राजा भोज, भोजपुर की झील और वहां का मंडीदीप

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से पच्चीस किलोमीटर दक्षिण पूर्व और मंडीदीप से कुछ किलोमीटर नीचे भोजपुर की प्राचीन बस्ती है, जिसमें 1000 साल पुराना 'रहस्य' और दुनिया का सबसे पुराना और अभी भी काम कर रहा एक बांध मौजूद है।

Manoj MisraManoj Misra   16 Aug 2022 9:33 AM GMT

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राजा भोज, भोजपुर की झील और वहां का मंडीदीप

भोजपुर अपने अधूरे शिव मंदिर, कुछ जैन मंदिरों और महाशिवरात्रि पर आयोजित होने वाले एक लोकप्रिय मेले की भव्यता के लिए मशहूर है। 

भोपाल से कुछ किलोमीटर दूरी पर भोपाल-होशंगाबाद रोड पर स्थित मंडीदीप आज एक चहलकदमी भरा औद्योगिक केंद्र है। हालांकि यह चारों तरफ से ऊंचाई पर स्थित है। इसका नाम मंडी और द्वीप के संयोजन से बना है, जो असंगत लगता है।

कुछ छोटे आकार के नालों को छोड़ कर यहां ऐसा कुछ नहीं है जो इसे द्वीप का दर्जा देते हों, तो इसका नाम कैसे उत्पन्न हुआ?

रहस्य को जानने के लिए हमें वास्तव में लगभग 1,000 साल पीछे जाना होगा।

भोपाल (मध्य प्रदेश की राजधानी) से 25 किलोमीटर दूर दक्षिण पूर्व में और मंडी द्वीप से कुछ किलोमीटर की दूरी पर भोजपुर की प्राचीन बस्ती है, जो विंध्य सिस्टम के बाहरी हिस्से में फैली हुई है जहां बेतवा नदी एक कण्ठ में प्रवेश करती है।इसकी नौ संस्थापक नदियाँ कलियासोत, केरवा, बंगना, सेगरू, बंसी, जामनी, गोदर, गेरवा और अजनार हैं (मानचित्र 1 देखें)। यह एक घाटी की पहाड़ी ढलानों से नीचे बहती हैं जो कि मशहूर हिंदी शब्द 'ॐ' से मिलती-जुलती हैं।


भोजपुर अपने अधूरे शिव मंदिर, कुछ जैन मंदिरों और महाशिवरात्रि पर आयोजित होने वाले एक लोकप्रिय मेले की भव्यता के लिए मशहूर है। यहां एक हजार साल पुराना और अभी भी चालू हालत में एक बांध है। भोजपुर आने वालों को इस चमत्कारिक इतिहास का बहुत कम एहसास होता है, जैसे वह देख रहे हैं।

भोजपुर का शिव मंदिर

यह एक चमत्कारी मंदिर है। सबसे बड़े लिंगों में से एक यहां मौजूद है, यह अपने निर्माता राजा भोज की उत्कृष्ट शिल्प कौशल और स्थापत्य सरलता की अलामत है। इसका अधूरा पन इस बात की तरफ इशारा करता है कि राजा भोज की मृत्यु उस समय हो गई थी जब यह निर्माणाधीन था।

लेकिन यह कहानी मंदिर के बारे में कम और बांधों और एक आश्चर्यजनक झील के बारे में ज्यादा है जो चार सौ साल पहले तक थी, मुख्य बांध तोड़ कर जिसे बाहर निकाल दिया गया था।


सीरिया के लेक होम बांध (14 वीं शताब्दी) को दुनिया का सबसे पुराना जीवित बांध माना जाता है। यह दावा गलत है क्योंकि 11वीं शताब्दी में भोपाल में बना बांध अभी भी जीवित है और काम कर रहा है लेकिन भोपाल के ज्यादातर लोग इसके बारे में कम ही जानते हैं।

