सरकार ! चीनी मिलों पर गन्ने का बकाया बढ़कर 16 हजार 349 करोड़ रुपए हो गया है...

Arvind Kumar SinghArvind Kumar Singh   3 April 2018 10:49 AM GMT

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सरकार ! चीनी मिलों पर गन्ने का बकाया बढ़कर 16 हजार 349 करोड़ रुपए हो गया है...सबसे अधिक बकाया 5,600 करोड़ रुपए उत्तर प्रदेश की चीनी मिलों पर है।

ऐसे दौर में जबकि किसानों को वाजिब दाम देने का मसला राजनीतिक हलकों में छाया हुआ है और एमएसपी को लेकर सत्ता पक्ष, विपक्ष और किसान संगठनों के बीच वाकयुद्ध चल रहा, देश का गन्ना किसान फिर से बेहाल खड़ा है। इस समय देश में चीनी मिलों पर गन्ना किसानों को कुल बकाया बढ़ कर 16 हजार 349 करोड़ हो गया है। इसमें से करीब 1700 करोड़ रुपए का बकाया 2015-16 और उससे पहले का है।

सबसे अधिक बकाया 5,600 करोड़ रुपए उत्तर प्रदेश की चीनी मिलों पर है। केंद्रीय खाद्य और उपभोक्ता मामलों के मंत्री राम विलास पासवान ने 23 मार्च,2018 को राज्य सभा में विश्वंभर प्रसाद निषाद, छाया वर्मा और चौधरी सुखराम यादव के एक सवाल के जवाब में इस बात को स्वीकार किया। सरकार यह भी मानती है कि गन्ने का दाम 14 दिनों के भीतर अदा करना होता है और अगर मिलें इसमें विफल रहीं तो उऩको किसानों को 15 फीसदी ब्याज देना पड़ता है। लेकिन जमीनी हकीकत कुछ अलग हैं।

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पिछले कुछ सालों में सरकार की ओर से चीनी मिलों को काफी रियायतें दी गयी हैं। चीनी उद्योग की माली दशा सुधारने को वित्तीय सहायता समेत कई कदम उठे हैं और कच्ची चीनी के निर्यात प्रोत्साहन के साथ चीनी का आयात शुल्क बढा कर 100 फीसदी कर दिया गया है। चीनी मिलों को एथनाल से भी आय हो रही है। सरकारी दावा है कि इन प्रयासों का असर पड़ा। लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि इस समय किसानों का 2015-16 सत्र का 1671 करोड़ और 2016-17 के लिए 841 करोड़ रुपए बकाया है, जबकि 2017-18 का बकाया 13,837 करोड़ है।

यह तस्वीर बताती है कि मिलों की तरफ तो ध्यान दिया जा रहा है लेकिन गन्ना किसान बीते कई सालों से और खास तौर पर 2005 से अस्थिर ही बने हुए हैं और समय पर दाम न मिलने से उनका गणित बिगड़ता जा रहा है। सबसे बड़े आबादी वाले उत्तर प्रदेश में 50 लाख किसानों के लिए गन्ना जीवन रेखा की तरह है। कभी यह उनकी खुशहाली का प्रतीक था लेकिन अब परेशानी का सबब बनता जा रहा है। खुद किसान जागरण के केंद्र रहे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गन्ना अब कड़वाहट पैदा कर रहा है।

वैसे तो भारतीय अर्थव्यवस्था में गन्ने का कम योगदान नहीं है। इसी की बदौलत चीनी और कई सहयोगी उद्योग चलते हैं। देश में 42 फीसदी गन्ना पैदा करने वाले उत्तर प्रदेश में नौकरशाही और राजनीति पर किसानों की जगह मिलों की पकड़ मजबूत है। पूर्वी उत्तर प्रदेश में पहले से ही गन्ना किसान बेहाल हैं और बीमार और बंद मिलें बढ़ रही हैं। फिर भी राज्य में गन्ने की फसल का योगदान करीब 30 हजार करोड़ रुपए का है।

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उत्तर प्रदेश में गन्ना विकास के लिए एक बड़ा विभाग और कैबिनेट मंत्री होने के साथ हर जिले में बड़ा तंत्र है। देवरिया में ही 1903 में देश की सबसे पुरानी चीनी मिल स्थापित हुई। यहां 1935 में गन्ना विकास विभाग स्थापित हुआ। पंडित गोविंद बल्लभ पंत के मुख्यमंत्री काल में गन्ना किसानों की मदद के लिए शुगर फैक्ट्रीज़ कन्ट्रोल एक्ट, 1938 लागू हुआ। 1953-54 में उत्तर प्रदेश गन्ना पूर्ति एवं खरीद विनियमन अधिनियम 1953 लागू कर ठोस तंत्र बनाया गया।

किसानों के शोषण से बचाने के लिए चीनी मिलों के दायरे में सहकारी गन्ना समितियों का मजबूत तंत्र भी यहां बना। अरसे तक चीनी मिलें अपने इलाके में सड़कें बनाने से लेकर शिक्षा औऱ स्वास्थ्य पर धन व्यय करती थीं और कृषि यंत्रों औऱ बीजों का वितरण भी करती थीं। सत्तर के दशक तक इनका बेहतरीन काम रहा। इन कदमों से किसानों का शोषण रुका लेकिन आज तस्वीर फिर से चिंताजनक बनती जा रही है।

