लेखिका – मनुप्रिया
ग्लोबल इन्वायरमेंटल जस्टिस एटलस (ईजेएटलस) के अनुसार, किसी भी अन्य देश की तुलना में भारत पर्यावरणीय संघर्ष में सबसे आगे है और इसमें सबसे ज्यादा संघर्ष जल (27 फीसदी) को लेकर हुआ है।
भारत में 222 सूचीबद्ध संघर्ष हैं। इसमें जनसंख्या के अनुपात से लेकर और कई बाते हैं जबकि इसके बाद कोलंबिया में 116 और नाइजीरिया में 71 संघर्ष है। यह आकंड़ा ईजेएटलस (1,703 वैश्विक पारिस्थितिकी संघर्ष का एक संवादात्मक मानचित्र) के अनुसार है, जो जल प्रबंधन, कचरा प्रबंधन, जीवाश्म ईंधन और जलवायु न्याय और जैव विविधता के संरक्षण जैसे कारणों द्वारा वर्गीकृत है। वर्तमान में जब देश, दशक के सबसे बुरे संकट का सामना कर रहा है व अगले 9 वर्षों में पानी की कमी होने की संभावना है, ऐसे में एटलस में सूचीबद्ध संघर्ष के पैमाने आगे और बिगड़ती स्थिति का संकेत देते हैं।
पानी से जुड़ी परियोजनाओं को लेकर सबसे अधिक संघर्ष हिमाचल प्रदेश में हुआ है और इनमें अधिकांश जल विद्युत परियोजनाओं से संबंधित हैं जो अक्सर स्थानीय समुदायों की जरूरत और सहमति पर विचार किए बिना बनाई गईं। इसी तरह के संघर्ष जम्मू-कश्मीर, झारखंड, मणिपुर, मिजोरम, उड़ीसा और सिक्किम में भी देखे गए हैं।
जल-प्रबंधन संघर्ष के अन्य प्रकार भी हैं। मध्य प्रदेश के खंडवा में पाइपलाइन के निर्माण और पानी की आपूर्ति बढ़ाने के लिए एक निजी कंपनी के साथ नगर निगम की भागीदारी पर स्थानीय लोगों ने आपत्ति जताई है क्योंकि इसकी कीमतें, कंपनी द्वारा तय किए जाने थे। एक अन्य उदाहरण कोका कोला द्वारा भूजल का इस्तेमाल करना है। एक पेय पदार्थ कंपनी जिसके बॉटलिंग प्लांट के विरोध में 5 राज्यों में संघर्ष शामिल है (एक राजस्थान के जयपुर में, एक उत्तराखंड के देहरादून में, एक केरल के पाल्चीमडा में और दो मेहदीगंज, वाराणसी के पास उत्तर प्रदेश में)।
भुवनेश्वर स्थित स्वतंत्र शोधकर्ता सैलेन राउत्रे कहते हैं, ‘बांध लगातार संघर्ष का कारण बने हुए हैं, विशेष कर जब वे बनाए और कमिशन किए जा रहे हों। राउत्रे कहते हैं कि, “ भारत के लगभग सभी राज्यों के बीच अंतर संघर्ष नदियों पर बांध बनाने और परस्पर विरोधी राज्यों को पानी के आवंटन से संबंधित है। भारत में बड़े- और मध्यम आकार के बांधों में अधिक निवेश नहीं करना चाहिए। इसी तरह, नदी जोड़ने की योजना पर काम बंद कर देना चाहिए क्योंकि इस योजना से अंतर- राज्यीय जल संघर्ष में कई गुना वृद्धि होने की संभावना है।”
ईजेएटलस में सूचीबद्ध अधिकांश संघर्ष, देश की अर्थव्यवस्था के विस्तार के फलस्वरूप हैं। उदाहरण के लिए, झारखंड में झरिया कोयला खदानों में भूमिगत आग पहली बार पिछली सदी में देखी गई थी। 1970 के दशक में इसका प्रसार शुरू हुआ और वर्तमान में 70 से अधिक की खानों में आग है जिससे हवा, पानी और भूमि प्रदूषित हो रहे हैं और स्थानीय लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है।
