दो परमाणु रिएक्टरों को हुए ‘चेचक’ की जांच कर रहे वैज्ञानिक

गाँव कनेक्शनगाँव कनेक्शन   22 March 2017 12:24 PM GMT

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दो परमाणु रिएक्टरों को हुए ‘चेचक’ की जांच कर रहे वैज्ञानिकऐसी विसंगति देखने को मिली है, जैसी इंसानों में ‘चेचक’ के संक्रमण के दौरान देखने को मिलती है।

बेहद सुरक्षित भारतीय परमाणु रिएक्टर परिसर में विकिरण रोधी मजबूत पाइपों पर कुछ ऐसी विसंगति देखने को मिली है, जैसी इंसानों में ‘चेचक’ के संक्रमण के दौरान देखने को मिलती है। इसलिए, बॉलीवुड की एक थ्रिलर फिल्म की कहानी की तरह भारतीय वैज्ञानिक गुजरात के काकरापार परमाणु ऊर्जा संयंत्र में परमाणु रिसाव की गुत्थी सुलझाने के लिए कड़ी मशक्कत कर रहे हैं। 21वीं सदी का यह एटॉमिक पॉट बॉयलर असल में वैज्ञानिकों की कड़ी मेहनत का परिणाम है। इसकी दीवार उस मशहूर संपत्ति से जुड़ी है, जहां जाने-माने बॉलीवुड फिल्म स्टार राजकपूर रहा करते थे।

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यहां वे दक्षिणी गुजरात में दोहरे रिएक्टरों से हुए रहस्यमयी रिसाव की असल वजह का पता लगाने के लिए अतिरिक्त समय तक काम कर रहे हैं। किसी भी अफरातफरी और किसी अन्य दुर्घटना से बचने के लिए भारतीय परमाणु निगरानी संस्था- परमाणु ऊर्जा नियमन बोर्ड ने प्रभावित संयंत्रों को तब तक के लिए बंद कर दिया है, जब तक रिसाव की वजह का पता नहीं लगा लिया जाता।

परमाणु विशेषज्ञाें का कहना है कि एक दुर्लभ मिश्रधातु से बने पाइपों के ऊपर ‘चेचक’ जैसा संक्रमण हुआ है और यह संक्रमण गुजरात के काकरापार में दो भारतीय संपीडित भारी जल रिएक्टरों की नलियों में फैल चुका है। इस पर दुखद स्थिति यह है कि एक साल से अधिक समय तक जांच के बावजूद वैज्ञानिक यह नहीं समझ पाए हैं कि गड़बड़ी हुई कहां है। जापान के फुकुशिमा रिएक्टरों में विस्फोटों के ठीक पांच साल बाद 11 मार्च 2016 की सुबह काकरापार में 220 मेगावाट संपीडित भारी जल रिएक्टर की इकाई संख्या एक में भारी जल का रिसाव शुरू हो गया और उसे आपात स्थिति में बंद करना पड़ा।

स्वदेश निर्मित परमाणु संयंत्र के प्राथमिक प्रशीतक चैनल में भारी जल का रिसाव हुआ और संयंत्र में आपात स्थिति की घोषणा कर दी गई। भारतीय परमाणु ऊर्जा विभाग ने इस बात की पुष्टि की कि कोई भी कर्मचारी विकिरण के प्रभाव में नहीं आया और संयंत्र के बाहर कोई रिसाव नहीं हुआ। भारतीय परमाणु संचालक न्यूक्लियर पावर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड ने कहा, ‘रिएक्टर को सुरक्षित ढंग से बंद कर दिया गया है’ और ‘विकिरण का कोई रिसाव नहीं हुआ’।

एनपीसीआईएल ने यह पुष्टि की कि सुरक्षा प्रणाली सही तरीके से काम करती थी। विशेषज्ञ इस बात का पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि रिसाव का पता लगाने वाली प्रणाली विफल कैसे हुई। वास्तव में इसे सबसे पहले एक अलार्म देना चाहिए था। एईआरबी के अध्यक्ष एस.ए. भारद्वाज ने पुष्टि करते हुए कहा, “सभी संपीडित भारी जल रिएक्टरों में रिसाव का पता लगाने वाली एक प्रणाली है लेकिन 11 मार्च 2016 को हुए लीक का पता लगाने में वह विफल रही है।” एईआरबी का कयास है कि दरार इतनी तेजी से बनी कि विद्युत रिसाव पहचान प्रणाली को प्रतिक्रिया देने का समय ही नहीं मिला।