बाकी फसलों में तो किसान औने पौने दाम पर कुछ हासिल कर लेता है लेकिन गन्ना किसान एक अलग अनिश्चय की चपेट में बना हुआ है। मिलों से भुगतान में देरी अब आम बात होती जा रही है, जबकि घटतौली, परची मिलने में देरी जैसी शिकायतें भी बढ़ रही हैं। किसानों पर बैंकों या सरकार का बकाया होता है तो वे जेल भेजे जाते हैं। लेकिन यहां उऩको भुगतान के लाले पड़े रहते हैं। इसी कारण बहुत से किसानों का गन्ने की खेती से मोहभंग हो गया है और वे सब्जियों की खेती की ओर मुड़ रहे हैं।

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उत्तर प्रदेश में 2005 के बाद चीनी मिलों औऱ गन्ना किसानों के बीच कड़वाहट बढ़ती जा रही है। 2012 में समाजवादी पार्टी ने गन्ना किसानों को 350 रुपए कुंतल का दाम देने का वायदा किया था। लेकिन किसानों की परेशानियां और बढ़ गयीं। किसानों को कभी चीनी मिलों को चालू कराने, कभी मूल्य घोषित कराने के लिए सड़क पर उतरना पड़ता है तो कभी भुगतान के लिए।

भारत में सालाना करीब 60 से 65 हजार करोड़ रुपए का गन्ना बिकता है। हम दुनिया में गन्ना और चीनी के सबसे बड़े उत्पादक देशों में है और यहां करीब पांच करोड़ गन्ना किसान और इस पर आश्रित लाखों कृषि मजदूरों की आजीविका गन्ने से चलती है। देश की करीब 7.5 फीसदी ग्रामीण आबादी का भाग्य विधाता गन्ना है। गन्ने की फसल तैयार होने में 10 से 14 महीने तक लगते हैं।

उत्तर प्रदेश में करीब 24 लाख हेक्टेयर इलाके में गन्ना पैदा होता है जबकि औसत उपज 66 टन प्रति हेक्टेयर तक है। उत्तर प्रदेश में पहली पंचवर्षीय योजना तक 68 चीनी मिलें थीं। ये बढ़ कर अब 132 हो गयी हैं। इनमें 91 मिलें निजी क्षेत्र की हैं जो शासन पर अपनी ताकत रखती हैं। जब पेराई सत्र 2017-18 के लिए गन्ने का दाम महज 10 रुपए प्रति कुंतल बढा तो भारतीय किसान यूनियन ने उत्तर प्रदेश विधानसभा के सामने गन्ने को जलाकर योगी सरकार के खिलाफ विरोध दर्ज कराया है।

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भारत सरकार ने गन्ना मूल्य भुगतान के मद्देनजर देश से चीनी निर्यात को बढ़ावा 20 मार्च 2018 को कच्ची और सफेद दोनों प्रकार की चीनी पर 20 फीसदी निर्यात शुल्क भी हटा दिया है। खाद्य मंत्रालय चाहता था कि चीनी निर्यात को शुल्क मुक्त कर दिया जाये लेकिन वित्त मंत्रालय ने इसे पहले खारिज कर दिया था।

भारत सरकार ने गन्ना मूल्य भुगतान के मद्देनजर देश से चीनी निर्यात को बढ़ावा 20 मार्च 2018 को कच्ची और सफेद दोनों प्रकार की चीनी पर 20 फीसदी निर्यात शुल्क भी हटा दिया है। खाद्य मंत्रालय चाहता था कि चीनी निर्यात को शुल्क मुक्त कर दिया जाये लेकिन वित्त मंत्रालय ने इसे पहले खारिज कर दिया था।

विदेश से सस्ती चीनी के आयात पर प्रतिबंध लगाने के तहत आयात शुल्क भी 50 फीसदी से बढ़ा कर सौ फीसदी कर दिया गया है लेकिन यह कदम देरी से उठाया गया है। किसान नेता अशोक बालियान का कहना है कि चीनी के मूल्य गिरने से गन्ना मूल्य भुगतान संकट के खतरों को देखते हुए भारतीय किसान यूनियन और पीजेंट वेलफेयर एसोसिएशन लगातार चीनी से निर्यात शुल्क हटाए जाने की मांग कर रही थी। देश में अधिकांश स्थानों पर चीनी की कीमत गिरकर 2,900 से 3,000 रुपये प्रति क्विंटल हो गयीं। इस कारण मिलों ने भी भुगतान से हाथ खड़े कर दिए।

चालू गन्ना पेराई वर्ष 2017-18 (अक्टूबर-सितंबर) में चीनी का उत्पादन 295 लाख टन होने का अनुमान है। देश में चीनी की खपत 250 लाख टन के करीब रहने की उम्मीद है। निर्यात शुल्क समाप्त करने से चीनी के दाम में तात्कालिक 50-100 प्रति कुंतल बढत हो सकती है औऱ कम से कम 20 लाख टन चीनी का निर्यात किया जा सकता है। लेकिन यह सब अलग बातें हैं। यह सही समय है कि गन्ना किसानों के भुगतान की समस्या को दूर करने के लिए भारत सरकार, राज्य सरकारें और विभिन्न स्वामित्व वाली चीनी मिलें मिल कर ठोस रास्ता निकालें। अन्यथा गन्ने की खेती से मोहभंग होना सब पर भारी पड़ सकता है।

लेखक, राज्यसभा टीवी में वरिष्ठ पत्रकार हैं। गांव और किसान के मुद्दे पर देश का भ्रमण कर चुके हैं। ‘खेत-खलिहान’ गांव कनेक्शन में आपका साप्तहिक कॉलम है। आप उनके फेसबुक से ऐसे जुड़ सकते हैं

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