हालांकि, ईजेएटलस ने भारत में 220 पर्यावरण संघर्ष को सूचीबद्ध किया है लेकिन यहां और भी कई संघर्ष हैं। ईजेएटलस परियोजना के निदेशक जोआन मार्टिनेज–एलियर कहते हैं,“यह गौर करने वाली बात है कि 220 संघर्ष आबादी के अनुपात में है। किसी अन्य देश की तुलना में भारत में अधिक मामले हैं। इससे यह भी जाहिर है कि भारत दुनिया में सबसे बड़ी आबादी वाला देश है।”
पर्यावरण संघर्ष वैश्विक हैं लेकिन भारत एक महत्वपूर्ण बिंदु पर दक्षिण अमेरिका या अफ्रीका में अन्य विकासशील देशों से अलग है और वह है- विदेश व्यापार। मार्टिनेज–एलियर कहते हैं, “एक विशाल देश होने के बावजूद, भारत अधिक आयात-निर्यात नहीं करता है। भारत में माल की अधिकांश निकासी आंतरिक खपत के लिए है लेकिन वहां राज्यों के बीच संघर्ष हैं। कभी यह संघर्ष पानी के अधिकार के लिए है तो कभी कुछ राज्यों का (ओडिसा और झारखंड) द्वारा कच्चा माल देश के बाकी हिस्सों को उच्च आंतरिक सामाजिक और पर्यावरणीय लागत पर प्रदान कराना है।”
राज्यों की तुलना से पता चलता है कि उनमें से कुछ ने वास्तव में पर्यावरण संघर्ष का एक बड़ा हिस्सा वहन किया है। पर्यावरण विवादों की बढ़ती मान्यता के साथ 2010 में भारत सरकार ने इस तरह के विवादों के लिए एक फास्ट ट्रैक अदालत के रूप में राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) की स्थापना की है लेकिन फिर भी पर्यावरण संघर्ष की घटनाओं में कमी नहीं हुई है।
ईजेएटलस के लिए एक भारतीय सहायक स्वपन कुमार पात्रा कहते हैं, “एनजीटी ने एक अच्छी भूमिका (पर्यावरण न्याय पहुंचाने में) निभाई है। ” एक पत्र में जेएनयू के प्रोफेसर और ईजेएटलस के लिए अन्य भारतीय योगदानकर्ता पात्रा और वी.वी. कृष्णा लिखते हैं, “अपनी स्थापना के बाद से, एनजीटी ने विभिन्न मामलों में कई फास्ट ट्रैक निर्णय दिए हैं और संबंधित अधिकारियों को कई आदेश पारित किए हैं जैसे कि अवैध रेत खनन पर प्रतिबंध दिल्ली में ध्वनि प्रदूषण के खिलाफ निर्णय, पश्चिमी घाट पर्वत की जैव विविधता के संरक्षण, असम में काजीरंगा नेशनल पार्क में वन्य जीवन संरक्षण जैसी कई पर्यावरण मंजूरी को निलंबित कर दिया है।”
हालांकि, एनजीटी के हस्तक्षेप और प्रभावित स्थानीय लोगों से बढ़ती भागीदारी के बावजूद भारत में पर्यावरण अन्याय बढ़ रहा है।सांताक्रूज में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में पर्यावरण अध्ययन विभाग में संकाय सदस्य एस रवि राजन कहते हैं, “हमारी सरकार पर्यावरण मुद्दे को किस प्रकार देखती है, समस्या उसमें ही नीहित है। भारत सरकार (वर्तमान और अतीत) समझने में विफल रही है कि आर्थिक विकास पर्यावरण न्याय के प्रतिकूल नहीं है। भारत में एक मजबूत अधिकार शासन के साथ कानून है और फिर भी हम पर्यावरण हनन रोकने में नाकाम रहे हैं। इसी तुलना में चीन में एक कमजोर अधिकार शासन है लेकिन भारत की तुलना में पर्यावरण हनन के नीचे लाने में बहुत अच्छा काम किया है।” इस पर मार्टिनेज–एलियर कहते हैं, “हालांकि, सवाल यह नहीं है कि संघर्ष से कैसे बचा जाए बल्कि यह है कि इतने सारे संघर्षों के बारे में जागरूकता से कैसे लाभ निकाला जाए।
(मनुप्रिया बंगलुरु स्थित साइंस लेखिका हैं। यह उनके निजी विचार हैं।)