बाघों और मंगलयान की तुलना करना भले ही अजीब लगता हो लेकिन एक नया जैव आर्थिक विश्लेषण बेहद दिलचस्प आंकड़े पेश करता है जिसके अनुसार, दो बाघों को बचाने से होने वाला लाभ मंगल ग्रह पर जाने की भारत की बहुचर्चित पहली कोशिश पर आने वाली लागत की तुलना में कहीं ज्यादा है।भारतीय आस्ट्रेलियाई वैज्ञानिकों के एक दल ने अपने तरह के अनूठे विश्लेषण में एक दस्तावेज प्रकाशित किया है। इसका शीर्षक ‘मेकिंग द हिडन विजिबल: इकोनॉमिक वैल्यूएशन ऑफ टाइगर रिजर्व्स इन इंडिया’है और यह ‘इकोसिस्टम सवर्सिेज’ जर्नल में प्रकाशित हुआ है।
इस दस्तावेज में कहा गया है कि दो बाघों को बचाने व उनकी देखभाल से होने वाला लाभ करीब 520 करोड़ रुपए है जबकि इसरो की मंगल ग्रह पर मंगलयान भेजने की तैयारी की कुल लागत लगभग 450 करोड़ रुपए है। अंतिम अनुमान के अनुसार, भारत में वयस्क बाघों की संख्या 2,226 है जिसका मतलब है कि कुल लाभ 5.7 लाख करोड़ रुपए होगा। यह राशि सरकार द्वारा विमुद्रीकृत की गई कुल रकम के एक तिहाई के समकक्ष है। यही वजह है कि संरक्षणवादी तर्क देते हैं कि बाघों को बचाना आर्थिक नजरिये से बेहतर है।
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यह स्थिति तब है जब समाज को पारिस्थितिकी संबंधी कई लाभ उन प्राकृतिक रिहायशों के संरक्षण से होते हैं जहां बाघ प्रमुख प्रजाति है। लेकिन इन लाभों को कोई आर्थिक महत्व नहीं दिया जा सकता। वह भी तब जब बाघों को बचाने से होने वाला लाभ अच्छा खासा है। वैज्ञानिकों ने छह टाइगर रिजर्व का अध्ययन किया और अनुमान लगाया कि उनका संरक्षण करना 230 अरब डॉलर की राशि को सुरक्षित रखने के समान है। इस राशि को वैज्ञानिकों ने इन टाइगर रिजर्व के लिए ‘स्टॉक बेनिफिट्स’ कहा है।
भारतीय आस्ट्रेलियाई वैज्ञानिकों के 11 सदस्यीय दल का कहना है कि जैव विविधता से जुड़ी पारिस्थितिकी संबंधी सेवाओं का आर्थिक महत्व संरक्षण को अधिक प्रभावी बनाने में मदद कर सकता है और जैव विविधता से होने वाले लाभ नीति निर्माताओं का भी ध्यान आकृष्ट करेंगे। भोपाल स्थित भारतीय वन प्रबंधन संस्थान के प्रोफेसर मधु वर्मा के नेतृत्व वाले इस वैज्ञानिक दल का कहना है कि भारत में टाइगर रिजर्व न केवल वैश्विक बाघ आबादी की आधी से अधिक संख्या को सहयोग देते हैं बल्कि यह जैव विविधता के संरक्षण के लिए भी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि यह पारिस्थितिकी संबंधी सेवाओं के रूप में आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक लाभ भी मुहैया कराते हैं।
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वर्मा ने कहा “इस महत्व को नजरअंदाज करने से निवेश एवं कोष आवंटन संबंधी फैसलों सहित जन नीतियों पर असर पड़ता है जिससे उनकी सुरक्षा पर असर पड़ सकता है और मानव कल्याण की राह में भी बाधा आ सकती है। भारत में छह टाइगर रिजर्व की पारिस्थितिकी संबंधी सेवाओं के आर्थिक मूल्यांकन के माध्यम से हम बताते हैं कि इन टाइगर रिजर्व्स में निवेश में वृद्धि आर्थिक रूप से तर्कसंगत हैं।’’ वैज्ञानिक दल ने छह टाइगर रिजर्व्स से देश को होने वाले आर्थिक लाभों का विश्लेषण किया। इन छह टाइगर रिजर्व्स में से जिम कार्बेट टाइगर रिजर्व में 215 बाघ हैं, कान्हा टाइगर रिजर्व में 80 बाघ, काजीरंगा में 106 बाघ, पेरियार रिजर्व में 35 बाघ, रणथम्भौर में 46 और सुंदरबन टाइगर रिजर्व में 76 बाघ हैं। यह अनुमान वर्ष 2014 के आंकड़ों पर आधारित हैं जब राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण ने अपनी अंतिम देशव्यापी गणना पेश की थी।
