डेचेन डोलकर
जब मैं छोटा था बहुत बारिश और बर्फ होती थी। मई के अंत तक पहाड़ बिल्कुल सफेद रहते थे, लेकिन अब बर्फ बहुत ही कम हो गई है। सफेद की जगह हरे नजर आते हैं। क्योंकि बारिश ज्यादा होने लगी है।” ये वाक्य है लद्दाख के फ्यांग गाँव में रहने वाले टुंडुप वांगाईल (80 वर्ष) का। इसी गाँव के रींचेन वांगड़ूज़ (51 वर्ष) बताते हैं, “साल दर साल वाहनों से निकलने वाले धुएं के कारण वायु प्रदूषण बढ़ रहा है और ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे है।”
जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक समस्या है, लेकिन लद्दाख जैसे संवेदनशील क्षेत्र में यह परिवर्तन प्रत्यक्ष रूप से दिखाई देता है। पानी की कमी जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव को स्पष्ट रूप से दर्शाती है। परम्परा अनुसार लद्दाख के फे और फेयांग गाँव में पानी को साझा करने के लिए विशेष तरीका अपनाया गया है। पानी पहले फ्यांग गाँव से नीचे उतरता हुआ दूसरे गाँव फे तक पहुंचता है और उसी पानी का उपयोग वहां टपकन सिंचाई के लिए किया जाता है। इस प्रकार दोनों गाँव में सिंचाई आसानी से हो जाती है।
परंतु जलवायु परिवर्तन और ग्लेशियर के तेजी से पिघलने के कारण बुवाई के समय (मार्च से मई) में पानी उपलब्ध नहीं हो पाता था। क्योंकि 18,000 फीट की ऊंचाई पर उपस्थित ग्लेश्यिर जून में पिघलना शुरू हो जाते हैं। इस समस्या का समाधान निकाला जम्मू-कश्मीर के रूरल डेवलंपमेंट विभाग के पूर्व सिविल इंजीनियर चेवांग नोरफेल ने।
जिन्होंने महसूस किया कि गर्मी में ग्लेशियर पर लगातार और सीधे रूप में सूरज की किरणें पड़ती है और वो तेजी से पिघलती हुई नीचे आती हैं। पर उस पानी को संरक्षित करने का कोई तरीका नहीं है। एक दिन उन्होंने देखा नल से बूंद- बूंद पानी टपक कर एक गड्ढे में जमा हो रहा था। जो कुछ देर बाद बर्फ का रूप ले लेता। इसी को आधार बनाकर नोरफेल ने हिमनदी के पानी को संरक्षित करने का उपाय ढूंढ निकाला और नीचले स्तर पर कृत्रिम ग्लेशियर बनाकर उस पानी को संरक्षित करना शुरू किया ताकि पानी को एकत्रित किया जा सके और बुवाई के समय इसे उपयोग में लाया जाए।
हालांकि शुरू-शुरू में इस विचार के कारण नोरफेल को स्थानीय लोगों की कड़ी आलोचनाओं का भी शिकार होना पड़ा परंतु सफलता मिलने के बाद सबने इस उपाय को स्वीकारा और अब सिंचाई की समस्या से लोगों को काफी हद तक राहत मिली है। मालूम हो कि चेवांग नोरफेल अब तक लगभग 15 कृत्रिम ग्लेशियर का निर्माण कर चुके हैं।
उनकी इस उपल्ब्धि के कारण उन्हे “आइस मैन ऑफ इंडिया” का खिताब भी मिला। साथ ही 2015 में राष्ट्रपति के हाथों पद्मश्री अवार्ड से भी सम्मानित हुए। चेवांग नोरफेल से प्रेरणा लेकर “सोनम वांगचुक” ने इस ओर एक अन्य प्रयास किया। बताते चलें कि वांगचुक इंजीनियर और स्टूडेंट्स एजुकेशनल एंड कल्चरल मूवमेंट ऑफ लद्दाख (एसईसीएमओएल) के संस्थापक हैं। जिन्होंने लद्दाख में शिक्षा के क्षेत्र में भी कई काम किए हैं। तकनीक का सही उपयोग करके कुछ नया करना वांगचुक की कला रही है। मालूम हो कि साल 2003 में आई थ्री इडियट्स फिल्म वांगचुक के कार्यों से प्रेरित होकर ही बनाई गई थी।
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