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“जब सभी सांप चूहे खाते हैं तो कुछ सांप जहरीले क्यों होते हैं?”

जानकी लेनिन एक लेखक, फिल्ममेकर और पर्यावरण प्रेमी हैं। इस कॉलम में वह अपने पति मशहूर सर्प-विशेषज्ञ रोमुलस व्हिटकर और जीव जंतुओं के बहाने पर्यावरण के अनोखे पहलुओं की चर्चा करेंगी।
#जानकी लेनिन

11 बरस का अभिनव पूछ रहा था, “रैट स्नेक और रसल वाइपर दोनों ही चूहे खाते हैं लेकिन उनमें से एक जहरीला नहीं है जबकि दूसरे में जहर है, ऐसा क्यों?” कुछ बच्चों और बड़ों ने मिलकर हमारे फार्म पर मौजूद तालाब को सजाया था। इस हाजिर जवाब बच्चे ने जब यह सवाल पूछा तो उस समय वे लोग वापस जाने वाले थे। मुझे नहीं लगता कि उतने कम समय में मैंने और रोमुलस ने इस सवाल के जो जवाब दिए वे काफी थे। इसलिए यहां थोड़ा विस्तार से चर्चा की है।

रेंगने वाले प्राणियों के लिए अपने शिकार को काबू में करना बड़ी चुनौती होता है। इसलिए रसल वाइपर जैसी कुछ प्रजातियां जहर का इस्तेमाल करती हैं। दूसरों के पास कम जहरीले विकल्प होते हैं- मसलन रैट स्नेक या चूहे खाने वाले सांप अपने शिकार को मुंह में पकड़कर जमीन पर दबाते हैं, जबकि अजगर शिकार को अपनी कुंडलियों में जकड़कर मार डालते हैं। इस आधार पर सांपों को जहरीले और बिना जहरवाले- इन दो श्रेणियों में बांटा जा सकता है।


एक दिन पेड़ों पर रहने वाले एक सांप ने एक बड़े से मेंढक को अपने शिकंजे जैसे जबड़ों में पकड़ रखा था। मैं और रोम यह सब देख रहे थे। हालांकि, मेंढक आकार के हिसाब से सांप के लिए काफी बड़ा था लेकिन वह इतना ताकतवर भी नहीं था कि छूटकर भाग सके। क्या सांप का हल्का जहर इतने बड़े मेंढक को मारने के लिए काफी नहीं था? अगर मेंढक मर भी गया तो क्या सांप उसे निगल पाएगा?

एक घंटे बाद, मेंढक के सिर पर एक चमकीला पीला धब्बा धीरे-धीरे आकार में बढ़ने लगा और मेंढक सुस्त पड़ने लगा। जब मेंढक का शरीर एकदम ढीला हो गया तो वह सांप उसे निगलने की जद्दोजहद करने लगा। सांप जब अपने नुकीले संकरे मुंह को मेंढक के बड़े से सिर के आसपास लपेट रहा था तो यह देखकर हमें बड़ी निराशा हो रही थी। आखिरकर थक कर या शायद अपनी कोशिशों को कामयाब न होते देख, सांप ने मेंढक को वहीं छोड़ दिया और झाड़ियों में रेंग गया। हमने मरे हुए मेंढक का मुआयना किया और इस नतीजे पर पहुंचे कि उसके सिर पर पीला धब्बा सांप के जहर से ही बना होगा।

एक बार जब इसी तरह के एक सांप ने रोमुलस की उंगली में अपने दांत गढ़ा दिए थे तो रोम ने बड़े धैर्य से एक पेन की मदद लेकर उसे हटाया था। अगर वह झटका देकर उसे छुड़ाते तो सांप के दांत उंगली में ही टूट कर धंस जाते और फिर एक-एक दांत को निकालना काफी तकलीफदेह होता। रोम की उंगली सूज गई थी, उसमें 24 घंटों तक दर्द हुआ। चूंकि इन सांपों का जहर इंसानों के लिए घातक नहीं होता इसलिए इन सांपों को हल्के जहरवाला कहा जाता है। पर अपने शिकार के लिए तो इनका जहर जानलेवा ही साबित होता है।

