेल बन पायेगा। इन सब बातों को देखते हुये अभी ये घोषणा चुनावी दांव ही है और इसे साकार होने के लिये लम्बा रास्ता तय करना होगा।

        

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.