चंपारण सत्याग्रह : निलहों के लठैत किसानों से वसूलते थे रस्सी बुनने से लेकर रामनवमी तक पर टैक्स

Arvind Kumar SinghArvind Kumar Singh   16 April 2018 1:48 PM GMT

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चंपारण सत्याग्रह  : निलहों के लठैत किसानों से वसूलते थे रस्सी बुनने से लेकर रामनवमी  तक पर टैक्सचंपारण जहां से नील सत्याग्रह भी शुरु हुआ था... फोटो अरविंद सिंह

बिहार की धरती से चंपारण शताब्दी समारोह का समापन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 10 अप्रैल को किया। गांधी जी ने 10 अप्रैल 1917 को बिहार की धरती पर कदम रखा था। मुद्दा था नील की खेती के शोषण से किसानों की मुक्ति। लेकिन प्रधानमंत्री की ओर से समापन कार्यक्रम का नाम दिया गया है सत्याग्रह से स्वच्छाग्रह। सरकारी योजना है कि 2 अक्टूबर, 2019 तक भारत के सभी गांवों को खुले में शौच से मुक्त कर दिया जाये।

यह दिलचस्प बात है कि चंपारण की शताब्दी के आरंभ के मौके पर बिहार का राजनीतिक रंग अलग था और मुख्य़ आयोजनों से भाजपा दूर थी। पूर्वी चंपारण के सांसद और भारत के कृषि और किसान कल्याण मंत्री राधामोहन सिंह ने ही तब चंपारण इलाके में कुछ कार्यक्रमों को अंजाम दिया था। तब वे नीतिश कुमार के खिलाफ काफी मुखर थे लेकिन अब तस्वीर बदल गयी है।

चंपारण पर राज्यसभा टीवी की विशेष रिपोर्ट, देखिए वीडियो

चंपारण सदियों से खेती बाड़ी में अग्रणी इलाका रहा

बेशक चंपारण सत्याग्रह को दुनिया भर में ख्याति मिली। गांधीजी ने भी माना चंपारण ने उनको भारत से परिचित कराया। कदम-कदम पर चंपारण में गांधीजी की यादें बिखरी हुई हैं। उन्होंने इस इलाके को ग्रामोद्धार की प्रयोगशाला बनाया। चंपारण शताब्दी के मौके पर गांधीजी की यादों को नए सिरे से सहेजने की कोशिशें की गयी लेकिन ग्रामीण समाज के समक्ष मौजूद तमाम गंभीर चुनौतियों से निपटने की दिशा में खास काम नहीं हुआ।

चंपारण में छोटे किसानों को बहुत चुनौतीपूर्ण हालात से गुजरना पड़ रहा है।

कई कारणों से यहां खेती-बाड़ी डगमगा रही है और खास तौर पर छोटे किसानों को बहुत चुनौतीपूर्ण हालात से गुजरना पड़ रहा है। चंपारण सदियों से खेती बाड़ी में अग्रणी इलाका रहा है। यहां की धरती को धान का नैहर कहा जाता है। इसका गौरवशाली इतिहास रहा है। नील सत्याग्रह के पहले 1857 की क्रांति और फिर किसान जागरण का भी चंपारण प्रमुख केंद्र रहा। लेकिन नील आंदोलन के बाद से इसकी पहचान गांधी के चंपारण के रूप में होने लगी। यह अलग बात है कि बाद में यहीं से 1974 में जेपी आंदोलन की शुरूआत हुई और फिर शराबबंदी आंदोलन की भी।

अंग्रेजी राज में 10 जून 1866 को चंपारण का जो जिला बना था उसे आजादी के बाद 1971 में दो जिलों में विभाजित कर पूर्वी और पश्चिमी चंपारण नाम दे दिया गया। पूर्वी चंपारण का मुख्यालय मोतिहारी और पश्चिमी चंपारण का बेतिया है।

चंपारण में खेती बाड़ी की दुर्दशा 1857 की क्रांति के बाद आरंभ हुई

अंग्रेजी राज में 10 जून 1866 को चंपारण का जो जिला बना था उसे आजादी के बाद 1971 में दो जिलों में विभाजित कर पूर्वी और पश्चिमी चंपारण नाम दे दिया गया। पूर्वी चंपारण का मुख्यालय मोतिहारी और पश्चिमी चंपारण का बेतिया है। पश्चिमी चंपारण 5,229 वर्ग किमी में फैला है औऱ इसका आबादी करीब 40 लाख है। 18 ब्लाक और 1,483 गांवों वाले इस जिले में काफी बदलाव के बाद भी खेती बाड़ी ही लोगों की आजीविका का मुख्य साधन है। विशाल गंडक नदी चंपारण की जीवनरेखा है। चंपारण के दोनों जिलों में कई समानताएं है। पूर्वी चंपारण वैसे तो पश्चिमी चंपारण से आकार में छोटा है लेकिन आबादी में बड़ा है। यहां 1,344 गांव आते हैं। चंपारण में खेती बाड़ी की दुर्दशा 1857 की क्रांति के बाद आरंभ हुई।

