ट्रंप से अभी बेहतरी की उम्मीद नहीं

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ट्रंप से अभी बेहतरी की उम्मीद नहींट्रंप रिपब्लिकन पार्टी की पारम्परिक नीतियों पर चलेंगे तो वे भारत से बेहतर सम्बंध बनाने की कोशिश करेंगे।

डॉ. रहीस सिंह

डोनाल्ड ट्रंप ने 45वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ लेने के पश्चात जो भाषण दिया और उस भाषण के दौरान उन्होंने अमेरिका की जो तस्वीर खींची वह वास्तव में डराने वाली है लेकिन उससे भी डराने वाली वह संभावना है जिसके जरिए वे अमेरिका को पुनः महान बनाने का सपना दिखा रहे हैं।

अगर ट्रंप के भाषण को गम्भीरता से लिया जाए तो थोड़े समय के लिए ही सही पर ऐसा लगता कि अब तक अमेरिका नष्ट हो रहा था, अमेरिकी उद्यम जंग खा रहे थे, अमेरिकी समाज राष्ट्रवाद से रिक्त होकर भटकाव का शिकार हो गया था और अब वे कोई जादू की छड़ी लेकर आए हैं जिसके स्पर्श मात्र से ‘अमेरिका प्रथम’ का सपना साकार हो जाएगा।

वास्तविकता यह है कि अपने चुनाव अभियान के दौरान ट्रंप जिन विषयों को लेकर आक्रामक रहे, वे विषय अभी भी मौजूद हैं इसलिए देखना यह है कि उनकी जिस शैली ने उन्हें अमेरिका में एक राजनीतिक उभार के रूप में पेश किया है, क्या वह जारी रहेगी या फिर उसमें अमेरिकी ताकत एवं गरिमा के अनुरूप कोई परिवर्तन होगा? क्या वे वास्तव में ‘अमेरिका प्रथम’ के सिद्धांत के मनोविज्ञान से पूरी दुनिया को देखेंगे और क्या ऐसी स्थिति में अमेरिका शेष दुनिया के साथ सामंजस्य बिठा पाएगा?

राष्ट्रपति के रूप में डोनाल्ड ट्रंप के पहले भाषण पर न्यूयार्क टाइम्स ने लिखा है कि ऐसे भाषण की उम्मीद किसी को नहीं थी। हम सभी इस बात पर तो सहमत होंगे कि उन्होंने अपने हाथ नहीं फैलाए, उल्टे घूंसा दिखा दिया। उनके भाषण से ऐसा लगा कि वे अमेरिका की नहीं किसी और देश की बात कर रहे थे। आज वे इस तरह बोले मानो दुश्मन के यहां दरवाजे तोड़कर घुस गए हों। यही नहीं एक अन्य अखबार ने तो लिखा है कि रंगमिजाजी के लिए चर्चित ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति बन गए हैं। यह देश में एक नए माफिया युग की शुरूआत है।

वास्तव में जब ट्रंप यह कह रहे थे कि उनके पहले के राष्ट्रपतियों ने देश का बुरा हाल कर दिया है, जिसे वह ठीक करने आए हैं। सर्वनाश अब बंद होता है। तो यही लग रहा है कि वे अमेरिका को न सम्बोधित कर मध्य-पूर्व के किसी देश को सम्बोधित कर रहे हैं। सवाल यह उठता है कि क्या वास्तव में अमेरिका की दशा ऐसी ही है?

इस्लामिक आतंकवाद के मामले में उनका कहना था कि इसे खत्म करना है और इसके लिए पुराने गठबंधनों को मजबूत करेंगे, नए गठबंधन बनाएंगे और इस्लामिक आतंकवाद के खिलाफ एक सभ्य दुनिया तैयार करेंगे, जो दुनिया से इस्लामिक आतंकवाद का समूल नाश कर देगी। इस सम्बंध में पहला सवाल तो यही है कि क्या आतंकवाद का समूल नाश सम्भव है? यदि है तो ट्रंप को पहले ‘वार इंड्यूरिंग फ्रीडम’ की समीक्षा करनी चाहिए, उसके साथ उन गठबंधनों की भी जहां अमेरिका कई मोर्चों पर आतंकवाद या इस्लामी चरमपंथ के साथ खड़ा दिखाई दे रहा है।

सवाल यह भी उठता है कि ट्रंप जिन नए गठबंधनों की बात कर रहे हैं, वे किस प्रकार के होंगे और क्या नाटो देशों की भूमिका बदल जाएगी? क्या इन इन नए गठबंधनों में रूस किसी निर्णायक भूमिका में होगा? जिस प्रकार की सूचनाएं अभी तक छन-छन कर बाहर आई हैं, उनसे तो ऐसा ही लगता है कि पुतिन-ट्रंप समीकरण मॉस्को-वाशिंगटन को कोई दिशा देने वाले हैं। हो सकता है कि आतंकवाद को समाप्त करने के नाम पर एशिया-प्रशांत, मध्य-पूर्व एवं यूरेशिया में कुछ ऐसा हो जो दुनिया के लिए हितकर साबित न हो।