इसके बाद की जांचों में पाया गया कि रिसाव सूचक प्रणाली पूरी तरह से काम कर रही थी और संचालक ने खर्च बचाने के लिए ‘उसे बंद नहीं किया था’। पहले रिसाव के कई सप्ताह बाद शुरुआती जांच में पाया गया कि प्रशीतक ट्यूब पर चार बड़ी दरारें बन गई थीं, जिनके कारण इतना भारी रिसाव हुआ। इस दरार का पता लगना रहस्य की शुरुआत भर थी। इसकी वजह का पता लगाने के अन्य प्रयासों से पता चला कि जो हिस्सा उच्च तापमान वाले भारी जल के संपर्क में नहीं था, वह भी किसी अज्ञात वजह के चलते ‘संक्षारित’ हो गया था। यह एक बड़ी खोज थी क्योंकि संक्षारित हुई ट्यूब का बाहरी हिस्सा सिर्फ उच्च ताप वाली कार्बन डाइ ऑक्साइड के संपर्क में था और किसी ट्यूब के बाहर ऐसे संक्षारण का कोई ज्ञात मामला नहीं है।

एईआरबी ने आदेश दिया कि जिरकोनियम-नियोबियम की विशेष मिश्रधातु से बनी सभी ट्यूबों के बाहरी हिस्से की जांच की जाए। उन्होंने पाया कि दानेदार संक्षारण, 306 ट्यूबों में फैला हुआ था। आम आदमी की भाषा में इसे चेचक जैसा संक्रमण कहा जा सकता है। इसी बैच की अन्य ट्यूबें अन्य भारतीय रिएक्टरों में भी लगी हैं लेकिन निर्बाध रूप से और बिना किसी संक्षारण के काम कर रही हैं। अब शक की सुई कार्बन डाइऑक्साइड गैस की ओर है, जिसे विकिरण के पर्यावरण में बेहद स्थिर माना जाता है।

आगे जांच में पता चला कि प्रभावित रिएक्टर की समरूप इकाई-2 में भी एक जुलाई 2015 को ऐसा ही रिसाव हुआ था। हालांकि उस रिसाव की वजह की जांच का कोई ठोस नतीजा सामने नहीं आया है। एक के बाद एक दो संचालित रिएक्टरों में रिसाव के इन दो मामलों के कारण इंजीनियर उलझन में हैं। मूल वजह का पता लगाने के लिए तत्पर एईआरबी ने आदेश दिया कि सिर्फ प्रभावित ट्यूब को ही नहीं, पूरे समूह को ही सुरक्षित तरीके से निकाला जाए और भारत की मुंबई स्थित प्रमुख परमाणु प्रयोगशाला भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र में विस्तृत विश्लेषण के लिए लाया जाए।

भारत में ऐसे ही 16 अन्य परमाणु संयंत्र संचालित हैं। ऐसे में सभी परमाणु ऊर्जा संयंत्राें के प्रशीतक चैनलों की पूर्ण जांच की गई और जांचकर्ता दल ने पाया कि ‘चेचक’ जैसा संक्षारण काकरापार की दो इकाइयों तक ही सीमित था। इससे एनपीसीआईएल को बड़ी राहत मिली लेकिन काकरापार में हुए रिसाव की मूल वजहों का पता लगाने की जटिलता बढ़ गई। भारद्वाज ने कहा कि आज जांचकर्ता इस बात पर सोच रहे हैं क्या काकरापार में प्रयुक्त कार्बन डाइ ऑक्साइड विषाक्त हो गई है, जिसके चलते पाइपों के बाहर दानेदार संक्षारण हो गया।

कार्बन डाइ ऑक्साइड के स्रोत का भी पता लगाया गया और पाया गया कि सिर्फ काकरापार संयंत्र ही अपनी गैस ‘नेप्था क्रेकिंग यूनिट’ से ले रहा है। ऐसे में संभवत: इसमें हाइड्रोकार्बनों की विषाक्तता हो। इस संदर्भ में अभी फोरेंसिक विश्लेषण जारी है और विषाक्तता का कोई ठोस साक्ष्य नहीं मिला है। संयंत्राें के इतिहास की विस्तृत जांच में पाया गया कि वर्ष 2012 में काकरापार संयंत्र से दो ट्यूबों को नियमित रखरखाव के तहत निकाला गया था और एक सुरक्षित गोदाम में रखा गया था।

जब इनकी वर्ष 2017 में दोबारा जांच की गई तो जांचकर्ता इस बात से हैरान थे कि ट्यूब के बाहर ‘चेचक’ जैसा संक्षारण मौजूद नहीं था। इससे जांचकर्ताओं को संदेह हो गया कि शायद वर्ष 2012 के बाद ही कुछ गड़बड़ हुई है। इसी बीच एईआरबी और परमाणु ऊर्जा प्रतिष्ठान ने इस रहस्य को सुलझाने में मदद के लिए व्यापक वैश्विक परमाणु ऊर्जा समुदाय से भी संपर्क किया है। हालांकि वैश्विक समुदाय भी इन विफलताओं को परिभाषित कर पाने में भारतीय दलों की तरह खराब स्थिति में ही रही है। भारत में इस समय कुल 22 परमाणु रिएक्टर संचालित हैं और इनकी क्षमता 6780 मेगावाट है। भारत को उम्मीद है कि वह वर्ष 2032 तक परमाणु उत्पादन 32 हजार मेगावाट तक बढ़ा सकता है।

(यह लेखक के निजी विचार हैं। पीटीआई)

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