जब जीएम के दावे पूरी तरह गलत साबित हो चुके हैं तो सरकार क्यों दे रही है इसे बढ़ावा ?

Devinder SharmaDevinder Sharma   12 Jun 2017 10:02 PM GMT

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जब जीएम के दावे पूरी तरह गलत साबित हो चुके हैं तो सरकार क्यों दे रही है इसे बढ़ावा ?जीएम के स्वास्थ्य सम्बन्धी प्रभावों को जानने के लिए जानवरों पर परीक्षण तक नहीं किए गए

भारत एक जादू के लिए तैयार है-निम्न स्तर के गुणसूत्रीय बदलाव वाली जीएम मस्टर्ड (सरसों) से पैदावार बढ़ोत्तरी का जादू। शायद भारतीय वैज्ञानिकों का ये कोई ' रोप ट्रिक' यानि रस्सी वाला जादू है। मैंने दुनिया में कहीं भी बदतर किस्म से पैदावार का बढ़ाए जाना नहीं देखा। परन्तु देखिये, भारत में ये सम्भव है। पर्यावरण, वन व जलवायु परिवर्तन मंत्रालय इस निम्न स्तर की जिस जीएम मस्टर्ड की व्यवसायिक खेती को अनुमति देने को देने के लिए तैयार बैठा है, उसे कृषि नियामकों के हिसाब से कायदे से कूड़े के डिब्बे में पड़ा होना चाहिए था।

और ज़रा इसकी जल्दी तो देखिए, केंद्रीय कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह कहते हैं कि बस एक बार इस जीएम मस्टर्ड के उत्पादन को पर्यावरण ,वन और जलवायु परिवर्तन मन्त्रालय की अनुमति मिल जाये, उनका मंत्रालय खुद इसकी पैदावार शुरू कर देगा। सादर मंत्री जी , मैं इस जल्दबाजी का अभिप्राय समझ नहीं पाया।

मुझे तो लगा था कि कृषि मंत्रालय ने खुद ही इसकी पैदावार के दावे पर अध्ययन करवाए होंगे, तो उन्हें पता चल ही गया होगा कि ये दावे दरअसल झूठे हैं।

जीएम प्रजाति न तो बेहतर पैदावार दे सकती है और न ही बेहतर गुणवत्ता का तेल, तो फिर मंत्रालय को इसे अनुमति देने की वजह साफ़ करनी चाहिए। इस वर्ष भारत में सरसों का रिकॉर्ड उत्पादन हुआ है और वो भी जीएम प्रजाति लागू किए बिना।

पिछले कुछ वर्षों से ये लगातार कहा जा रहा है, कि सरसों की ये किस्म तिलहन की पैदावार 30 प्रतिशत बढ़ा देगी, जिससे खाद्यान्न तिलहनों को आयात करने की हमारी जरूरत कम हो जाएगी।

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कुछ अखबार और टीवी समाचार चैनल भी इसी झूठे दावों को बढ़ावा दिए जा रहे हैं। हालांकि अब ये सिद्ध हो चुका है कि तीस प्रतिशत बढ़ोत्तरी का ये दावा पूरी तरह गलत था लेकिन चमत्कार तो हो ही सकते हैं, बस ज़रा अनुमति मिलने का इंतज़ार कीजिए। आखिर जब जीडीपी में कमी के बावजूद कहा गया कि नोटबंदी अर्थव्यवस्था को उछाल दे सकती है , तो फिर एक घटिया किस्म की सरसों हरित क्रांति क्यों नहीं ला सकती ?

मुझे लगा था कृषि मंत्री तो ये जानते ही होंगे पर मुझे हैरानी नहीं। विज्ञान के नाम पर ऐसे झूठे दावे अब दिनचर्या बन गए हैं। ये साफ़ है कि ऐसे दावे कम्पनियों के व्यवसायिक हित साधने को किए जाते हैं। ऐसा अक्सर होता है कि जब फसल खराब हो जाती है, तो किसानों पर दोषारोपण कर दिया जाता है। जैसे पंजाब में बीटी कॉटन (कपास प्रजाति) की फसल खराब होने पर कह दिया गया कि उन किसानों को वो किस्म ठीक से उगानी ही नहीं आई।

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जीएम सरसों की किस्म डीएमएच-11 की खोज दिल्ली विश्वविद्यालय के फसलीय पौधों के गुणसूत्रीय बदलाव केंद्र के डॉ. दीपक पेंटल की अध्यक्षता में वैज्ञानिकों के एक दल ने की।

इतने समय से वो कहते चले आ रहे हैं कि डीएमएच-11 सरसों का उत्पादन अन्य किस्मों की अपेक्षा तीस प्रतिशत अधिक पैदावार देती है । परंतु उसी अनुसन्धान केंद्र के वैज्ञानिकों ने इस दावे पर सवाल उठाए हैं। उसी केंद्र पर सोसाइटी ऑफ ऑयलसीड रिसर्च (फरवरी 20, 2015) द्वारा आयोजित सम्मेलन में डॉ. वाईएस सोढ़ी ने अपनी प्रस्तुति में दिखाया कि सरसों की ऐसी कम से कम पांच किस्में हैं, जो जीएम नहीं, और जिनकी पैदावार डीएमएच-11 से ज्यादा है।

