मध्य पूर्व में इज़राइल और ईरान के बीच जो घनघोर युद्ध चल रहा है, उसका परिणाम जो भी हो, लेकिन अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का व्यवहार अमेरिका की विश्वसनीयता को घटाने वाला प्रतीत होता है। राष्ट्रपति ट्रंप इस युद्ध के संदर्भ में कहते रहे हैं कि यदि ईरान ने शांति का प्रयास स्वीकार नहीं किया, तो उसे अंजाम भुगतने के लिए तैयार रहना चाहिए। और अंततः मध्य रात्रि में डोनाल्ड ट्रंप की सेना ने बी-2 बॉम्बरों का प्रयोग करते हुए ईरान के तीन एटॉमिक ठिकानों पर 14 बम गिराए — ऐसा उनकी ओर से ऐलान किया गया है।
इज़राइल और अमेरिका दोनों का मानना है कि ईरान को एटॉमिक संयंत्र बनाने या एटॉमिक ऊर्जा के विकास का अधिकार नहीं है, जबकि रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा था कि शांतिपूर्ण प्रयोग के लिए एटॉमिक ऊर्जा का शोध और विकास करने का अधिकार सभी को है। राष्ट्रपति ट्रंप ने सीधी कार्रवाई करके तीसरे विश्व युद्ध का दरवाज़ा खोल दिया है।
डोनाल्ड ट्रंप अभी कुछ ही समय पहले जब राष्ट्रपति बने, तो उन्होंने पहला प्रयास रूस और यूक्रेन के बीच कई वर्षों से चल रहे घनघोर युद्ध को समाप्त करने का ही नहीं, बल्कि उसे अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया। पहले उन्होंने यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेन्स्की को वाशिंगटन बुलाकर आदेश जैसे निर्देश दिए, लेकिन ज़ेलेन्स्की ने युद्धविराम में कोई रुचि नहीं दिखाई। बाद में नाटो देशों के परामर्श के बाद जब कुछ पहल हुई, तो रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने युद्धविराम के बजाय युद्ध की तीव्रता और बढ़ा दी। इस प्रकार डोनाल्ड ट्रंप की उम्मीदों पर पानी फिर गया और युद्ध लगातार जारी है।
यदि देखा जाए, तो अमेरिका के अंदर भी राष्ट्रपति ट्रंप के विचारों का विरोध हो रहा है, विशेषकर इज़राइल और ईरान के युद्ध को लेकर। साथ ही, नाटो देशों के साथ भी ट्रंप ने कोई सलाह-मशविरा नहीं किया है, और यह स्पष्ट नहीं है कि नाटो संगठन के कितने देश तीसरे विश्व युद्ध के लिए तैयार होंगे। इसी प्रकार, ओपेक देशों की जो बैठक हुई, उसमें अभी तक कोई स्पष्ट राय या निर्णय सामने नहीं आया है।
जो भी हो, अमेरिका का ईरान पर हमला अन्य देशों के लिए भी युद्ध में कूदने का बहाना बन सकता है। यदि ऐसा हुआ, तो न चाहते हुए भी अनेक देश इस युद्ध की आग को झेलने के लिए मजबूर हो जाएंगे।
इसी बीच भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध चल रहा था और भारत ने पाकिस्तान को गहरी चोटें पहुंचाईं। पाकिस्तान इतना त्रस्त हो गया था कि उसने भारत के समक्ष युद्धविराम का प्रस्ताव रखा, जिसे भारत ने आतंकवादियों को एक सीमा तक नष्ट करके स्वीकार कर लिया, और युद्धविराम लागू हो गया। उधर, अच्छा मौका देखकर ट्रंप ने कहना आरंभ कर दिया कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच युद्धविराम कराया। भारत के लोगों ने ट्रंप की बातों को गंभीरता से नहीं लिया और भारत के राजनीतिक व प्रशासनिक अधिकारियों ने कहा कि भारत-पाक युद्ध में तीसरे पक्ष की न तो कोई आवश्यकता थी और न ही किसी तीसरे पक्ष ने युद्धविराम कराया। इस तरह राष्ट्रपति ट्रंप की एक प्रकार से किरकिरी हो गई और अपनी छवि सुधारने के लिए उन्होंने पाकिस्तान के सेना प्रमुख मुनीर के साथ डिनर किया और उनकी प्रशंसा की, शायद इसलिए कि सेना प्रमुख मुनीर ने ट्रंप को शांति का नोबेल पुरस्कार देने की बात कही थी।
