जी हां, जन्नतनशीन डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के लिए चन्द सिरफिरे लोगों ने जुलाई 31 को कहा कि वे मुसलमान नही थे। तो फिर यह नमाजी सुन्नी क्या काफिर कहलायेगा ? रामेश्वरम में डॉ. कलाम के स्मारक में उनकी प्रतिमा के साथ उनकी प्रिय पुस्तक गीता और रूद्र वीणा रखी गई है। बस कुछ मुसलमान भड़क उठे। इस पर भारतीय मिसाइल के निर्माता इस फकीर का 2004 में राष्ट्रपति पद के चुनाव अभियान पर हुये उनके जबरदस्त विरोध की मुझे याद आ गई।
हालांकि अब यह मुद्दा केवल अकादमिक रह गया है। मगर राजनीति के शास्त्रियों को विश्लेषण करना चाहिए कि पूर्व राष्ट्रपति के चुनाव में इतना तीव्र विरोध दोनों कम्युनिस्ट पार्टियों ने भी क्यों किया था ? मुसलमानों के ज़बरदस्त खैरख्वाह, यहां तक कि मोहम्मद अली जिन्ना के प्रति उदार रहे, इन कम्युनिस्ट पार्टियों ने अपने विरोध में द्वन्द्वात्मक तर्क दिए जो बेमाने थे। देश के ग्यारहवें राष्ट्रपति (2002) के निर्वाचन में सत्तासीन भारतीय जनता पार्टी, विपक्ष की कांग्रेस, समाजवादी पार्टी तथा बहुजन समाज पार्टी ने आपसी वैमनस्य को दरकिनार कर सुदूर दक्षिण के गैर-राजनैतिक विज्ञानशास्त्री डॉ. अबुल पाकिर जैनुलआबिदीन अब्दुल कलाम को प्रत्याशी बनाया था। अटल बिहारी वाजपेयी तथा मुलायम सिंह यादव उनके प्रस्तावक थे गणतंत्रीय भारत के वे तीसरे मुसलमान राष्ट्रपति थे।
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यूं तो वामपंथी हमेशा क्रांति के हरावल दस्ते में रहने का दम भरते हैं। मगर तब वे आत्मघातियों के रास्ते पर चल दिए। यदि वे डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम का विरोध करने में दृढ़ होते, तो ज्यादा बेहतर तर्क दे सकते थे। मात्र कह देना कि यह वैज्ञानिक संविधान से अनजाना है, साझा राजनीति की शैली से अनभिज्ञ है, कूटनीति से अपरचित है, कतई कोई भी मायने नहीं रखता। उनकी विडंबना भी रही कि पटना में ये ही वामपंथी लोग एक निरक्षर गृहिणी (लालूपत्नी) को मुख्यमंत्री पद पर समर्थन देते समय ऐसे ही तर्कों पर गौर नहीं कर पाए थे। अपने अभियान में यदि कलाम की युक्तिसंगत मुखालफत करनी थी तो मुल्लाओं को ये मार्क्सवादी उकसा सकते थे कि अब्दुल कलाम मुसलमान नहीं हैं, क्योंकि उन्हें उर्दू नहीं आती। हालांकि बहुतेरे तमिल मुसलमानों ने कभी उर्दू सीखी ही नहीं। वे प्रचार कर सकते थे कि अब्दुल कलाम दही-चावल और अचार ही खाते हें। मुसलमान की भांति मांसाहारी कदापि नहीं।
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रक्षा मंत्रालय में अपनी पहली नौकरी संभालने के पूर्व कलाम ने ऋषिकेश में स्वामी शिवानंद से आशीर्वाद लिया था। अपने पिता जैनुल आबिदीन के परम सखा और रामेश्वरम शिव मंदिर के प्रधान पुजारी पंडित पक्षी लक्ष्मण शास्त्री से धर्म की गूढ़ता जानने में तरुण अब्दुल ने रुचि ली थी। वे संत कवि त्यागराज के रामभक्ति के सूत्र गुनगुनाते थे। नमाज के बाद वे रुद्र वीणा भी बजाते हैं। एमएस सुब्बुलक्ष्मी के भजन को चाव से सुनते रहे, जबकि उनके मजहब में संगीत वर्जित होता है। उत्तर भारत के मुसलमानों को मुसलमान भड़का सकते थे यह कह कर अब्दुल कलाम के पुरखों ने इस्लाम स्वीकार किया शांतिवादी प्रचारकों से जो अरब व्यापारियों के साथ दक्षिण सागर तट पर आए थे। अतः वह उत्तर भारतीय अकीदतमन्द मुसलमानों के पूर्वजों से जुदा हैं जिनसे गाजी मोहम्मद बिन कासिम की सेना ने बदलौते-शमशीर सनातन धर्म छुड़वाया था। कलमा पढ़वाया था। यह मिलती-जुलती बात हो जाती जो किसान नेता मौलाना अब्दुल हमीद खान भाशानी ने ढाका में कही थी कि “ये पश्चिम पाकिस्तानी मुसलमान हम पूर्वी पाकिस्तान (बंगला देशी) मुसलमानों को इस्लामी मानते ही नहीं। तो क्या मुसलमान होने का सबूत देने के लिए हमें लुंगी उठानी पड़ेगी?”
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अब्दुल कलाम के विरोधी इसी तरह कट्टर हिंदुओं को भी बहका चुके थे कि अब्दुल कलाम की मां ने शैशवास्था से सिखाया था कि दिन में पांच बार नमाज अदा करो। मगरीब में मक्का की ओर सिर करो। अर्थात पूर्व में अपने देश की ओर मत देखो। उनके पिता जैनुल आबिदीन ने उन्हें सिखाया कि हर कार्य के बिस्मिल्लाह पर अल्लाह की प्रार्थना करो। केवटपुत्र और अखबारी हॉकर रह चुके अब्दुल कलाम को राष्ट्र का प्रथम नागरिक बनने की राह में अमीर तथा नवधनाढ्यजन नापसंदगी पैदा कर चुके थे कि एक युवक को जिसने पहली सरकारी नौकरी 250 सौ रुपए माहवार से शुरू की थी, आज उसे 50,000 रुपए माहवार करमुक्त वेतन की राष्ट्रपति वाली नौकरी क्यों मिले ?
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अंग्रेजीदां लोग इस भारत रत्न विजेता का तिरस्कार चुके सकते थे इसलिए क्योंकि अब्दुल कलाम ने कहा था कि विज्ञान को छात्र की मातृभाषा में पढ़ाना चाहिए। हालांकि प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस शुरुआती हिचक के बाद मुख्य धारा में लौट आई और उसने अब्दुल कलाम का समर्थन किया। फिलहाल अब्दुल कलाम के संदर्भ में इतना आश्वस्त तो राष्ट्र रहा था कि भारतीय सेना के सर्वोच्च कमांडर होने पर वे भौगोलिक सीमाओं को पूरी तरह अक्षुण्ण रख पाएंगे। सिद्ध हो गया कि इस्लामी पाकिस्तान के प्रक्षेपास्त्र (महमूद) गज़नवी, (मुहम्मद) गोरी और (अहमदशाह) अब्दाली का मुकाबला करने में भारतीय प्रक्षेपास्त्रों (अग्नि, त्रिशूल, नाग) से भी कहीं अधिक यह मुसलमान मिसाइलमैन अब्दुल कलाम ज्यादा कारगर रहा। भारत के रक्षक कलाम में हिन्दुओं से कहीं अधिक देशभक्ति थी।