यहां तक कि जिन सांपों को बिना जहरवाला कहा जाता है वे भी पूरी तरह से जहर से मुक्त नहीं होते। उदाहरण के लिए कॉमन सैंड बोआ का जहर चिड़ियों के लिए घातक होता है। पर सांपों की यह प्रजाति कोई जोखिम नहीं लेती और अपने शिकार को कुंडली में तो जकड़ ही लेती है साथ ही साथ उसमें काफी अधिक मात्रा में जहर भी पहुंचा देती है।

अब सवाल है कि जब वाइपर सांप एक बार में एक या दो चूहे ही खा सकता है तो वह इतना खतरनाक जहर क्यों बनाता है कि उसकी एक बूंद से सैकड़ों चूहे मर सकते हैं। असल में यह शिकारी और शिकार का संघर्ष है। शिकारी पूरी कोशिश करता है कि एक ही सटीक वार में अपने शिकार को ढेर कर दे, वहीं उनके शिकार भी अपनी तरफ से पूरी कोशिश करते हैं कि वे भूखे सांप का निवाला न बनें, इसके लिए वे जहर के प्रति प्रतिरोधक क्षमता तक विकसित कर लेते हैं। मसलन, अमेरिका के कैलिफॉर्निया प्रांत में पाई जाने वाली गिलहरियों पर नार्दन पैसिफिक रैटल स्नेक का जहर काम नहीं करता। इस प्रतिरोधक क्षमता का मुकाबला करने के लिए ही जहरीले सांपों को और ताकतवर जहर विकसित करते रहना पड़ता है। हमें यह नहीं पता कि भारत में मिलने वाले चूहों, गिलहरियों वगैरह ने जहर को बेअसर करने की अपनी क्षमता बढ़ाई है कि नहीं।


केवल शिकार से प्रतिद्वंदिता के चक्कर में ही सांप अपने जहर को और कातिल नहीं बनाते बल्कि वे ऐसा अपनी आत्मरक्षा के लिए भी करते हैं। सांपों को अपना शिकार बनाने वाले जीव उनके जहर के प्रति कुछ हद तक प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर लेते हैं। सांपों के दुश्मन के रूप में मशहूर नेवले पर कोबरा सांप का जहर खास असर नहीं करता। वहीं नेवला अपनी तेज गति और फुर्ती की वजह से कोबरा को मार डालता है। पर अगर कोबरा अपने जहर को इतना असरदार न बना लेता कि वह नेवले को कुछ देर के लिए अचेत कर दे तो अब तक एक प्रजाति के रूप में कोबरा का नामोनिशान ही मिट जाता।

जहर एक और अहम भूमिका निभाता है। यह मांस को बहुत तेजी से गला देता है। इसमें मौजूद खास एंजाइम शिकार के शरीर में पहुंचकर उसे अंदर से घोलने लगते हैं। आमतौर पर रेंगने वाले जीव अपने शिकार को पचाने के लिए सूरज की गर्मी का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन जहरीले सांपों के पास जहर होने का यह फायदा है कि इसमें मौजूद एन्जाइम शिकार को लगभग पूरी तरह गला देते हैँ बाकी का पाचन सांप के पेट में होता रहता है। जब सांप किसी आदमी को काट लेता है तो ये ही एन्जाइम हमारे शरीर को भी उसी तरह भयंकर नुकसान पहुंचाते हैं।

पर कभी-कभी मैं सोचती हूं कि क्या हम अपने फायदे के लिए जहर का इस्तेमाल नहीं कर सकते। भारत के दूर-दराज इलाकों में स्थानीय लोग मेहमाननवाजी के दौरान ऐसा मीट खाने को देते हैं जो चमड़े की तरह सख्त होता है। चबाते-चबाते मेरे जबड़े में दर्द होने लगता है। अगर में उसे मुंह से निकाल दूं या खाने से इनकार कर दूं तो मेजबानों के नाराज होने का डर रहता है। आखिरकार, मैं उसे निगल लेती हूं जैसे कोई अजगर किसी हिरन को अपने गले के नीचे उतारता है, और उम्मीद करती हूं कि वह मेरे गले में अटकेगा नहीं।

काश कि मेरे पास भी जहर होता।

(ये जानकी लेनिन के निजी विचार हैं।जानकी ने भारत में इंसानों और जानवरों के बीच तनावपूर्ण हो रहे संबंधों को सामान्य करने की दिशा में कई एक्शन प्लान भी बनाए हैं।) 

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