यह वही डोनाल्ड ट्रंप हैं जिनका संबंध प्रधानमंत्री मोदी के साथ बहुत ही घनिष्ठ हुआ करता था — “हाउडी मोदी” और “नमस्ते ट्रंप” का ज़माना था। राष्ट्रपति ट्रंप के चुनाव जीतने पर भारत में बड़ी आशाएं जगी थीं और यह उम्मीद की जा रही थी कि अमेरिका भारत के साथ न्याय करेगा। लेकिन अब अमेरिका की यह भूमिका भारत की उस आशा को झटका देती प्रतीत होती है।
मध्य पूर्व के क्षेत्र में, जहाँ इज़राइल और हमास के बीच लंबे समय से युद्ध चल रहा है, वहां भी अमेरिका ने हस्तक्षेप दिखाया और इज़राइल को नैतिक तथा भौतिक समर्थन प्रदान किया, जो हमास के विरोध में रहा। यह भूमिका किसी शांति दूत की नहीं, बल्कि आक्रमणकारी का समर्थन करने वाली भूमिका रही। राष्ट्रपति ट्रंप भले ही शांति कायम करने का प्रयास करते हुए दिखते हों, लेकिन उनकी नोबेल शांति पुरस्कार की कामना उनकी असफलताओं से मेल नहीं खाती।
जहां तक वर्तमान में इज़राइल और ईरान के बीच चल रहे युद्ध की बात है, शायद राष्ट्रपति ट्रंप सोच रहे होंगे कि ईरान के एटॉमिक ठिकानों पर 14 बम गिराकर वे ईरान को घुटनों पर ला देंगे, लेकिन स्थिति इसके बिल्कुल विपरीत है। ईरान का कहना है कि उसका बहुत अधिक नुकसान नहीं हुआ है और वह इज़राइल पर आक्रमण से पीछे नहीं हट रहा है। इसलिए शांति की मेज़ पर इज़राइल और ईरान के आने की संभावना कम ही प्रतीत होती है।
समय बताएगा कि युद्धविराम न होने की स्थिति में रूस, चीन और उत्तर कोरिया का दृष्टिकोण क्या होगा — भले ही इन तीनों ने ईरान का समर्थन किया है। और यदि तीसरा विश्व युद्ध आरंभ होता है, तो इनकी कार्रवाई क्या होगी — यह अभी स्पष्ट नहीं है।
बदली हुई परिस्थितियों में यह देखना भी रोचक होगा कि क्या ईरान के मित्र देश इज़राइल पर हमला करेंगे या सीधे अमेरिका पर। यदि किसी ने अमेरिका पर हमला कर दिया, तो तीसरा विश्व युद्ध अवश्यंभावी हो जाएगा। डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका को दुनिया में सर्वशक्तिमान समझते हैं, जबकि रूस, चीन और उत्तर कोरिया जैसे देश सामरिक दृष्टि से काफी शक्तिशाली हैं और उनकी सहानुभूति ईरान के साथ है। ऐसी परिस्थिति में यह कहना कि ईरान को एटॉमिक ऊर्जा विकसित करने का अधिकार नहीं है, तर्कसंगत प्रतीत नहीं होता।
डोनाल्ड ट्रंप द्वारा केवल अपने बलबूते ईरान और उसके साथी देशों का विरोध सफल नहीं होगा — जैसा कि संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद के निर्णयों से प्रतीत हो रहा है। बेहतर यह होता कि ईरान के खिलाफ कार्रवाई की बातें अधिकृत संस्थाओं द्वारा की जातीं। यदि ट्रंप इसी प्रकार दादागिरी दिखाते रहे, तो विश्व का भविष्य अंधकारमय हो जाएगा।
ईरान और इजरायल के बीच युद्ध विराम हो गया है, तो अब देखना होगा कि ये कितना स्थाई रहता है।