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विश्व मलेरिया दिवस : बिना ब्लड टेस्ट रिपोर्ट देखे सिर्फ लक्षणों के आधार पर डॉक्टर मलेरिया बताएं तो होशियार हो जाएं  

Dr. Deepak Acharya

बीते दो दिन पहले मुझे अचानक ठंड ले तेज़ बुखार आ गया। आनन-फानन में पड़ोसी मित्र ने मलेरिया की कुछ गोलियां मेरे हाथों में थमा दीं। बुखार को भूलकर मैं इसी सोच में पड़ गया कि आखिर एक लक्षण को देखकर पड़ोसी इस निष्कर्ष पर कैसे आ गए कि मुझे मलेरिया ही हुआ है। ये कहानी लगभग हर दूसरे घर की है। बुखार का आना यानी लोग ये समझ बैठते हैं कि आपको या तो वायरल फीवर है या मलेरिया हो गया है। सच्चाई ये है कि दोनों परिस्थितियों में बुखार जरूर आता है पर जरूरी नहीं कि हर बुखार मलेरिया या वायरलजनित हो। कई बार बैक्टिरिया के संक्रमण से भी बुखार आ सकता है, शरीर में ठंड भी लग सकती है।

सूक्ष्मजीव विज्ञान में पीएचडी करने के दौरान मेरे गुरु ने सबसे पहली सीख यही दी थी कि सूक्ष्मजीव नंगी आंखों से दिखाई नहीं देते हैं जब तक इन्हें माइक्रोस्कोप से देखकर इनकी पुष्ट पहचान न की जाए तब तक इन्हें अंदाजन नाम देना ठीक नहीं। इस बात का जिक्र करने का मकसद ये है कि जब भी हमें तेज़ बुखार हो, बगैर पैथोलॉजी लैबोरेट्री परीक्षण के किसी भी निष्कर्ष पर न आएं। बेवजह वायरल या मलेरिया रोग मानकर सीधे दवाओं के सेवन से आपके लेने के देने तक पड़ सकते हैं। जो डॉक्टर आपकी नब्ज़ देखकर मलेरिया या वायरल बुखार घोषित कर दे, आप खुद अंदाज़ा लगा सकते हैं कि वो कितना काबिल है।

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वैसे भी बुखार कोई रोग नहीं है ये लक्षण है, ये हमारे शरीर का एक ऐसा संवाद है जो बताता है कि शरीर में कुछ गड़बड़ है। इस गड़बड़ की सटीक पुष्टि लैबोरेट्री परीक्षण के बाद ही तय हो सकती है। मैंने भी पैथोलॉजी लैबोरेट्री में जाकर अपना ब्लड सैंपल दिया और पाया कि बैक्टिरिया संक्रमण की वजह से में मेरे शरीर में श्वेत रक्त कणों की संख्या 15000 को पार कर गई थी जो कि 4000 से 10000 के बीच रहनी चाहिए। कुछ दवाओं और पारंपरिक नुस्खों की मदद से मेरी गाड़ी वापस पटरी पर दौड़ गई, बगैर शरीर को ज्यादा नुकसान पहुंचाए।

तपतपाती गर्मी के बाद जैसे ही बारिश ने घेर रखा है, सर्दी खांसी, सूक्ष्मजीव जन्य रोगों और ठंड लगकर होने वाले बुखार बारिश की बौछारों के साथ बीमारियों की झड़ी लगा जाती है। हर तरफ पानी का जमाव, दूषित पेयजल और कीट पतंगों की भरमार कई तरह की बीमारियों को खुला निमंत्रण देते दिखाई देते हैं। ऐसे में हम सब के लिए जरूरी हो जाता है कि बरसात के आनंद के साथ-साथ सेहत की देखरेख पर भी समय दें और रोगों से बचाव के लिए घरेलू उपचारों को अपनाने की कवायद करें।

बरसात की पहली फुहारें मौसम को ठंडा जरूर कर देती हैं लेकिन जैसे ही बरसात थमती है और जमीन पर खिली हुई धूप पड़ती है, मौसम में उमस आ जाती है और यही वो समय होता है जब रोगकारक सूक्ष्मजीवों और कीट-मच्छरों आदि की वृद्धि तेजी से होती है और फिर मलेरिया, डेंगू, हैजा, टायफायड, पीलिया तथा खाज-खुजली जैसे रोग होने की संभावनाएं भी प्रबल हो जाती हैं। इन सभी रोगों के होने का मुख्य कारण यह है कि बारिश के कारण मौसम में आई नमी, गड्ढों और पोखरों में जमा हुए पानी में बैक्टीरिया और अन्य सूक्ष्मजीव तेजी से पनपते हैं। ऐसे मौसम में जहां हवा में ही बैक्टीरिया और रोगजनित कीटाणु फैल रहे हों, कोई भी बीमार हो सकता है।

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बच्चों के लिए यह मौसम बारिश की बूंदों का मजा देने के लिए आता है, साथ ही बीमारियों की चेतावनी भी लाता है। ऐसे में जरूरत है थोड़ा सचेत रहने की, खान-पान में सावधानियां बरतने की और हमारे निवास के आस-पास साफ सफाई की। इस बात का खास तौर से ध्यान रखना होगा कि तेज़ बुखार आए तो डॉक्टर की सलाह जरूर लें और अपने डॉक्टर से जरूर पूछें कि बुखार की वजह क्या हो सकती है? यदि डॉक्टर साहब मलेरिया या वायरल की बात करें तो उनसे ये जरूर पूछ लें कि किस आधार पर ऐसा कह रहें हैं, मेरे निजी विचार हैं कि आपको अपने खून की जांच कराए बगैर मलेरिया और वायरल बुखार को दूर करने के लिए कोई भी दवाएं नहीं लेनी चाहिए।

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(लेखक गाँव कनेक्शन के कंसल्टिंग एडिटर हैं और हर्बल जानकार व वैज्ञानिक भी।)

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