भूपेश दीक्षित
आत्महत्या का सीधा अर्थ है स्वयं को मारना अर्थात जानबूझ कर अपनी मृत्यु का कारण बनना। देश में पिछले कुछ सालों से आत्महत्या के प्रकरण बढ़ते ही जा रहे हैं। ऐसा देखा गया है हर आत्महत्या के पीछे कोई न कोई कारण छिपा होता है। अकारण आत्महत्या के मामले न के बराबर हैं। आर्थिक संकट, लम्बी बीमारियां, तनाव, अवसाद, मानसिक विकारों आदि अनेकों कारणों को आत्महत्या का कारण मन गया है। आत्महत्या एक प्रमुख जनस्वास्थ्य और सामाजिक समस्या है जिसका समाज पर भावनात्मक और आर्थिक असर पड़ता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार हर साल दुनियाभर में करीब आठ लाख लोग आत्महत्या करते हैं। साल 2020 तक यह संख्या बढ़कर 15 लाख तक पहुंचने का अनुमान है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, दक्षिण एशिया में दो लाख 58 हजार मौतों का कारण आत्महत्या है जहां हर 40 सेकेंड में एक शख्स आत्महत्या के कारण मर रहा है। पिछले तीन दशक में भारत में आत्महत्या की दर 43 फिसिदी बढ़ी है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के प्रतिवेदनों का अध्ययन करने से पता चलता है कि वर्ष 2000 से 2015 के बीच भारत में 18.41 लाख लोगों ने आत्महत्या की। इनमें से 3.85 लाख लोगों ने विभिन्न बिमारियों के कारण आत्महत्या की। मीडिया (डिजिटल व प्रिंट) द्वारा प्रसारित की जाने वाली प्रत्येक आत्महत्या की खबर से सीधे तौर पर कम से कम छह लोग प्रभावित होते हैं।
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आत्महत्या की रिपोर्टिंग में मीडिया को भी अधिक जिम्मेदार भूमिका निभाने की जरूरत है। इसी को ध्यान में रखते हुए आत्महत्या रोकथाम व आत्महत्या की संवेदनशील और जिम्मेदारीपूर्वक रिपोर्टिंग और कवरेज करने हेतु विश्व स्वास्थ्य संगठन एवं इंटरनेशनल एसोसिएशन फॉर सुसाइड प्रिवेंशन ने मीडिया पेशेवरों के लिए ‘प्रेवेंटिंग सुसाइड – ऐ रिसोर्स फॉर मीडिया प्रोफेशनल’ नामक मार्गदर्शिका पुस्तिका बनाई है, जिसका द्वितीय संशोधित संस्करण वर्ष 2017 में प्रकाशित हुआ है। यह पुस्तिका संक्षिप्त रूप से मीडिया के प्रभाव पर वर्तमान साक्ष्य का सारांश प्रस्तुत करती है।
पुस्तिका आत्महत्या की रिपोर्टिंग और कवरेज करने के तरीके के बारें में मीडिया पेशेवरों के लिए जानकारी प्रदान करती है और साथ ही यह सुझाव देती है कि कैसे सुनिश्चित किया जाये की रिपोर्टिंग व कवरेज सटीक, जिम्मेदारीपूर्वक और उचित हो।
भारत सरकार ने भी वर्ष 2014 में राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य नीति के बिंदु संख्या 5.3.3.2 में अपनी प्रतिबद्धता दर्शायी है कि भारत में आत्महत्या की जिम्मेदारीपूर्वक मीडिया रिपोर्टिंग करने के लिए मीडिया पेशेवरों के लिए दिशा-निर्देश तैयार करेंगे किन्तु सरकार द्वारा आजतक मीडिया के लिए ऐसे कोई भी दिशा-निर्देश नहीं बनाये गए है और ना ही जारी हुए है। ज्ञात हो कि विश्वभर में होने वाली कुल आत्महत्याओं में से 25 प्रतिशत आत्महत्याएं भारत में होती हैं जो कि सरकारी उदासीनता और चिंतनीय स्थिति को दर्शाता है।
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आत्महत्या पर जिम्मेदारीपूर्वक रिपोर्टिंग और कवरेज पर क्या प्रमुख जानकारी और सुझाव देती है मार्गदर्शिका पुस्तिका? मीडिया खबर के अंत में यह जानकारी उपलब्ध करवाएं या प्रकाशित करें कि आपातकालीन स्थिति में मदद कहाँ से मिल सकती है? जैसे कि आत्महत्या रोकथाम केंद्र, आपातकालीन सेवा केंद्र अथवा विशेषज्ञों के फ़ोन नंबर या वेबसाइट का लिंक। नंबर और वेबसाइट की सटीक जानकारी उपलब्ध करवाएं ऐसा ना हो कि नंबर अथवा वेबसाइट चालू स्थिति में ना हो और आपातकालीन स्थिति में समस्या और भी विकट हो जाये।
अधिक से अधिक एक या दो नंबर या वेबसाइट की जानकारी खबर के अंत में उपलब्ध करवाए जिससे कि यदि किसी व्यक्ति के मन में आत्महत्या के विचार आ रहे हैं तो वो समय रहते वह इन नंबरों अथवा वेबसाइट पर विशेषज्ञों की मदद ले सकें।
