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“ शिवराज सरकार की भावांतर योजना कहीं लाभकारी मूल्य और गारंटी इनकम की भ्रूण हत्या तो नहीं ”

Farmers

मध्यप्रदेश देश में अपनी तरह की पहली योजना भावांतर को लागू करने वाला पहला राज्य बन गया है। शिवराज सरकार का दावा है कि किसानों की आय दोगुनी करने की दिशा में ये योजना आने वाले दिनों में मील का पत्थर साबित होगी। योजना के तहत न्यूनतम समर्थन मूल्य की जगह मॉडल रेट तय किया जाएगा और उस दर से किसान की उपज अगर बिकती है तो रेट में जो अंतर आएगा उसे सरकार अपने तरफ से पूरा करेगी।

मध्यप्रदेश की समस्या ये थी कि केंद्र सरकार धान गेहूं गन्ना समेत कई फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करती है लेकिन मध्यप्रदेश तिलहन, मूंगफली, तिल, रामतिल, कुसुम, मक्का, मूंग, उड़द और तुअर बहुतायत से होती है। जब इनके भाव में गिरावट आती है तो किसानों को काफी नुकसान उठाना पड़ता है, लेकिन अब इन फसलों को भावांतर योजना के तहत भुगतान करते किसानों को उचित मूल्य देने की गारंटी देकर किसानों की हानि की पूर्ति की जा सकेगी।

किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य दिलाने के लिए पायलेट आधार पर ये योजना खरीफ 2017 के लिए लागू की गई है। फिलहाल इसमें 8 फसलें रखी गई हैं, जिन्हें सरकारी मंडी में बेचना होगा। इस दौरान अगर उपज अगर सरकार द्वारा तय मॉडल रेट से कम पर बिकती है तो वो अंतर सरकार डीबीटी के माध्यम से सीधे किसानों के खाते में भेजेगी। योजना में सोयाबीन, मूंगफली, तिल, रामतिल, मक्का, मूंग, उड़द और तुअर की फसलें ली गई हैं।

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वर्ष 2015 में नीति आयोग ने सरकार को ध्यान दिलाया था कि गेहूं, धान और गन्ने का केंद्र सरकार द्वारा एमएसपी घोषित होने से किसान उसे ही ज्यादा उगाते हैं। इन फसलों की लगातार बुआई से पानी के संसाधनों पर संकट के साथ मिट्टी की गुणवत्ता भी प्रभावित हो रही है। सरकार के थिंक टैंक ने एमएसपी सिस्टम से इस समस्या को हटाने के लिए कीमत (रेट) की कमी भुगतान प्रणाली की शुरुआत करने का सुझाव दिया था। नई प्रणाली के तहत, अन्य लक्षित उपज पर एक सब्सिडी प्रदान की जाएगी, अगर कीमत एमएसपी से जुड़ी थ्रेशोल्ड से नीचे होती है। कृषि क्षेत्र के लिए अपने रोडमैप में, नीति आयोग ने इस दृष्टिकोण का सुझाव दिया है जिसके कारण सरकारी खरीद की आवश्यकता नहीं होगी।

योजना का लाभ लेने के लिए किसान को अपनी बुआई को नजदीकी कृषि उत्पाद विपणन समितियों (एपीएमसी) मंडी के साथ बोया जाने वाला रकबा रजिस्टर करना होगा। अगर बाजार मूल्य मॉडल मूल्य से नीचे आता है, तो किसान एमएसपी से जुड़े मूल्य के लगभग 10 प्रतिशत के अंतर के हकदार होंगे, जो आधार-लिंक्ड बैंक खाते में सीधे लाभ हस्तांतरण के माध्यम से भुगतान किया जा सकता है। इस के माध्यम से सब्सिडी की मात्रा तय करने में मदद मिलेगी और विश्व व्यापार संगठन द्वारा लगाए गए सब्सिडी पर प्रतिबंधों को भी पूरा करेगी।

इस योजना को मध्य प्रदेश में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में लागू करने के दो पहलु हैं। एक यह पहला राज्य है जिसने किसानों के लिए 8 फसलों को समर्थन मूल्य के नीचे बिकने नहीं दिया जायेगा, जो की यह बेहद अच्छा है कांसेप्ट लगता है। दूसरा इसका पहलु समझ में आता है कि सरकार सरकारी खरीदी में हो रहे भ्रष्टाचार, खरीदी में असमानता, किसानों के आक्रोश, पेमेंट और फसलों के ख़राब होने से होने वाले नुकसान से बचा जा सके। इस योजना से सरकार के लिए ‘विन-विन’ की अवस्था रहेगी,क्योंकि अगले वर्ष चुनाव होने और मध्य प्रदेश में किसान आज सरकार से खुश नहीं है इस कारण सरकार किसानों को खुश करने की और ध्यान केद्रीत कर रही है।