इसे प्रत्येक बाघ के संरक्षण से सालाना हुए लाभ के ब्याज के तौर पर देखा जा सकता है। इन छह टाइगर रिजर्व्स के रखरखाव पर सालाना खर्च केवल 23 करोड़ रुपए हुआ। आर्थिक विश्लेषण बताता है कि प्रत्येक बाघ को बचाने के लिए किए गए निवेश पर लाभ इसका 356 गुना अधिक है। कोई भी उद्योग या सेवा इस तरह का उच्च प्रतिफल नहीं दे सकता। प्रोजेक्ट टाइगर के पूर्व प्रमुख और नई दिल्ली स्थित ग्लोबल टाइगर फोरम के वर्तमान महासचिव राजेश गोपाल कहते हैं “परंपरागत अर्थशास्त्री हरित गणना के इस नए तरीके पर कभी कभार ही सोचते हैं।’’
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भारत में पूरी दुनिया की बाघ आबादी का 60 फीसदी हिस्सा रहता है और 50 टाइगर रिजर्व्स की स्थापना के जरिए वन में रहने वाले वयस्क बाघों की संख्या लगातार बढ़ रही है। यह संख्या वर्ष 2006 में 1,411 थी जो वर्ष 2015 में बढ़ कर 2,226 हो गई है। बाघों की अगली देशव्यापी गणना वर्ष 2018 में होगी। गोपाल बाघों के संरक्षण के लिए निवेश बढ़ाने की वकालत करते हुए कहते हैं “भारत में बाघ संरक्षण के पिछले 35 साल में, सरकार ने करीब 1,200 करोड़ रुपए खर्च किए हैं। छह टाइगर रिजर्व्स के विश्लेषण से पता चलता है कि इनसे 2305.6 करोड़ सालाना का लाभ हुआ।’’ यह आंकड़े आंखें खोलने वाले हैं।
आज देश का 2.3 फीसदी भौगोलिक क्षेत्र टाइगर रिजर्व के तहत संरक्षित है और गोपाल आर्थिक लाभ की ओर संकेत करते हुए कहते हैं कि संरक्षित वनों से करीब 300 छोटी बड़ी नदियां निकलती हैं जिनके प्रवाह के लाभ अमूल्य हैं। गोपाल कहते हैं “प्राकृतिक पारिस्थितिकी के मानव केंद्रित लाभों का अनुमाान लगाना लगभग असंभव है क्योंकि इनमे से कई तो नजर नहीं आते।’’ इसे विस्तार देते हुए वर्मा कहते हैं “हमारे पास अब भी पारिस्थितिकी के बारे में, सभी प्रजातियों के बारे में और उन विभिन्न तरीकों के बारे में न तो पर्याप्त जानकारी है और न ही समझबूझ है जिनसे मानव कल्याण में वृद्धि होती है ताकि हम इनमें से प्रत्येक के महत्व का अनुमान लगा सकें।’’
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बाघ संरक्षण में लगे विशेषज्ञ बताते हैं कि पिछली सदी में देश को भुखमरी से बचाने वाली चावल की किस्म आईआर-8 थी। अत्यधिक उत्पादन वाली यह किस्म बाघ की उन रिहायशों से एकत्र धान की जंगली किस्म है जो अब छत्तीसगढ़ का हिस्सा हैं। गोपाल कहते हैं “बाघ एक मुख्य प्रजाति है और इसके साथ ही कई लाखों जीव जन्तुओं को बचाया जा रहा है।’’ उन्होंने कहा कि प्रोजेक्ट टाइगर की स्थापना करने का एक उद्देश्य “प्राकृतिक विकासवाद संबंधी प्रक्रिया की निरंतरता सुनिश्चित करना है।’’ अब हरित गणना बाघों के संरक्षण के लिए एक पूरी नई दिशा प्रदान कर रही है। गोपाल कहते हैं “हरित नियोजन समय की मांग है।’’
(पल्लव बाग्ला विज्ञान के जाने माने लेखक है, यह उनके अपने विचार हैं, पीटीआई/भाषा)
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