राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) के अनुसार दिसंबर 2019 की तिमाही में जीडीपी विकास दर का आंकड़ा 4.7 प्रतिशत रहा। यह मार्च 2013 तिमाही के 4.3 प्रतिशत के आंकड़े के बाद सबसे कम जीडीपी विकास दर है। पिछले दिनों सरकार की ओर से अर्थव्यवस्था में तेजी के कुछ लक्षण दिखने के दावे किये जा रहे थे। परन्तु जीडीपी विकास दर कम होने, महंगाई दर बढ़ने, औद्योगिक उत्पादन और निर्यात में गिरावट के आंकड़ों के सामने ये दावे खोखले लग रहे हैं। सरकार मंद पड़ती अर्थव्यवस्था, बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी से जूझ रही है।
अर्थव्यवस्था के तीन इंजन- घरेलू खपत, निर्यात और निवेश मंद पड़े हुए हैं। हमारी जीडीपी में प्राइवेट खपत या मांग की हिस्सेदारी लगभग 60 प्रतिशत है। अतः जब तक अर्थव्यवस्था में मांग नहीं बढ़ेगी तब तक मंदी दूर नहीं होगी। राजकोषीय घाटा बढ़ने की समस्या के कारण केवल चौथे इंजन- सरकारी खर्च के बलबूते अर्थव्यवस्था आगे नहीं बढ़ सकती। एनएसओ के अनुसार 2019-20 में जीडीपी विकास दर का आंकड़ा 5 प्रतिशत ही रहने की संभावना है। प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी मूडीज़ ने भी अपनी भारत संबंधी एक हालिया रिपोर्ट में कहा है कि घरेलू खपत बढ़ाये बगैर जीडीपी विकास दर नहीं बढ़ेगी।
सरकार को अर्थव्यवस्था को मंदी से निकालने का कोई रास्ता नहीं सूझ रहा। परन्तु अगर सरकार बजट में पीएम-किसान जैसी योजनाओं का आवंटन बढ़ा देती तो ग्रामीण क्षेत्रों में धन-प्रवाह बढ़ता और मंदी से तेजी से निकला जा सकता था। 24 फरवरी को प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (पीएम-किसान) का एक वर्ष पूरा हो गया है।
इस योजना में किसानों की आर्थिक मदद हेतु तीन बराबर किश्तों में कुल 6,000 रुपए प्रति वर्ष प्रति किसान परिवार सीधे नकद धनराशि हस्तांतरण का प्रावधान किया गया था। 2018-19 वित्त वर्ष के अंतिम चार महीने चली इस योजना के लिए 20,000 करोड़ रुपए का बजट प्रावधान किया गया था परन्तु किसानों को केवल 6005 करोड़ रुपए बांटे गए। 2019-20 में इस योजना के तहत 75,000 करोड़ रुपए का बजट आवंटन किया गया, परन्तु संशोधित बजट में इसे कम करके 54,370 करोड़ रुपए कर दिया गया। पात्र किसानों का धीमी गति से पंजीकरण और सत्यापन होना इसकी वजह बताई गई है।
इस योजना में कुल लक्षित लगभग 14 करोड़ किसानों में से अब तक लगभग 8.46 करोड़ किसानों को कम से कम एक किश्त मिल गई है। किसानों के पंजीकरण, सत्यापन एवं उनके खातों को आधार कार्ड से जोड़ने का कार्य चल रहा है। इस योजना में लाभार्थियों की पहचान और पंजीकरण राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है। परन्तु बंगाल जैसे कुछ राज्यों ने राजनीतिक कारणों से अभी तक अपने एक भी किसान का पंजीकरण इस योजना में नहीं करवाया है, जो वहां के किसानों के साथ एक अन्याय है। इस योजना में लाभार्थियों के खाते में सीधे नकद राशि हस्तांतरण होने से राशि की बंदरबांट नहीं होती, सब्सिडी केवल पात्रों तक ही सीमित रहती है और प्रशासनिक खर्चा भी कम होता है, जिससे सरकारी धन की बचत हो रही है।
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खेती की बढ़ती लागत को देखते हुए इस वर्ष के बजट में इस योजना के अंतर्गत दी जाने वाली राशि को 6,000 रुपए से बढ़ाकर 24,000 रुपए प्रति किसान प्रति वर्ष किया जाना चाहिए था। ऐसा करने से राजकोष पर लगभग दो लाख करोड़ रुपए का अतिरिक्त भार पड़ेगा। यदि इसको वहन करने की केन्द्र सरकार की क्षमता नहीं है तो इसमें से आधी धनराशि को राज्य सरकारें वहन कर सकती हैं। कई राज्य सरकारें इससे मिलती-जुलती नकद हस्तांतरण की योजनाएं चला रही हैं जिन्हें इसमें सम्मिलित किया जा सकता है।
