सड़कें किस काम के लिए हैं, लोगों को कौन बताएगा

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सड़कों पर हजारों और कभी-कभी लाखों लोग एक साथ नमाज़ अदा करते हैं, आने-जाने वालों के लिए रास्ता बदल दिया जाता है। यदि आखिरी सांसें ले रहे मरीज़ को जल्दी से अस्पताल पहुंचाना हो तब भी लम्बे रास्ते से जाना पड़ता है। जून के महीने में जितने मंगल पड़ते हैं जगह- जगह सड़कों पर भंडारा के स्टॉल लगाए जाते हैं। लोग पूड़ी, हलवा, मिठाई और चाट खाकर प्लास्टिक के दोने और ग्लास सड़क पर फेंककर चले जाते हैं। शाम को भंडारा खिलाने वाले लोग भी सड़क पर कचरा छोड़कर चले जाते हैं यह सोचकर कि पुण्य कमा लिया। सड़कों पर जहां तहां कूड़े के ढेर लगाते हैं और सरकार न तो नमाज़ बन्द करा सकती है न भंडारा और न कूड़ा।

एक दिन गोमतीनगर की सड़क पर जा रहा था कि अचानक सामने पंडाल था और रास्ता बंद था, पता चला देवी जागरण है। गाड़ी वापस करके दूसरे रास्ते से जाना पड़ा। पता चला यह एक दिन नहीं पूरे नौ दिन का कार्यक्रम है। पता नहीं इसकी अनुमति किसी सरकार अथवा नगर पालिका से ली जाती है या नहीं। यदि इन कामों के लिए अनुमति दी जाती है तो यह मूर्खता के सिवा कुछ नहीं। कोई सड़क दुर्घटना हो जाती है और किसी की मौत होती है तो हजारों लोग सड़क पर लाश रखकर बैठ जाते हैं और घन्टों या दिनों तक सड़क बन्द हो जाती है। ऐसे हालात में विकसित देशों में क्या होता है और हम भी अपने को कब विकसित कह पाएंगे।

चुनाव आ रहे हैं तो जगह-जगह सड़क पर सभाएं होने लगेंगी, इन्हें नुक्कड़ सभाएं कहते हैं। ये वास्तव में सड़क सभाएं होती हैं जिससे यातायात बाधित रहता है। बारात का जुलूस हो या मूर्ति विसर्जन की शोभा यात्रा अथवा कांवर के भक्तों की यात्रा, सभी के द्वारा सड़क का दुरुपयोग किया जाता है। सड़क पर कुत्तों, गाय और घोड़ों की लाशें कई दिनों तक पड़ी रहती हैं, सड़ती और बदबू देती हैं, इन्हें उठाने की जिम्मेदारी किसी की तो होनी चाहिए।

बड़े लोग कुत्ते पालते हैं और उनके नौकर दिन में तीन बार उन्हें खुले में शौच कराने सड़क पर ले जाते हैं, आवारा कुत्तों की तो संख्या ही नहीं है। गाय, बकरी, सुअर सब सड़कों पर घूमते रहते हैं और खुले में शौच करते हैं। कभी सोचिए कितने हजार टन मल मूत्र ये सब शहर की भेंट चढ़ाते हैं। बकरीद का त्योहार आया नहीं कि सड़कों पर हजारों की संख्या में बकरियां शहर की सड़कों पर दिखाई देंगी इसलिए नहीं कि गोश्त की कमी है, वह तो बूचड़खाने से मिल ही जाता है। तब शहर की सड़कों पर बकरी मंडी क्यों?

किसी नेता का आगमन है तो जगह-जगह सड़क पर गड्ढे खोदकर स्वागत द्वार बना दिए और बाद में गड्ढे को उसी तरह छोड़ दिया। सड़क के दोनों तरफ लोग दो पहिया, तीन पहिया और चार पहिया गाड़ियां बेतरतीब पार्क कर देते हैं दूसरों को निकलने की जगह मिले या न मिले। सड़क किनारे दोनों तरफ पटाखों, मिठाई, राखी, सिंवई की पटरी दुकानें सजा दी जाती हैं, किसकी इजाज़त से पता नहीं। हमारी अधिकांश सार्वजनिक गतिविधियां सड़कों पर होती हैं, मानो इन्हीं कामों के लिए सड़कों का निर्माण किया गया था।

ऐसा नहीं कि आम आदमी ही सड़कों का दुरुपयोग करता है, हमारी सरकारें सबसे अधिक नुकसान पहुंचाती हैं। अच्छी सड़क बनकर तैयार है और बीचोंबीच में खुदाई चालू कर दी बिजली की लाइन बिछाने के लिए अथवा सीवर लाइन डालने के लिए नहीं तो टेलीफोन का केबिल जमीन के अन्दर डालने के लिए। सरकारी विभागों में कोई तालमेल नहीं है अन्यथा जमीन के अन्दर के काम पहले समाप्त करके तब सड़क बनाते या ऐसा प्रावधान रखते कि सड़क खोदनी न पड़े। टाउन प्लानिंग के नाम से काम नहीं होता, सब काम ‘ऐड हक’ होता है। सड़कें रो रही हैं परन्तु उनका रोना हमें सुनाई और दिखाई नहीं देता।

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