हम मुहम्मद अली जिन्ना को मजहबी आधार पर भारत विभाजन का गुनहगार मानते हैं और कुछ हद तक सही भी है। लेकिन अडवाणी ने उन्हें सेकुलर कहा और जसवन्त सिंह ने अकेले जिन्ना को विभाजन का दोषी नहीं माना । हमें ध्यान रखना चाहिए जब कांग्रेस ने खिलाफत आन्दोलन का समर्थन किया था तो जिन्ना इसके विरुद्ध थे।
बीस के दशक में उन्होंने मुस्लिम लीग के बजाय कांग्रेस की सदस्यता ली थी। उनका मानना था राजनीति भद्र पुरुषों का काम है। इसमें आन्दोलन और सत्याग्रह की जगह नहीं। शायद जिन्ना का सर्वाधिक मतभेद गांधी से था इसलिए पूरी कांग्रेस उनके खिलाफ थी। पाकिस्तान निर्माण के लिए परिस्थितियों को अधिक दोषी मानना चाहिए।
मुहम्मद अली जिन्ना एक ऐसे इंसान थे जो कभी हज करने नहीं गये। पांच बार नमाज नहीं पढ़ते थे, जिन्हें कुरान की आयतें भी ठीक से नहीं आती थीं, पोर्क से परहेज नहीं था। अविभाज्य भारत में विश्वास रखते थे, कांग्रेस पार्टी के सदस्य थे और कट्टरपंथी मुसलमानों से दूर रहते थे। जिन्ना को बहुत समय तक भारत विभाजन अथवा पाकिस्तान बनाने में कोई रुचि नहीं थी। कांग्रेस में तिरस्कार के कारण हठधर्मी जिद्दी जिन्ना जो अपनी जिन्दगी के आखिरी दिनों में थे, अपने जीवन का सोच किनारे रख दिये और मुस्लिम लीग की पतवार पकड़ ली।
जिन्ना को अपमान का घूंट कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन में पीना पड़ा जब उन्होंने खिलाफत आन्दोलन के लिए गांधी जी के सत्याग्रह के तरीके का विरोध करते हुए कहा था ”मिस्टर गांधी-आप तुरन्त सत्याग्रह के जरिए अनपढ़ हिन्दुस्तानियों को भड़काने का काम बन्द कर दीजिए। गांधी जी के अनुयायी जिन्ना पर भड़क गए थे और चीख कर बोले- महात्मा गांधी बोलो। गांधी जी स्टेज पर मौजूद थे परन्तु बोले कुछ नहीं। धीरे-धीरे जिन्ना का कांग्रेस से मोहभंग होता गया। उन्हें कांग्रेस में अपना भविष्य नहीं दिखा और अलगाव का रास्ता पकड़ लिया। इसके बाद जिन्ना को मुस्लिम लीग के संगठन की जरूरत पड़ गई।
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मुहम्मद अली जिन्ना और जवाहर लाल नेहरू दोनों ही तेज दिमाग के नेता थे, उन्हें किसी दूसरे का नेतृत्व स्वीकार नहीं था। जिन्ना के साथ एक और कठिनाई थी, उनके पास समय बहुत कम था। उनके फेफड़ों में टीबी या कैंसर था जिसे बम्बई के चेस्ट स्पेशलिस्ट डॉक्टर पटेल और स्वयं जिन्ना के अलावा कोई नहीं जानता था। वह बहुत जल्दी में थे, बेताब थे। उस बेताबी में जिन्ना ने अपनी तकरीरों से मुसलमानों में वही उन्माद पैदा किया जो लीग चाहती थी ।
जिन्ना ने पाकिस्तान में हिन्दुओं को समान अधिकार देने की बात कही थी लेकिन वादा पूरा होने के पहले वह चले गए। पता नहीं कहां तक सही है लेकिन कहते हैं आखिरी दिनों में एक बार जिन्ना के कमरे से निकलते हुए लियाकत अली को यह कहते सुना गया ”बुड्ढे को अपने किए पर पछतावा हो रहा है”।
जो भी हो, हम जिन्ना को सेकुलर नहीं कह सकते क्योंकि उनके जीवन का अन्तिम फैसला सेकुलर नहीं था। पटेल और नेहरू ने यदि गांधी जी की बात मान ली होती और जिन्ना को सम्पूर्ण भारत का प्रधानमंत्री बनाया होता तो पूरे भारत की वही दशा होती जो आज पाकिस्तान की है। कहना कठिन है कि बंटवारे से जन धन की अधिक हानि हुई या भारत अखंड रहने से होती।