प्रत्येक किसान को 24,000 रुपए मिलने से ग्रामीण क्षेत्रों में तत्काल क्रय-शक्ति बढ़ती और खर्च बढ़ने से मांग बढ़ती। मांग बढ़ने से बिक्री बढ़ती, उत्पादन बढ़ता तो रोजगार भी बढ़ता, जिससे सरकार को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों मदों में और ज्यादा टैक्स मिलता। ग्रामीण क्षेत्रों में इस धन के अतिरिक्त प्रवाह का अर्थव्यवस्था पर एक गुणक प्रभाव (मल्टीप्लायर इफ़ेक्ट) भी पड़ता जिससे अर्थव्यवस्था और तीव्र गति से बढ़ती। वास्तविक आर्थिक आंकलन किया जाए तो पीएम-किसान पर खर्च की गई अतिरिक्त धनराशि बढ़े हुए टैक्स के रूप में सरकार के पास वापस आ जाती। इससे राजकोषीय घाटा और बढ़ने की आशंका भी नहीं होती। परन्तु आगामी वित्त वर्ष के लिए भी पीएम-किसान योजना का बजट केवल 75,000 करोड़ रुपए ही रखा गया है।
पिछले साल घरेलू कंपनियों की आयकर दर को 30 प्रतिशत से घटाकर 22 प्रतिशत करने से सरकार पर लगभग 1.5 लाख करोड़ रुपए का बोझ पड़ा, जो आगामी वर्षों में बढ़ता जाएगा। सरकार को आशा थी कि आयकर कम करने से कम्पनियां निवेश बढाएंगी परन्तु ऐसा नहीं हुआ। मांग के अभाव में जब अधिकांश उद्योग अपनी पूरी क्षमता पर उत्पादन ना कर रहे हों तो नए उद्योगों में निवेश का कोई सवाल ही नहीं उठता। यदि यह पैसा पीएम-किसान योजना का बजट आवंटन बढ़ाकर किसानों को उपलब्ध करा दिया जाता तो अर्थव्यवस्था में मांग तत्काल बढ़ती, जिससे औद्योगिक उत्पादन बढ़ता तथा नये निवेश की संभावनाएं और रोजगार दोनों बढ़ते। आशा है सरकार बजट पारित करते समय इस बिंदु पर अवश्य गौर करेगी और पीएम-किसान योजना का बजट आवंटन बढ़ाएगी।
बजट आवंटन बढ़ाने के अलावा पीएम-किसान योजना में सबसे बड़ा सुधार यह करना होगा कि इसके तहत अगले एक वर्ष में सभी किसानों का पंजीकरण एवं सत्यापन पूरा कर लिया जाए। इस योजना में किसानों को सत्यापन उपरांत वितरित किश्त ही मिलती हैं, उन्हें पहले सत्यापित अन्य किसानों को बांटी जा चुकी किश्तें नहीं दी जाती। दूसरा, सत्यापन उपरांत जो भी किसान पात्र पाया जाए उसे 1 दिसंबर 2018 से वितरित सभी किश्तों का भुगतान किया जाए। इससे धीमी गति से सत्यापन कर किसानों को इस योजना से अधिक से अधिक समय तक बाहर रखकर धन बचाने का कोई आर्थिक कारण या प्रलोभन भी नहीं होगा। तीसरा, इस योजना के अंतर्गत आवंटित धनराशि का यदि समय पर वितरण ना हो सके तो अवितरित धनराशि को अगले साल के बजट में जोड़ दिया जाए, यानी ‘कैरी फॉरवर्ड’ किया जाए। बची हुई इस धनराशि को किसानों को सत्यापन उपरांत पुनः वितरित कर दिया जाए। चौथा, इस योजना की धनराशि को मुद्रास्फीति की दर में कम से कम पांच प्रतिशत जोड़कर प्रत्येक वर्ष बढ़ाया जाए। इससे इस योजना की राशि का आर्थिक मूल्य सम्मानजनक बना रहेगा।
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कृषि क्षेत्र में हमने लंबे समय से ऐसी प्रतिबंधक व्यापार और विपणन नीतियां अपनाई हैं जिनसे हमारे किसानों को बहुत नुकसान उठाना पड़ा है। आर्थिक नीतियों का आंकलन करने वाली 36 विकसित देशों के संगठन ओईसीडी (आर्थिक सहयोग तथा विकास संगठन) के अनुसार 2016 में ओईसीडी देशों ने अपने किसानों को औसतन 235 अरब डॉलर (आज के मूल्यों में लगभग 17 लाख करोड़ रुपए) की मदद की।
इसी वर्ष चीन ने भी अपने किसानों को 232 अरब डॉलर की मदद की। ओईसीडी देश और चीन अपनी अर्थव्यवस्था का मजबूत आधार बनाने के लिए अपने किसानों पर औसतन लगभग 17 लाख करोड़ रुपए खर्च कर सकते हैं तो क्या हम पीएम-किसान योजना के माध्यम से अपने किसानों को दो-तीन लाख करोड़ रुपए भी नहीं दे सकते। हम चीन से प्रतिस्पर्धा कर विश्व शक्ति बनना चाहता है तो हमें अपने किसानों को चीन की तर्ज पर सकारात्मक कृषि नीतियों के माध्यम से सशक्त बनाना होगा। हमें पीएम-किसान जैसी योजनाओं के माध्यम से अन्य देशों की तरह अपने किसानों की मदद करनी होगी। मंदी से निकलकर पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने का सपना ग्रामीण भारत में बसने वाली 70 प्रतिशत आबादी के आर्थिक सशक्तिकरण से ही संभव है।
(लेखक किसान शक्ति संघ के अध्यक्ष हैं)