जब राजा भोज की बीमारी से बनी विशाल झील

किंवदंतियों में है कि राजा भोज (शासनकाल: 1010 - 1055 सी.ई), परमार वंश के सबसे शानदार (योद्धा के साथ-साथ कवि और वास्तुकार) राजा थे, जिन्होंने अपनी राजधानी धार के साथ पश्चिमी मध्य प्रदेश में मालवा क्षेत्र पर शासन किया था। वह एक गंभीर बीमारी (कथित रूप से कुष्ठ रोग) से ग्रसित थे और इलाज से इंकार कर दिया था।

तब एक साधु ने भविष्यवाणी की कि अगर राजा एक ऐसी झील जिसमें 365 धाराओं और झरनों का पानी आता हो नहीं नहाते हैं तो राजा की मृत्यु हो जाएगी। झील को बनाने के लिए ऐसा स्थान विंध्य घाटी के अंदर काफी खोज के बाद मिला, जो बेतवा नदी के मुख्यालय का गठन करता था, लेकिन इसमें सिर्फ 359 धाराएँ थीं।

इस समस्या का हल कालिया नाम के एक स्थानीय गोंड मुखिया ने किया जिसने बेतवा से मुनासिब तरीके से मिलने के लिए एक और नदी को री-डायरेक्ट करने का सुझाव दिया। यह नदी बाद में कलियासोत कहलाने लगी। नदी को पर्याप्त पानी ले जाने के लिए, कोलन नाम की एक दूसरी नदी पर एक बांध बनाया गया था, जिसका स्लुइस (भड़भड़ा) दिलचस्प रूप से इसके पिछले जल कलियासोत में बह जाने के लिए बनाया गया था।

कोलन पर बना बांध एक बड़ी झील (भोजताल, जिसे ऊपरी झील भी कहा जाता है) का कारण बना, जिसके चारों तरफ बाद में भोपाल शहर बसा।

विशाल झील (जिसे 'महान भोजपुर झील' कहा जाता है), जिसने राजा भोज को ठीक किया था, भोजपुर में बेतवा नदी को बांधकर बनाया गया था। कलियासोत को मुख्य बांध के ऊपर की तरफ बेतवा में मोड़ने के लिए पास में एक और बांध बनाया गया था।

जब राजा भोज भोजपुर में भव्य शिव मंदिर का निर्माण करने गए, तो इसने उन्हें विशाल भोजपुर झील, उसके द्वीपों और झील से परे पहाड़ियों के पानी के विशाल विस्तार का अविस्मरणीय दृश्य प्रदान किया होगा।

लगभग 400 साल बाद मालवा के सुल्तान होशंगशाह ने 1434 ई. में विशाल भोजपुर झील के मुख्य बांध को नष्ट करके बहा दिया था। ऐसा उन्होंने कुछ व्यापारियों की शिकायत पर किया, वे उन डाकुओं से परेशान थे जो हमला करने के बाद झील के द्वीपों में छुप जाते थे।


बांध की खोज

मैं पहली बार 1990 के दशक में मंदिर में दर्शन के लिए भोजपुर आया था। सितंबर 2017 की यात्रा के दौरान मैंने अपने लिए बांध की खोज की थी। और यह कैसी खोज थी? विशेषज्ञ रूप से बुने हुए लाल बलुआ पत्थर से तैयार (साइक्लोपियन चिनाई) पूरी तरह से कार्यात्मक बांध की खोज ने मुझे आश्चर्यचकित कर दिया जिसमें किसी भी तरह की सीलिंग सामग्री नहीं लगी थी।

एक किलोमीटर से अधिक लंबा इसका मकसद कलियासोत के रास्ते को री-डायरेक्ट करने के लिए था, जिसका असल रास्ता अभी भी बांध के नीचे की तरफ समझा जा सकता है।

पानी की ताकत का सामना करने के लिए इस तरह के बांध की क्षमता में इंजीनियरिंग की सरलता और आत्मविश्वास को देख कर हर कोई हैरान हो गया। बहुत बाद में मुझे पता चला कि होशंगशाह के सैनिकों को बेतवा पर बने मुख्य बांध को तोड़ने और विशाल भोजपुर झील को निकालने में लगभग तीन महीने लग गए थे।