रही बात भारत के साथ रिश्तों की तो ऐसा लगता है कि यह प्रमुख तौर से तीन या चार बातों पर निर्भर करेगा। पहला यह कि ट्रंप चीन के साथ किस प्रकार के रिश्ते रखना चाहते हैं क्योंकि चीन को काउंटर करने के लिए भारत की आवश्यकता होगी। द्वितीय यह कि पाकिस्तान से उनका सरोकार कैसा रहेगा? यानि वैसा, जैसा कि उनके चुनाव अभियान के दौरान देखा गया था या फिर वैसा जैसा कि पाकिस्तान इन्फर्मेसन ब्यूरो द्वारा जारी रीडआउट्स में दिखा। दूसरी स्थिति में भारत के साथ सम्बंध अच्छे रहने की उम्मीदें धूमिल हो जाएंगी। तृतीय यह कि ट्रंप परम्परागत रिपब्ल्किन नीतियों पर चलेंगे या फिर अपने निजी एजेंडे पर? चतुर्थ-वैश्वीकरण, वीजा मामले में उनका व्यवहार।

यदि ट्रंप रिपब्लिकन पार्टी की पारम्परिक नीतियों पर चलेंगे तो वे भारत से बेहतर सम्बंध बनाने की कोशिश करेंगे। उल्लेखनीय है कि रिब्लिकन काल में सिविल न्यूक्लियर डील से जो नए आयाम जुड़े थे, उनके चलते भारत-अमेरिका सम्बंधों का फलक बहुत विस्तृत और रणनीतिक हुआ था। राष्ट्रपति ओबामा तथा प्रधानमंत्री मोदी ने इस क्षेत्र में खुले, संतुलित एवं समावेशी सुरक्षा वास्तुशिल्प को बढ़ावा देने में नेता-नीत पूर्वी एशिया शिखर बैठक (ईएएस) प्रक्रिया की भूमिका को काफी आगे तक ले जाने का संकल्प लिया था। दोनों देशों ने इसी दौर में प्रशांत क्षेत्र में ‘रणनीतिक त्रिभुज’ (स्ट्रैटेजिक ट्रैंगल) की रूपरेखा प्रस्तुत की।

अमेरिकी विदेश विभाग की अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका-भारत-जापान त्रिपक्षीय सहयोग के जरिए भारत के साथ रणनीतिक सहयोग, इण्डोनेशिया के साथ गहरे सम्बंध और दक्षिण चीन सागर में नेवीगेशन की स्वतंत्रता तथा प्रशांत द्वीप के राष्ट्रों के साथ गहरा जुड़ाव है। अब चूंकि ट्रंप अमेरिका की वन-चाइना पॉलिसी से हटने का संकेत दे रहे हैं, इसलिए स्वाभाविक रूप से इस त्रिकोण की उपयोगिता बढ़ जाएगी। यानि अमेरिका भारत के महत्व की उपेक्षा कर एशिया-प्रशांत क्षेत्र में अपने उद्देश्य की पूर्ति नहीं कर पाएगा।

अब तक वैश्विक अप्रसार एवं निर्यात नियंत्रण व्यवस्थाओं को सुदृढ़ करने के अपने प्रयास में दोनों देशों ने महती भूमिका निभायी है। परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह, मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था, ‘वासेनार व्यवस्था’ तथा आस्ट्रेलिया ग्रुप में भारत के चरणबद्ध प्रवेश की दिशा में अमेरिका ने भारत का पर्याप्त सहयोग दिया है। इसका अमेरिका के लिए एक बड़ा फायदा यह है कि वह रणनीतिक हथियारों के बाजार का विस्तार बेहद आसान तरीके से भारत तक करने में सफल हो गया। चूंकि डोनाल्ड ट्रंप सही अर्थों में अमेरिकी मिलिट्री-इण्डस्िट्रयल कॉम्प्लेक्स की देन भी हैं और उसके लिए नई आशाओं के केन्द्र भी। मिलिट्री-इण्डस्िट्रयल कॉम्प्लेक्स भारत के बाजार की कभी उपेक्षा नहीं कर सकती। इसलिए स्वाभाविक रूप से ट्रंप भारत की अहमियत को अस्वीकार नहीं कर पाएंगे।

एक बात और, ट्रंप ने कहा कि अमेरिका दोबारा जीतेगा और ऐसा जीतेगा जैसा इससे पहले कभी नहीं जीता। हम इस्लामिक चरमपंथ के खिलाफ़ सभ्य दुनिया को एकजुट करेंगे। यदि डोनाल्ड ट्रंप वास्तव में चरमपंथ अथवा आतंकवाद को खत्म करना चाहेंगे तो उन्हें दक्षिण एशिया तक पुनः एक लड़ाई लड़नी होगी और दक्षिण एशिया में वह ऐसी निर्णायक लड़ाई वे भारत के सहयोग के बिना नहीं लड़ पाएंगे।

इस मोर्चे पर उनसे अधिक उम्मीद रखना उचित नहीं लगता क्योंकि वे जिस व्यवस्था की नुमाइंदगी कर रहे हैं, उसके लिए लाभ का सिद्धांत सबसे ऊपर है इसलिए संभव है कि पाकिस्तान को पुनः आगे कर कोई छद्मयुद्ध लड़ा जाए, जिसकी सम्भावनाएं ओबामा के समय समाप्त कर दी गयीं थीं। बहरहाल ट्रंप की विदेश नीति में अभी अनिश्चितता के तत्व अधिक हैं, इसलिए अभी कुछ कहना उचित नहीं होगा। लेकिन अभी संभावनाएं बहुत बेहतर नहीं दिख रहीं।

(लेखक अंतराष्ट्रीय मामलों के जानकार हैं यह उनके निजी विचार हैं।)

    

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