देश की गरीब और अनपढ़ जनता जब विश्वास कर लेती है तो मानकर चलती है कि नेता जो भी करेगा ठीक करेगा। जवाहर लाल नेहरू के बाद ऐसा भरोसा किसी नेता पर जनता ने नहीं किया यदि जयप्रकाश नारायण को छोड़ दें जो शासन के भाग नहीं थे। मोदी ने रणनीति के तहत मुख्यमत्री का चेहरा नहीं पेश किया, जिससे पार्टी एकजुट रही, तीन तलाक और कब्रिस्तान की बातें करते रहे जिससे संघ और हिन्दूवादी नेताओं को तसल्ली बनी रही। गुजरात में 2002 के बाद दंगे नहीं हुए थे इसलिए मुसलमानों को भरोसा है और गैर यादव वोटरों का पूरा समर्थन मिला। यह तो केवल मोदी जानते हैं कि उन्हें और उनकी सरकार को क्या करना है, सब की मदद से भारत को दुनिया में यशस्वी बनाना। जनता को उनके इरादे पर भरोसा है।
अपने को दलित की बेटी कहने वाली मायावती को विश्वस नहीं था कि बीजेपी को दलितों और मुसलमानों का भी वोट मिलेगा इसलिए उन्होंने कहा यह परिणाम उनके गले नहीं उतर रहा है। उन्होंने ईवीएम मशीन को मैनेज किया गया है ऐसा आरोप लगाया। उनका तर्क कि मुस्लिम बहुल इलाकों में भाजपा को कैसे इतने वोट मिल गए। यह सच है कि देवबन्द में भाजपा जीती है लेकिन इससे यह नहीं साबित होता कि मशीन को मैनेज किया गया है। यह सम्भव है कि मुस्लिम समाज ने मोदी पर भरोसा करना आरम्भ कर दिया है। सभी विकसित देशों में वोटिंग मशीन का उपयोग होता है और ऐसे आरोप कहीं नहीं लगते। अपनी हंसी उड़वाने के अलावा कुछ हासिल नहीं होगा।
उत्तर प्रदेश में भारी मतों से हार जीत पहले भी होती रही हैं लेकिन उन फैसलों का आधार कभी आपातकाल पर भारी रोष, कभी राम लहर का भावात्मक उन्माद तो कभी काशीराम का जातीय आवाहन होता था। लहरें सतह पर हमेशा दिखाई पड़ती थी। यह पहला मौका है जब जनता ने गणित लगाकर शान्त लहर चलाई जो राजनीति के पंडितों को भी दिखाई नहीं पड़ी। स्वाभाविक है बहुतों के गले नहीं उतरेगा। जनता का फैसला इतना प्रखर न होता यदि अखिलेश यादव की तरफ से राहुल गांधी ने आक्रामक प्रचार न किया होता। राहुल का आक्रामक स्टाइल पहले भी बूमरैंग करता रहा है और कांग्रेस की संगत में रह कर अखिलेश यादव भ्रष्टाचार को गाली दे रहे थे तो जनता को बिल्कुल विश्वास नहीं हो रहा था, उसे निर्णय लेने में आसानी हो गई।
कुछ लोगों की आलोचना कि मोदी ने स्मशान और कब्रिस्तान जैसा छोटा मुद्दा उठाया, लेकिन वे भूल जाते हैं कि कट्टर पंथी हिन्दुओं के मन की भी कुछ बात करनी होगी और सब का साथ सब का विकास के मार्ग पर लाना होगा। अखिलेश की हार में परिवार के झगड़े का विशेष योगदान नहीं है। इसके विपरीत उन्होंने शिवपाल के विरोध के बावजूद अंसारी की कौमी एकता दल को अस्वीकार करके, मथुरा में रामवृक्ष पर कड़ी कार्रवाई करके और बाहुबलियों को टिकट न देकर बड़ी शुभकामना अर्जित की थी। लेकिन अपने पिता और अनुभवी राजनीतिज्ञ मुलायम सिंह यादव की सलाह के विपरीत कांग्रेस से गठबंधन करके सब गंवा दिया।
राहुल गांधी आए दिन प्याज, टमाटर, दालों के भाव बताया करते थे लेकिन सब सस्ते हो गए और वार खाली गया। नोटबन्दी को लेकर सबसे अधिक शोर किया लेकिन जिस जनता का नाम लेकर आक्रामक प्रचार कर रहे थे वह बिल्कुल शान्त थी यह सोचकर कि जिसे चोट लगी है वही चिल्ला रहा है। नोटबन्दी की सजा के बजाय जनता ने मोदी को इनाम दिया। जब राहुल गांधी, अरविन्द केजरीवाल और ममता बनर्जी जैसे लोग नरेन्द्र मोदी पर इल्जाम लगाते हैं तो जनता प्रतिवाद भले ही न करे, प्रभावित नहीं होती क्योंकि मोदी पर पक्षपात, परिवारवाद या भ्रष्टाचार के कोई इल्जाम नहीं लगे हैं।
भारत की राजनीति में यह मोदी का बहुत बड़़ा योगदान होगा यदि मुसलमानों के मन में हिन्दुओं के प्रति अविश्वास जो जिन्ना ने पैदा किया था वह समाप्त कर सकें। जातियों के बीच का पुर्वाग्रह जो पिछले वर्षों में पैदा हो गया है और क्षेत्रीय असन्तुलन जिससे क्षेत्रीय दल जन्में हैं समाप्त हो सके। पेूर्वोत्तर के प्रदेशों में मोदी की पकड़ इस बात का प्रमाण है कि जनता विरोधी शोर शराबा पर नहीं, किए गए कामों पर भरोसा करती है।