आज घाटी के मुहाने पर स्थित बेतवा, गैर-मानसून महीनों में एक नदी के माफी है, जो मंडीदीप के उद्योगों के प्रदूषित अपशिष्टों और भोपाल नामक खराब नियोजित 'फैलाव' के हिस्सों का अनुपचारित सीवेज है।

यह बात मशहूर है कि वर्तमान भोपाल 18 वीं शताब्दी की शुरुआत में एक पश्तून दोस्त मोहम्मद खान (1660-1726) को मिला था, जिसने उसकी मृत्यु के बाद एक गोंड रानी, कमलापति के कब्जे वाले क्षेत्रों को हड़प लिया था, जिसने उससे मदद मांगी थी।

भोजताल के तट पर बसा भोपाल तब सिर्फ एक गांव था। इसलिए जब दोस्त मोहम्मद खान ने भोपाल शहर की स्थापना की तो भोजताल अच्छी तरह से स्थापित था। यह दावा किया जाता है कि भोजताल की प्रसिद्धि दोहे के सौजन्य से व्यापक थी, "ताल हो तो भोपाल ताल, सब दसरे तल्या", जिसका अर्थ है कि "यदि कोई झील है, तो वह भोपाल झील है, अन्य सभी तालाब हैं"।

लेकिन मान्यता यह है कि उक्त दोहे हकीकत में विशाल भोजपुर झील की तरफ इशारा करते हैं, न कि वर्तमान भोजताल की तरफ, जो 30 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है, जिसकी भोजपुर झील के 400 से अधिक वर्ग किमी से कोई तुलना नहीं है।


जैसा कि ऊपर वर्णित महान भोजपुर झील की कथा पहली बार 1888 में एक ब्रिटिश खोजकर्ता डब्ल्यू. किनकैड ने इंडियन एंटीक्वैरी, अ जर्नल ऑफ ओरिएंटल रिसर्च के खंड XVII के पृष्ठ 348-352 पर 'Rambles among ruins in Central India' शीर्षक से वर्णित है। जिसमें राजा भोज की कहानी, उनकी बीमारी और विभिन्न बांधों के निर्माण और कलियासोत नदी के री-डायरेक्ट सहित झीलों की कहानी है।

दिलचस्प बात यह है कि 2005 और 2008 के बीच मध्य प्रदेश जल और भूमि प्रबंधन संस्थान (वाल्मी), ने भोपाल के डॉ ए के विश्वकर्मा के नेतृत्व में अध्ययन किया जो विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग की तरफ से वित्त पोषित था इस अध्ययन ने तथाकथित ओम घाटी में भूमि की विस्तृत भू-जल-पर्यावरणीय जांच की। उनके द्वारा 'पुरानी भोजताल' नामक विशाल भोजपुर झील की कथा को वैज्ञानिक रूप से मान्य करने के लिए (मानचित्र 2) देखें।

उनके अनुसार, "सभी बांधों के बुनियादी हिस्से का निर्माण पत्थरों से किया गया था और यह बड़े साइज के पत्थरों और मोरम की मिट्टी मिला कर कपास की काली मिट्टी से पोखर को ढक दिया गया था। बांधों के दोनों किनारों का निर्माण पत्थर की पिचिंग द्वारा किया गया था। पिचिंग लंबवत है और लॉकिंग क्षैतिज है। बलुआ पत्थर के बड़े ब्लॉक एक-दूसरे से कसकर बंद कर दिए गए थे। बलुआ पत्थर के ब्लॉक इस तरह से रखे गए थे कि वे बांध के अंदरूनी हिस्से की ओर झुके हुए थे। भोजताल की लहरों के प्रत्यक्ष बल से बचने के लिए बांधों को थोड़ा गोलाकार बनाया गया था।"

उनके शोध ने पुष्टि की है कि लगभग 421 वर्ग किमी में फैली विशाल झील वास्तव में मौजूद थी और यह कि झील में पांच द्वीप थे, जिनमें से केंद्र में मंडीदीप था।

लेखक डॉ एके विश्वकर्मा की तरफ प्राप्त तकनीकी इनपुट का शुक्रिया अदा करते हैं।

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