ऐसी भाषा या हेडलाइंस का उपयोग ना करें जो आत्महत्या की खबर को सनसनीखेज या बहुत ही सामान्य बनाती हो। ऐसी भाषा का उपयोग बिल्कुल भी ना हो जो आत्महत्या को किसी समस्या के समाधान के रूप में प्रस्तुत करती हो। अक्सर ऐसा देखने में आया है कि रिपोर्टिंग करते समय मीडिया पेशेवर ‘कमिटेड सुसाइड/प्रतिबद्ध आत्महत्या’ वाक्यांश का उपयोग करते हैं।
यह वाक्य आत्महत्या को आपराधिक श्रेणी में लाता है जबकि भारत में मानसिक स्वास्थ्य देखरेख अधिनियम 2017 के नियम 115 के अंतर्गत भारतीय दण्ड संहिता की धारा 309 में अंतर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी कोई व्यक्ति जो आत्महत्या का प्रयास करता है, जब तक कि अन्यथा साबित न किया जाये को गंभीर दबाव से ग्रस्त माना जायेगा और उस संहिता के अधीन दण्ड के लिए उसका विचारण नहीं किया जा सकता। पुस्तिका सुझाव देती है कि ‘कमिटेड सुसाइड’ वाक्यांश की जगह ‘व्यक्ति की आत्महत्या से मौत हुई’ या ‘व्यक्ति ने अपना जीवन स्वयं नष्ट कर लिया’ खबर प्रकाशित करना ज्यादा उचित तरीका है इससे आत्महत्या के प्रति समाज में व्याप्त लांछन या कलंक को कम किया जा सकता है।
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खबर में आत्महत्या की प्रक्रिया और विधि का विस्तृत वर्णन ना करें, जैसे कि आत्महत्या करने का तरीका क्या था? आत्महत्या के लिए व्यक्ति ने किन वस्तुओं का किस प्रकार से उपयोग किया, आत्महत्या से मरने वाले व्यक्ति का फोटो, सुसाइड नोट, टेक्स्ट मैसेज, सोशल मीडिया पोस्ट, ईमेल, वीडियो फुटेज आदि को प्रकाशित ना करें क्योंकि ऐसा देखने में आया है कि इसका नकारात्मक असर खबर पढ़ने एवं सुनने वालों, परिवार, समाज और अवसादग्रस्त व्यक्ति पर पड़ता है तथा प्रभावित व्यक्ति द्वारा आत्महत्या करने के तरीकों की नक़ल, आत्महत्या के प्रयास व पुनरावृति करने की सम्भावना बनी रहती है।
आत्महत्या की खबर को अखबार के मुख्य पृष्ठ पर प्रकाशित नहीं किया जाये और ना ही खबर को बार-बार दोहराया जाये। मार्गदर्शक पुस्तिका के अनुसार आत्महत्या की खबर को अखबार के मुख्य पृष्ठ पर प्रकाशित नहीं करते हुए उसे अख़बार के अन्दर के पन्नों में नीचे की तरफ प्रकाशित करना चाहिए। इसी प्रकार रेडियो या टीवी पर आत्महत्या की खबर को ब्रेकिंग न्यूज़ में प्रमुखता ना देते हुए उसे दूसरे या तीसरें स्थान पर प्रसारित करें। और यदि किसी खबर में कोई अपडेट होता है तो उस अपडेट की प्रमाणिकता जांचने के बाद ही उसे प्रसारित करें।
आत्महत्या करने के स्थान/साईट के बारें में विवरण प्रदान ना करें। कभी-कभी आत्महत्या करने के स्थान/साइट के बारें में आम लोगों में एक धारणा बनने लगती है और लोग उन्हें ‘सुसाइडल साइट’ के नाम से जानने लगते है जैसे कि कोई पुल, ऊँची इमारत, रेलवे क्रासिंग, कोचिंग सेंटर, जेल, मनोरोग केंद्र आदि ऐसे में उस स्थान या शहर का नाम बदनाम होने लगता है और लोग उस स्थान या शहर में जाने से कतराने लगते है। इसलिए आत्महत्या के रिपोर्टिंग करते समय आत्महत्या करने के स्थान/साइट के बारें में विवरण प्रदान नहीं करना चाहिए और यदि जरूरत महसूस हो तो ऐसी भाषा का उपयोग करें जिससे की कोई भी स्थान या शहर बदनाम ना हो या लोगों के मन में उस जगह को लेकर कोई गलत धारणा व्याप्त ना हो।
इन सभी सुझावों के अलावा भी मार्गदर्शक पुस्तिका में अनेक सुझाव और जानकारी प्रदान की गयी है जिसको मीडिया (डिजिटल व प्रिंट) द्वारा लागु व उचित उपयोग करने से देश में आत्महत्याएं करने वाले व्यक्तियों की संख्या में कमी लायी जा सकती है साथ ही साथ आत्महत्या जैसे संवेदनशील विषय पर आम जनता को जागरूक करने में और सही व सटीक जानकारी प्रदान करने में मीडिया अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है । आशा करता हूँ आने वाले समय में भारत की मीडिया और सरकार आत्महत्या पर जिम्मेदारीपूर्वक रिपोर्टिंग और कवरेज को लेकर उचित भूमिका निभाएगी और भारतीय मीडिया में हमें जल्द ही सकारात्मक बदलाव देखने को मिलेंगे ।
( लेखक जनस्वास्थ्य विशेषज्ञ हैं और आरोग्यसिद्धि फाउंडेशन से जुड़े हैं)