फिर वही नेता, फिर वही मन्दिर, विकास रो रहा है

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फिर वही नेता, फिर वही मन्दिर, विकास रो रहा हैफिर वही नेता, फिर वही मन्दिर, विकास रो रहा है।

प्रधानमंत्री मोदी को मन्दिर-मस्जिद के भंवर जाल में फंसाकर विकास को पटरी से उतारने का प्रयास चल रहा है। भूलिए नहीं ये वही भाजपाई हैं जिन्होंने मोदी के प्रधानमंत्री बनने का विरोध किया था। मोदी का वह वाक्य ‘पहले शौचालय फिर देवालय’ क्या एक जुमला था। जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं की चिन्ता छोड़ यदि मन्दिर पर शक्ति खपाई और समर्थक उतावले हो गए, अदालत के फैसले का इन्तजार भी नहीं कर सके तो मन्दिर मिल भी गया लेकिन रामराज्य नहीं मिलेगा। मन्दिर नहीं रामराज्य दीजिए जिसमें ‘दैहिक, दैविक, भौतिक तापा, रामराज्य काहुहिं नहिं व्यापा।’ नर सेवा के माध्यम से नारायण सेवा का एक मौका मिला है इसे गंवाना नहीं चाहिए। ध्यान रहे भगवान दुर्योधन के महल की मेवा छोड़कर विदुर की कुटिया में साग खाते हैं।

पेट भरने को भोजन, तन ढकने को कपड़ा, सुरक्षित रहने के लिए मकान, बीमार पड़ने पर दवाई, शिक्षा के लिए स्कूल कॉलेज और उसके बाद मन्दिर-मस्जिद शोभा दे सकता है। भूखे पेट न तो भव्य मन्दिर बनेगा और न सशक्त भारत। याद रखना चाहिए ‘भूखे भगति न होहि गोपाला, यह लो अपनी कंठी माला।’ मोदी के तथाकथित शुभचिन्तक पता नहीं कैसा भारत बनाना चाहते हैं। ये लोग भूल गए कि उतावलेपन में ही कल्याण सिंह की सरकार गई थी अब मोदी सरकार को भी दांव पर लगा रहे हैं। बिहार में ऐसे ही लोगों ने मोदी का अभियान भोथरा कर दिया था, उत्तर प्रदेश में वहीं दशा होगी यदि मार्ग से विचलित हुए।

रामलला को तथाकथित मस्जिद में सुकून से बैठे हुए मैंने देखा था और हम भी चैन से दर्शन कर पाए थे। जहां तक मन्दिर निर्माण के समर्थकों का सवाल है उन्हें समझ में आ जाना चाहिए कि जहां रामलला विराजमान थे वहीं रहने देते तो ठीक था। जहां भगवान विराजमान हों वही मन्दिर है और कोई भी अदालत यह कभी भी नहीं कह सकती थी कि यह मस्जिदनुमा मन्दिर तोड़ दो। मैं यह तो नहीं जानता कि मस्जिदनुमा मन्दिर तोड़ने से भगवान खुश हुए या नहीं लेकिन इतना जानता हूं कि यह सारी शक्ति, श्रम और समय दरिद्रनारायण की सेवा में लगाया होता तो भगवान जरूर प्रसन्न होते।

मोदी का कहना ठीक था यदि उस पर ध्यान दिया जाता। देवालय से पहले शौचालय बनना ही चाहिए क्योंकि मन्दिर जाने के पहले कोई भी व्यक्ति दैनिक कर्म से निवृत्त होगा, स्नान करेगा तब शुद्ध मन और स्वच्छ शरीर के साथ मन्दिर जाएगा। अपने को रामभक्त कहने वाले लोग जानबूझ कर मोदी को रास्ते से भटकाना चाहते हैं। अब तो रामलला को तपती धूप, ठिठुरन भरी ठंड और घनघोर बारिश में तिरपाल के नीचे बिठा ही दिया है-मुसलमानों ने नहीं, रामभक्तों ने। और रामभक्तों का मनोबल बढ़ाया कांग्रेस वालों ने, कभी ताला खुलवाकर, कभी मन्दिर का शिलान्यास करके तो कभी चुनाव अभियान वहीं से आरम्भ करके।

मन्दिर के लिए बेचैनी दिखाने के बजाय हिन्दुओं को अपने समाज की बुराइयों को दूर करने के लिए कोई ठोस उपाय करना चाहिए। आज भी विधवाओं का नारकीय जीवन, दहेज की आग, छुआछूत की बीमारी, भूखे नंगे लोग और मरती हुई गायें, बालविवाह, साधुवेश में सीताहरण करते रावण, मन्दिरों से मूर्तियों की चोरी और मन्दिरों का कालाधन समाधान चाहता है। इन कामों को करने के लिए हिन्दू सिद्धान्त कहीं भी आड़े नहीं आते परन्तु इनके करने से सुर्खियां नहीं बटोर सकेंगे।

इसी तरह मस्जिद के पक्षधर मुस्लिम समुदाय से उम्मीद थी कि सच्चर कमीशन की रिपोर्ट सही या गलत हो, उसके बाद वह अपने समाज के लिए कुछ सोचेंगे। चार शादियां, बड़ा परिवार, तीन तलाक, बेसहारा महिलाएं, अशिक्षा, महिलाओं का पर्दा और उन पर पाबन्दी, वक्फ की जायदाद की बदइन्तजामी जैसे अनेक मसले हैं लेकिन वे तो बाबर की शान बचाने में अधिक रुचि रखते है। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में लड़कियों को वाइस चांसलर महोदय द्वारा लाइब्रेरी जाने से रोका जाना, काजी और मुल्ला बनने से रोका जाना, आखिर कितनी मलाला संघर्ष करती रहेंगी और कब तक?

उग्र रामभक्तों की बात मानकर सोमनाथ मन्दिर की तर्ज़ पर राम मन्दिर बनाने के लिए इन्तजार करना होगा उस दिन का जब लोकसभा और राज्यसभा द्वारा इस आशय का प्रस्ताव पारित हो सकेगा और यदि मन्दिर बन भी गया तो देश के भूखे-नंगे लोग उसका क्या करेंगे, राजनेता जरूर लाभ उठाएंगे। मोदी यदि सचमुच स्वामी विवेकानन्द के मार्ग पर चलना चाहते हैं तो उन्हें भटकाया न जाए। मोदी जो बातें करते हैं, यदि वे जुम्ले नहीं हैं तो करोड़ों हिन्दू और मुसलमानों को वह सभी कुछ मिल सकता है जिसकी उन्हें चाह है।

  

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