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यह योजना भी प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की तरह सिर्फ MSP का नाम बदलकर फसल भावान्तर योजना किया गया है। इसको लागू करने के पीछे कारणों को समझना होगा। पहला कारण है की सरकार के पास सभी फसलों को खरीदने के लिए पूंजी और बाजार का आभाव है। इस योजना के माध्यम में उदड़, सोयबीन 3050 में खरीदने की बजाय किसानों को मॉडल प्राइस के अंतर से 100 से 150 देना होगा, जिससे पूंजी की ज्यादा आवश्यकता नहीं होगी साथ ही खरीदी, ट्रांसपोर्टेशन, भण्डारण और नुकसान जो की लगभग 300 रु प्रति कुंतल होता है, उससे बचा जा सकेगा। दूसरा सरकार ने किसानों से वायदा किया था कि किसानों को लागत का डेढ़ गुना देंगे, जो कि अभी किसी भी दृष्टि से लागू होता हुआ नजर नहीं आ रहा है। उस मांग की जगह नई उम्मीद देना है, यह करते करते चुनाव आ जायेंगे।

दूसरा सरकार द्वारा एफसीआई को बंद करने की चर्चा सबके सामने आती रही है, जिसके लिए भावान्तर सरकार के लिए मिल का पत्थर होगी। तीसरा सरकार मंडियों को धीरे-धीरे ई-मॉडल पर ले जाना चाहती है, जिससे देश में कार्पोरेट हाउस फसलों का व्यवसाय आसानी से कर सकें। जैसे आईटीसी की चौपाल, कारगिल साथी, महिंद्रा, रिलायंस को आदि आसानी होगी। चौथा मध्यप्रदेश में प्याज खरीदी और गेंहू-धान की सड़ने की खबर आती हैं, इससे बचा जा सकेगा। पांचवां किसानों की कर्ज माफ़ी का मुद्दा भी, जिसमे यदि सरकार किसानों का कर्ज माफ़ करती है तो उसको खरीदी के भुगतान के अंतर से कई ज्यादा पैसा किसानों को देना पड़ेगा और साथ ही जिन किसानों को कर्जमाफी का फायदा नहीं मिलेगा, वो नाराज हो जायेंगे। जो की गाँवों में बड़े स्तर पर वोट बैंक को प्रभावित करते हैं। इन सभी को देखकर यह लगता है की यह योजना सिर्फ चुनाव के समीकरण को साधने की योजना है।

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किसानों के लिए यह योजना ‘गाडर पाली ऊन को लागी, चरन कपास’ वाली कहावत नजर आ रही है। किसानों के आन्दोलन में लाभकारी लगत के मूल्य और सुनिश्चित आय की मांग हुई थी, क्योंकि किसान समर्थन मूल्य के निर्धारण से खुश नहीं हैं, लेकिन सरकार ने चुनावी माहौल देखकर किसानों से समर्थन मूल्य पर खरीदी को ही नया मॉडल देकर मुख्य मांगों को नजरअंदाज कर दिया गया है।|

यह योजना में सिर्फ कागजों पर अपने नंबर बढाएगी, क्योंकि किसानों से खरीदी के लिए जिस तरह के नियम और प्रक्रिया का हवाला दिया जा रहा है, उससे सम्पूर्ण किसानों को फायदा होना मुमकिन नहीं हैं , क्योंकि इसमें सबसे पहली बात प्रधानमंत्री फसल बीमा की तरह हर जिले में 1 या 2 फसलों की अधिसूचना जारी करेंगे। वही फसल की खरीदी होगी, मतलब फिर साफ है की 100 फसलों में 2 फसलों को ख़रीदा जायेगा।

दूसरा इसमें एक मॉडल प्राइस और समर्थन मूल्य के अंतर को दिया जायेगा। प्रदेश की मंडियों में 30 फीसदी ज्यादा किसान मॉडल प्राइस से नीचे बेचते हैं, उनको पूरा फायदा नहीं मिलेगा। हम जानते हैं कि किसान आज समर्थन मूल्य की मूल्य निर्धारण प्रणाली के खिलाफ है।

कुल मिलकर इस योजना को लेकर मेरा मानना है की यह एक अच्छी योजना है। इस तरह की योजना से किसानों को बचाया जा सकता है परन्तु नीति निर्धारक का धैर्य किसान को बचाने का होना चाहिए ना कि सरकार को बचाने का। यह योजना तब सार्थक मानी जाएगी तब की किसानों को लागत के लाभ के मूल्य और बाजार भाव के अंतर कोदिया जायेगा।

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दूसरा अनुसूचित फसल, मॉडल प्राइस जैसे नियम ख़त्म करने होंगे तभी जाकर फायदा मिलेगा, नहीं तो इस योजना से फिर वही गेहूं-धान जैसे हालत बनेंगे, क्योंकि जिस जिले अधिसूचित फसल होगी किसान उसी की खेती करेंगे। और मोनोक्रोप को बढावा मिलेगा। विविधता के लिए सभी फसलों को खरीदना होगा, वरना भावांतर योजना मीडिया में तो जगह बना लेगी परन्तु किसान को फायदा नहीं होगा। योजना का लाभ उन किसानों को मिलेगा जो 16 अक्टूबर से 15 दिसंबर तक मंडियों में अपनी फसल बेचेंगे। इसके लिए पंजीयन 11 सितंबर से 11 अक्टूबर तक होगा।

(लेखक, आम किसान यूनियन से जुड़े हैं, ये उनके निजी विचार हैं।)

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