ग्रामीण भारत से दोस्ती और अनकही कहानियों से मुलाकात

मेरे लिए गाँव कनेक्शन एक अदृश्य दुनिया को प्रकाश में ले आया। मैंने उस दुनिया में रहने लोगों से अदम्य, कभी हार न मानने वाला भाव सीखा। अब जबकि साल खत्म होने जा रहा है, मैं उन यादों को संजोना चाहूंगी जो मेरे चेहरे पर मुस्कान ले आता है।

Pankaja SrinivasanPankaja Srinivasan   31 Dec 2022 12:34 PM GMT

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
ग्रामीण भारत से दोस्ती और अनकही कहानियों से मुलाकात

कोयम्बटूर, तमिलनाडु। साल 2020 में जब मैं गाँव कनेक्शन में शामिल हुई तब मुझे लगा था कि मेरी भूमिका बस इतना सुनिश्चित करना है कि काम ध्यान, जिम्मेदारी और समय पर पूरी हो। गाँव कनेक्शन मैं एक दम अलग तरह की पत्रकारिता पृष्ठभूमि से आई थी, इनमें से अधिकांश शहरी जीवन शैली के बारे में थे। ग्रामीण भारत के बारे में मुझे कोई जानकारी नहीं थी।

लेकिन यह सब तब बदल गया जब मैंने देश के कोनों-कोनों की रिपोर्ट को एडिट किया। ये खबरें किसानों, बुनकरों, शिल्पकारों, दुग्ध व्यवसायियों, पशुपालकों, व्यापारियों, मंडियों, जंगल, पानी, रेगिस्तान और पहाड़ों के बारे में थीं।

मेरा काम मुझे ऐसी जगहों पर ले गया जहां के बारे में मुझे पता भी नहीं था। ये सारी यात्राएं मैंने कागजों पर खबरें एडिट करते समय की। इन सारी यात्राओं को मैंने बिना देखे महसूस किया। गाँव कनेक्शन की प्रबंध संपादक निधि जम्वाल और मेरे बॉस ने तय किया कि मुझे भी कुछ रिपोर्ट लिखनी चाहिए। उन्होंने मुझे असाइनमेंट पर भेजा जिसके लिए मैं हमेशा आभारी रहूंगी।

मैं कबीर यात्रा पर राजस्थान के गांवों, उदयपुर जिले के कोटड़ा और फलासिया के अलावा राजसमंद जिले के कुंबलगढ़ में गई।


मैंने कर्नाटक में चामराजनगर जिले के अलूर में सूरजमुखी के खेतों पर ड्रोन देखे। कोप्पल जिले के अनेगुंडी के प्राचीन गांव की पथरीली रास्तों पर चली और एफपीओ चलाने वाली कुछ शानदार महिला किसानों से मिलने के लिए तमिलनाडु के सलेम जिले में वथारसमपट्टी भी गई। और तमिलनाडु के पोलाची में पहली पीढ़ी की महिला बुनकरों को कला सीखते हुए देखा।

किसी ऐसे व्यक्ति के लिए जिसने गांवों को बस बॉलीवुड फिल्मों में देखा था, अनुभव आंखें खोल देने वाले थे। ये वास्तविक संसार थे, सेल्युलाइड सेट नहीं। मैंने मेहनती, बुद्धिमान और स्वाभिमानी लोगों के साथ बातचीत की, जिन्हें समस्याएं तो थीं, लेकिन वे उनका बेहतर तरीके से सामना कर रहे थे।

गाँव कनेक्शन ने मुझे गाँव के बेहतरीन लोगों की खबरों को लेकर आंखें और कान खुले रखना सिखाया। और मैंने उनमें से बहुत से लोगों को यहीं अपने पड़ोस में पाया।

मेरे दिमाग में तीन महिलाएं हैं। शांति, गोमती और करुपाथा। वे सालों पहले अपने गांवों को पीछे छोड़कर आजीविका की तलाश में कोयम्बटूर आई थीं। मैं उनके बारे में ज्यादा नहीं जानती थी। बस इतना कि वे मजबूत, दृढ़निश्चयी और गौरवान्वित लग रही थीं।

शांति पुलियाकुलम में विनायक मंदिर के बाहर बैठी थीं। जब केले वाली उसकी ठेला के आसपास कोई ग्राहक नहीं होता था, तो मैं हमेशा उसे किसी किताब या अखबार में गहराई से डूबा हुआ पाती थी। छोटे कद की शांति ने चश्मा पहन रखा था और मुस्कुराती रहती थी। जब भी मैं उसके पास केले लेने के लिए रुकती तो वह पूछती कि इतने दिन मैंने उसे हैलो क्यों नहीं कहा।


साल में एक बार मैं उसे महिला दिवस पर एक साड़ी देती। वह मुझे गले लगा लेती और मुझे केले का एक बड़ा गुच्छा देती और इसके लिए पैसे लेने से मना कर देती। कई महीनों तक मैं शांति से नहीं मिली। क्योंकि अब हम नए फ्लाईओवर से होकर जाते थे जबकि वह उसके दूसरी तरफ थी।

