मिलावट का बाज़ार गर्म, जरा ध्यान दें

Deepak AcharyaDeepak Acharya   8 Oct 2016 2:46 PM GMT

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मिलावट का बाज़ार गर्म, जरा ध्यान देंमिलावट का बाज़ार गर्म, जरा ध्यान दें


रविवार की रात मेरे पड़ौसी के बच्चे को अचानक उल्टियाँ और दस्त होने लगे और आनन फानन में उसे अस्पताल में दाखिल भी कराना पड़ा। दर असल शाम को घर में बाज़ार से मिठाईयाँ खरीद के लायी गयी थी और देर शाम बच्चे के पिताजी को एक बार उल्टी भी हुयी। सामान्य अपचन की घटना समझकर समस्या को दरकिनार कर दिया गया लेकिन देर रात होते होते उनके सुपुत्र की हालत जरूर बिगड़ गयी। मिलावट से बने खाद्य पदार्थों और फूड पॉयजनिंग की वजह से बच्चे की ये हालत हो गयी। अगली सुबह बच्चे को अस्पताल से छुट्टी तो मिल गयी लेकिन अब उनका परिवार बाज़ार से खान-पान की वस्तुओं के खरीदने से तौबा जरूर करेगा। त्यौहारों का दौर जारी है और हिन्दुस्तान के हर हिस्सों में आने वाले दीपावली पर्व की धूमधाम रहेगी। जहाँ एक ओर ये त्यौहारों का मौसम खुशियां लेकर आएगा वहीं इस दौरान बनने और उपभोग में आने वाले अनेक तरह के नकली या अपमिश्रित पकवानों और मिठाईयों के सेवन की वजह से कई बार ये खुशियों का मौसम मातम में भी तब्दील हो सकता है।

एफएसएसएआई समय-समय पर उपभोक्ताओं को खाद्य पदार्थों में होने वाली मिलावटों को लेकर जागरूकता अभियान भी चलाता है। मिलावटों की वजह से उपभोक्ता ना सिर्फ ठगा जाता है बल्कि उसकी सेहत से भी अच्छा खासा खिलवाड़ होता है। एक सामान्य उपभोक्ता को खाद्य पदार्थों में होने वाली मिलावटों की जानकारी नहीं होती और इसी बात का फायदा उठाते हुए कुछ विक्रेता लोग मिलावट करने जैसे कुकृत्य करते हैं। अपमिश्रित खाद्य पदार्थ दरअसल वे खाद्य पदार्थ जिनमें कुछ ऐसे पदार्थ मिला दिए गए हों जिनकी वजह से खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता कमजोर हो जाती है या खाद्य पदार्थ की प्रकृति बदल जाती है और इनके सेवन से सेहत कमजोर होती है और कई बार हालत बिगड़ भी सकती है। दूध, दूध से बनी मिठाइयां, आटा, खाद्य तेल, मसाले, दाल, कॉफी, चाय, अचार, बेसन जैसे खाद्य पदार्थों में अक्सर मिलावट की जाती है। अब हर खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता को परखने के लिए हम एजेंसियों के भरोसे तो रह नहीं सकते इसलिए पारंपरिक तौर पर अपनाए जाने वाले मापदंडों को आधार मानकर काफी हद तो हम असली और नकली में पहचान तय कर सकते हैं।

दूध में पानी की मिलावट को देखने के लिए एक अतिसाधारण सा तरीका अपनाया जा सकता है। किसी चिकनी ढलान वाली लकड़ी या पत्थर की सतह पर दूध की एक या दो बूंदों को टपकाकर देखिए। दूध बहता हुआ नीचे की तरफ गिर पड़ेगा लेकिन एक सफेद धार सा निशान पीछे छोड़ जाएगा। यदि दूध में पानी की मिलावट हो तो दूध के बहने के बाद लकड़ी या पत्थर की सतह पर किसी तरह का सफेद निशान नहीं दिखाई देगा। कई लोग दूध में डिटर्जेंट मिलाकर दूध की सफेदी ज्यादा करते हैं और बाद में इसमें पानी भी खूब मिलाया जाता है। साधारण तौर पर देखा जाए तो ऐसा दूध गाढ़ा जरूर दिखायी देता है लेकिन इससे होने वाले नुकसान का आंकलन भी कर पाना कठिन होता है। दूध की 5-10 मिली मात्रा किसी कांच के शीशी या टेस्ट ट्यूब में लेकर जोर-जोर से हिलाया जाए, यादि झाग बने और यह झाग देर तक बना रहे तो यकीन कर लीजिएगा कि इसमें डिटर्जेंट मिलाया गया है। शक्कर में भी मिलावट को परखा जा सकता है। शक्कर में सफेदी के लिए अक्सर इसमें चाक का चूर्ण मिलाया जाता है। इसे पता करने के लिए शक्कर की थोड़ी सी मात्रा लेकर किसी कांच की गिलास में डाला जाए और इसमें पानी मिला दिया जाए। कुछ देर में चाक का चूर्ण पानी की सतह पर आसानी से दिखायी देगा।