तीन किस्में डीएमएच-1, डीएमएच-3, डीएमएच-4 उसी क्रम में संकर प्रजातियां हैं। केवल डीएमएच-4 किस्म ही जीएम किस्मों से लगभग 14 प्रतिशत ज्यादा उपज देती है। जबकि डीएमएच-1 उससे भी 12 प्रतिशत ज्यादा उपज देती है। साथ ही ऐसी दो और किस्में हैं जिन्हें निजी कम्पनियों ने तैयार किया है और जिनकी पैदावार भी कहीं ज्यादा है।

सरसों की फसल। फाइल फोटो

तो फिर यदि जीएम रहित पांच किस्में मौजूद हैं, तो मुझे एक कम पैदावार देने वाली फसल को बढ़ावा देने वाला वैज्ञानिक का तर्क समझ नहीं आता। ऑल इंडिया क्रॉप रिसर्च प्रोजक्ट जहां सभी फसलों की प्रजातियों का आंकलन होता है, उसके नियमों के हिसाब से तो कम पैदावार वाली जीएम प्रजाति को तो फौरन ही ख़ारिज हो जाना चाहिए था। और भी हैरान करने वाली बात आईसीएआर के ऐतराज़ का भी नकारे जाना है , जो कि कृषि अनुसन्धान का व्यापक संगठन है, और जिसने इसकी कमी की ओर इशारा किया था। दरअसल ऐसा डर समाया है कि वैज्ञानिक भी बायोटेक्नोलॉजी के खिलाफ कुछ कह नहीं पाते।

अब ये साफ हो चुका है कि डॉ. दीपक पेंटल ने अपने दावे की पुष्टि के लिए डीएमएच-11 की तुलना कुछ कम पैदावार वाली किस्मों से की थी। बहुत चालाकी से उन्होंने अपने द्वारा विकसित किस्म के नाकारापन को छिपाने की कोशिश की। ये भी छिपा लिया गया कि इससे सार्वजनिक क्षेत्र को लगभग 100 करोड़ का नुकसान हुआ। इस सम्बन्ध में सर्वोपरि संस्था जीईएसी (आनुवंशियांत्रिकीय आंकलन कमेटी) तक ख़ामोश रही। तभी तो मैं मानता आया हूं कि जीईएसी इस जीएम उद्योग की रबड़ की मोहर है।

मैं सोचता हूँ कि जीईएसी को डॉ. दिलीप पेंटल द्वारा अपनी निम्नस्तर की जीएम प्रजाति को सही ठहराती 4000 पन्ने की रिपोर्ट को कम से कम ठीक से पढ़ना तो चाहिए था। अगर ऐसा हुआ होता तो बहुतेरे अवैज्ञानिक तथ्य जरूर बाहर आते। इन 4000 पन्नों में से पर्यावरण मंत्रालय ने अपनी वेबसाइट पर केवल 133 पन्ने ही अपलोड किए, वो भी जनता के दबाव के बाद। उन 133 पन्नों की सतर्क जांच उन गड़बड़ियों को उजागर करती है पर फ़िक्र किसे है।

विज्ञान का झंडा लगा हो तो यहां बस सब ठीक है। अगर जीएम मस्टर्ड इतनी कम पैदावार वाली प्रजाति है तो मुझे लगता है जीईएसी की सहमति का कोई और कारण होना चाहिए। यहां भी मुझे निराशा हाथ लगी। दिल्ली विश्वविद्यालय के बायोटेक्नोलॉजी एंड ट्रांसजेनिक्स डिपार्टमेंट के प्रोफेसर पार्थसारथी कहते हैं, ‘बनावट के दिए गए आंकड़ों के हिसाब से डीएमएच-11 मस्टर्ड के बीजों से निकला तेल भी घटिया होगा। किसी नतीजे पर पहुंचने से पहले किसी स्वतन्त्र एजेंसी से इसकी कड़ी जांच करानी चाहिए।

उन्होंने SciDev.net से कहा, ‘साफ तौर से जीएम किस्म को लागू करने का कोई खेती सम्बन्धी फायदा नहीं है। बल्कि ये तो भारत की कृषि, भोजन, स्वास्थ्य और समृद्ध जैविक विविधता को नुक़सान पहुंचाने वाला है।’ सचमुच इसके स्वास्थ्य सम्बन्धी प्रभावों को जानने के लिए जानवरों पर परीक्षण तक नहीं किए गए।

जीएम प्रजाति न तो बेहतर पैदावार दे सकती है और न ही बेहतर गुणवत्ता का तेल, तो फिर मंत्रालय को इसे अनुमति देने की वजह साफ़ करनी चाहिए। इस वर्ष भारत में सरसों का रिकॉर्ड उत्पादन हुआ है और वो भी जीएम प्रजाति लागू किए बिना। 3,700 रु प्रति क्विन्टल के खरीद मूल्य पाने के बजाय किसानों को अपनी फसल को संकट में बेचने को बाध्य होना पड़ा। कई जगहों पर किसानों ने विरोध प्रदर्शन किया क्योंकि उन्हें मात्र 3000 रु प्रति क्विंटल मूल्य ही प्राप्त हुआ।

इसलिए चुनौती केवल उत्पादकता बढ़ाने की ही नहीं। देश में आज कृषि सम्बन्धी गम्भीर स्थिति इसलिए है क्योंकि कृषि मंत्रालय हमारे किसानों को फसल का वाजिब दाम नहीं दे पाता।

(लेखक प्रख्यात खाद्य एवं निवेश नीति विश्लेषक हैं, ये उनके निजी विचार हैं। ट्विटर हैंडल @Devinder_Sharma )

     

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