लेकिन पिछले हफ्ते मैंने केले से लदी गाड़ी देखी। मैंने शांति की कुर्सी देखी, लेकिन उस पर कोई और बैठा था। मैं रुकी और पूछा कि शांति कहां है। केले बेचने वाली उसकी बहू ने कहा, शांति का एक्सीडेंट हो गया था और उसकी मौत हो चुकी है।

करूपाथा हमेशा चमकीले रंग की साड़ी, लाल बिंदी और अपनी पतली कलाई पर चूड़ियाँ पहनती हैं। वह अपने 80 के दशक में है। मुझे लगता है कि उसे दांत गायब हैं, चेहरे पर झुर्रियां हैं और बाल भूरे हैं। लेकिन वह हंसने में बहुत तेज है और हर बार जब भी मैं उससे मिलती हूं तो मुझे उत्साहित कर देती है।

करूपाथा हमारे मोहल्ले में फूल बेचने वाली है। वह कहती है कि उसे ठीक से याद नहीं कि वह कब अपने गांव से कोयम्बटूर आई थी (मुझे उससे उसके गांव का नाम पूछना चाहिए था)। वह अपने सिर पर फूलों की टोकरी लेकर आती है। वह काम करना बंद नहीं कर सकती, क्योंकि उसके शारीरिक रूप से अक्षम पति को देखभाल की जरूरत है। मुझे नहीं पता कि उसका कोई परिवार है या नहीं, लेकिन उसमें कोई कड़वाहट नहीं है क्योंकि वह हैलो कहने के लिए रुकती है और मुझे मल्ली पूवू का फूल देकर जाती।


जब मैं उससे पूछती हूं कि वह कैसी है, तो वह खुशी से कहती है, "हम मिलते हैं।" मुझे उम्मीद है कि तमिलनाडु में मरघाज़ी के इस पवित्र महीने में करुपाथ थोड़ा और पैसा घर लेकर जा रही होगी।

हम गोमती को देखने से बहुत पहले ही सुन लेते हैं। मुझे यकीन है कि उसकी कर्कश आवाज सुबह की हवा में भर जाती है और कई लोगों को उनकी नींद से जगाती है। गोमती मदुरै के पास एक गांव से है और वह और उनके पति थंगमणि 10 साल पहले जीविकोपार्जन के लिए कोयम्बटूर आए थे।

गोमती साग बेचती है कि जो वह 24 सेंट जमीन पर उगाती है जो किसी और की है। वह जो पैसा कमाती है, उससे वह मदद करने के लिए कुछ दिहाड़ी मजदूरों को लगभग 200 रुपये देती है और बाकी के साथ वह और उसका पति अपने दो बच्चों, बेटे वेट्रीचेल्वन और बेटी प्रियदर्शिनी का भरण-पोषण करते हैं।

वेट्रीचेल्वन कक्षा आठ में पढ़ता है और जब वह स्कूल में नहीं होता है तो हरी सब्जियां बेचकर अपनी मां की मदद करता है। प्रियदर्शनी ऐसा करने के लिए बहुत छोटी है। थंगमणि अतिरिक्त पैसे कमाने के लिए चाय की दुकान भी चलाते हैं।


भोर होते ही गोमती घर से निकल जाती है। लगभग पांच किलोमीटर चलकर हमारी कॉलोनी में आती और जोर-जोर से आवाज लगाती है कि उसके पास साग है। अकेले उसके सिर पर कम से कम 10 किलो का भार होता है। उसके पैरों में फ्लिप-फ्लॉप चप्पल जिसका साइज बड़ा है, जिसकी वजह से जब भी आगे बढ़ती है तो चप्पल अगल-बगल हो जाता है। लेकिन, जब वह जाने-पहचाने चेहरों को देखती है तो वह खूब मुस्कुराती है।

"मैं हर रात सोने से पहले गर्म पानी और हल्दी से गरारे करती हूं," उसने जवाब दिया जब मैंने उसकी तारीफ करते हुए उससे पूछा कि वह अपनी आवाज को इतना तेज और सुरीली कैसे रखती है। वह खिलखिलाकर हंसती है। सुबह करीब पांच बजे से नौ बजे तक गोमती अपना साग बेचती फिरती है। फिर वह उन सब्जियों की देखभाल करने के लिए वापस चली जाती है जिन्हें वह अगले दिन बेचने के लिए काटेगी।

शांति, करूपाथा और गोमती... उन्होंने कभी कोई मदद नहीं मांगी, कभी अतिरिक्त पैसे नहीं मांगे। मैंने उनसे कुछ खरीदा या नहीं, उन्होंने मेरा अभिवादन हमेशा एक पुराने दोस्त की तरह किया। अक्सर मैं केले, साग और फूल मुफ्त में ले कर आती थी। उन्हें जो कुछ भी मिलता, उसे वे बड़ी शालीनता से स्वीकार करतीं और उसी में खुश रहतीं।

ये अभूतपूर्व महिलाएं अधिकांश लोगों, क्षेत्रों के लिए अदृश्य हैं। लेकिन इनकी उपस्थिति, मौजूदगी से इनकार नहीं किया जा सकता।

#RuralIndia #story 

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.