चंपारण में खेती बाड़ी की दुर्दशा 1857 की क्रांति के बाद आरंभ हुई।

कर्ज में डूबे तत्कालीन बेतिया महराजा से जमीनें ठेके पर लेकर निलहे अंग्रेज बाद में खुद राजा बन बैठे। कुछ ही सालों में यहां की उपजाऊ भूमि को नील की खेती का प्रमुख केंद्र बना दिया गया। 1892 तक चंपारण में नील के 21 कारखाने खुल गए और करीब 96 हजार एकड़ भूमि पर नील की खेती होने लगी। चंपारण में तिनकठिया प्रथा के साथ निलहे किसानों से पचास से अधिक अवैध टैक्स वसूलने लगे। पेड़ काटने, झोंपड़ी बनाने, रस्सी बुनने के साथ रामनवमी और फगुआ पर भी लठैत गैर क़ानूनी कर वसूलते। यहां की जमीनी हकीकत की पड़ताल के लिए 15 अप्रैल 1917 को गांधीजी मोतिहारी पहुंचे तो उनको अंदाज नहीं था यहां उनको 10 महीना रुकना पड़ जाएगा।

चंपारण में तिनकठिया प्रथा के साथ निलहे किसानों से पचास से अधिक अवैध टैक्स वसूलने लगे। पेड़ काटने, झोंपड़ी बनाने, रस्सी बुनने के साथ रामनवमी और फगुआ पर भी लठैत गैर क़ानूनी कर वसूलते। यहां की जमीनी हकीकत की पड़ताल के लिए 15 अप्रैल 1917 को गांधीजी मोतिहारी पहुंचे तो उनको अंदाज नहीं था यहां उनको 10 महीना रुकना पड़ जाएगा।

कदम कदम पर महात्मा गांधी की यादें बिखरी हैं

गांधीजी ने भीषण गर्मी में पूरे इलाके की धूल फांकी। भाषणबाजी और अखबारबाजी से परहेज करते हुए बहुत शांति और सादगी से उनका सत्याग्रह चलाया। दस महीने के अभियान में महज 2,200 रुपए खर्च हुए और इसके लिए भी उन्होंने चंपारण से कोई चंदा नहीं लिया गया। लेकिन उनके प्रयासों से चले चंपारण सत्याग्रह से अंग्रेजों पर ऐसा दबाव बना कि सरकार को 10 जून, 1917 को चंपारण एग्रेरियन जांच समिति बनानी पड़ी।

चंपारण में गांधी जी की प्रतिमा।

नवम्बर,1917 में विधान परिषद् में चंपारण एग्रेरियन बिल पारित हुआ और 1 मई 1918 से चंपारण के किसानों को सौ साल के नील शोषण से मुक्ति मिल गयी। निलहों को मन मार कर यहां से विदा होना पड़ा। आज 100 साल बाद भी चंपारण में कदम कदम पर महात्मा गांधी की यादें बिखरी हैं। केवल आंदोलन ही नहीं चलाया बल्कि यहां गांधीजी ने शिक्षा से लेकर ग्रामोद्धार की तमाम योजनाओं का खाका तैयार किया।

अपने जीवन काल में वे कभी चंपारण को नहीं भूले और न चंपारण ने गांधी को। चंपारण की शताब्दी पर गांधीजी की यादों को नए सिरे से सहेजने की कोशिशें तो की गयी लेकिन ग्रामीण समाज अभी भी तमाम चुनौतियों से जूझ रहा है। उस दिशा में कोई भी काम नहीं किया गया।

लेखक, राज्यसभा टीवी में वरिष्ठ पत्रकार हैं। गांव और किसान के मुद्दे पर देश का भ्रमण कर चुके हैं। ‘खेत-खलिहान’ गांव कनेक्शन में आपका साप्तहिक कॉलम है। आप उनके फेसबुक से ऐसे जुड़ सकते हैं

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