बाज़ार में बिकने वाले काफी बड़े-बड़े ब्रांड के शहद भी नकली मिले हैं और तो और अक्सर गाँवों के किनारे या सड़कों पर लोगों को शहद बेचते देख सकते हैं लेकिन ये शहद भी मिलावट का शिकार हो चुका है। लोग शहद में शक्कर के पानी का घोल मिलाकर भी बेचते हैं और इस प्रक्रिया में शहद की गुणवत्ता पर इसका सबसे बुरा असर होता है। अगली बार जब आप शहद खरीदने जाएं, उसे कपास पर डालें और इसे जलाएं। यदि कपास आसानी से जल जाए तो मान लीजिए कि शहद असली है वर्ना नकली होने की हालत में ये जलेगा नहीं या जलेगा तो पानी की उपस्थिति होने की वजह से आवाज करता हुआ जलेगा। इसके अलावा एक काम और किया जा सकता है। शहद की एक या दो बूंद को एक गिलास पानी में टपकाइये, यदि यह पानी की सतह पर बैठ जाए और पानी में स्वत: घुले नहीं तो शहद असली होगा अन्यथा इसमें शक्कर का घोल हो तो पानी के संपर्क में आते ही यह घुल जाएगा या पानी की सतह पर एकरूप स्थिर नहीं होगा।

नमकीन पकवानों में इस्तेमाल में लाए जाने वाले मसाले भी मिलावट का शिकार हो चुके हैं। मिर्च में लालपन और हल्दी में पीलापन लाने के लिए कई व्यापारी कृत्रिम रंगों का इस्तेमाल करते हैं। इन तरह के रंगों की पहचान करने के लिए एक चम्मच चूर्ण को पानी में डालिए और फिर देखिए कि अचानक पानी का रंग लाल (मिर्च) और पीला (हल्दी) हो जाता है तो तय करा जा सकता है कि इन खाद्य पदार्थों में कृत्रिम रंगों का इस्तेमाल किया गया है।

अक्सर बाज़ार में ज्यादा पैसा कमाने की चाह से व्यापारी केसिया और अमरूद जैसे पौधों की छाल पर दालचीनी का कृत्रिम तेल छिड़क देते हैं और इसे दालचीनी के नाम से बेचा जाता है। दालचीनी का छाल बेहद पतली होती है, इसे पेंसिल पर भी लपेटा जा सकता है जबकि नकली छाल को आसानी से देखकर भी पहचाना जा सकता है क्योंकि नकली छाल पर कई सतहें दिखाई देंगी। इसके अलावा असली दालचीनी को हाथ में रगड़ा जाए तो यह हथेली पर रंग छोड़ देती है। मक्के की बालियों को काटकर कोल तार रंग लगाकर केसर के नाम से बेचा जाता है। कुछ मात्रा लेकर पानी में डुबोया जाए तो नकली केसर तुरंत छोड़ देगा जबकि असली केसर का रंग आहिस्ता-आहिस्ता निकलता है। पारंपरिक ज्ञान को इस्तेमाल में लाकर काफी हद तक हम प्राथमिक तौर से मिलावट परख सकते हैं क्योंकि आजकल मिलावट का बाज़ार गर्म है, ध्यान देने की जरूरत है।

(लेखक हर्बल विषयों के जानकार हैं। यह उनके निजी विचार हैं।)

    

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