भारत की 3 प्रतिशत आदिवासी आबादी सिकल सेल एनीमिया से है पीड़ित

सिकल सेल एनीमिया एक अनुवांशिक विकार है जिसे पूरी तरह ठीक नहीं किया जा सकता लेकिन इसका इलाज संभव है। तमिलनाडु के नीलगिरी जिले में आदिवासी समुदायों के बीच फैले इस रोग को जरूरी हस्तक्षेप, आधुनिक उपचार और थेरेपी के जरिए समय के साथ कम किया जा सकता है।
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भारत में तीन प्रतिशत आदिवासी आबादी सिकल सेल एनीमिया से पीड़ित है और अन्य 23 प्रतिशत सिकल सेल वाहक हैं और सिकल सेल जीन को अपने बच्चों तक पहुंचाते हैं। देश के वन क्षेत्रों में रहने वाले लगभग सभी आदिवासी समुदायों में सिकल सेल एनीमिया के मामले पाए गए हैं।

संयुक्त राष्ट्र सिकल सेल एनीमिया और सिकल सेल से जुड़े अन्य विकारों के बारे में जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से हर साल 19 जून को सिकल सेल दिवस के रूप में मनाता है। इन दुर्लभ बीमारियों से दुनिया भर में लोग प्रभावित हैं।

सिकल सेल एनीमिया एक आनुवांशिक विकार है जिसे पूरी तरह से ठीक नहीं किया जा सकता लेकिन इसका इलाज संभव है। हालांकि आधुनिक उपचार और जरूरी हस्तक्षेप रणनीतियां के जरिए जनसंख्या के स्तर पर इस बीमारी के बोझ को कम किया जा सकता है।

17 जून को केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री हर्षवर्धन ने एक राष्ट्रीय डिजिटल पोर्टल के बारे में ट्वीट किया था, जो उनके मंत्रालय ने सिकल सेल एनीमिया सहित अन्य दुर्लभ बीमारियों से प्रभावित बच्चों की मदद के लिए बनाया है।

सिकल सेल एनीमिया

सिकल सेल एनीमिया (जिसे सिकल सेल रोग भी कहा जाता है) विरासत में मिलने वाला एक रक्त विकार है। खून में मौजूद प्रोटीन, जिसे हीमोग्लोबिन कहते हैं, वह शरीर में ऑक्सीजन को फेफड़ों से ऊतकों तक ले जाता है। सिकल सेल बीमारी में हिमोग्लोबिन रासायनिक रूप से अलग होता है। हालांकि यह ऑक्सीजन ले जाने में सक्षम होता है, लेकिन जब हीमोग्लोबिन से ऑक्सीजन हटती है और ऊतक को मिल जाती है तो इस प्रोटीन का क्रिस्टल बनने लगता है. इससे लाल रक्त कणिका का आकार बदलने लगता है और वह सिकल यानी हंसिया या फिर आधे चंद्रमा जैसा बन जाता है.

यदि यह सिकल सेल माता या फिर पिता में से किसी एक से बच्चे को विरासत में मिला है तो इसे सेल ट्रेट या सिकल सेल कैरियर (वाहक) कहा जाता है। यदि माता-पिता, दोनों से बच्चे को सिकल सेल मिलती है तो इसे सिकल सेल रोग या सिकल सेल एनीमिया (होमेजिगससिकल सेल) कहा जाता है। सिकलहीमोग्लोबिन मिलने का कारण सिर्फ माता-पिता हैं। इसके अलावा इसका दूसरा कोई कारण नहीं है।

सिकल सेल एनीमिया से पीड़ित व्यक्ति लगभग 40 वर्ष तक ही जीवित रहता है। समय के साथ, बीमारी को कम करने के लिए जरूरी हस्तक्षेप, अत्याधुनिक इलाज और थेरेपी ने इस बीमारी के बोझ को काफी कम किया है।

सिकल सेल एनीमिया और नीलगिरी आदिवासी

तमिलनाडु में नीलगिरी के आदिवासी समुदायों में सिकल सेल एनीमिया के मामले काफी ज्यादा हैं। 1950 के दशक के अंत और 1960 के दशक की शुरुआत में, नीलगिरी के दूर-दराज इलाकों में आदिवासी बस्तियों के साथ काम करते हुए गैर-लाभकारी संस्था नीलगिरी आदिवासी कल्याण संघ (एनएडब्ल्यूए) के संस्थापक एस नरसिम्हन ने पाया कि वनवासी समुदायों में सिकल सेल बीमारी बहुत ज्यादा है। आदिवासियों के कल्याण और चिकित्सा राहत कार्य में उल्लेखनीय योगदान के लिए उन्हें पद्मश्री और डॉ बी. सी. रॉयअवॉर्ड (चिकित्सा श्रेणी में भारत के सर्वोच्च पुरस्कार) से सम्मानित किया गया था।

तभी से, एनएडब्ल्यूएसिकल सेल एनीमिया को ध्यान में रखते हुए आदिवासी समुदायों के बीच लगातार चिकित्सा अनुसंधान और जरूरी हस्तक्षेप करता आया है। वर्षों से नियमित अध्ययन, जांच और परीक्षण हो रहे हैं। वे सिकल सेल नीमिया के गंभीर मामलों की पहचान करते हैं और इलाज की जरूरी व्यवस्था करते हैं।

सिकल सेल जागरूकता अभियान

अब तक एनएडब्ल्यूए ने नीलगिरी के साथ-साथ कोयम्बटूर के कुछ हिस्सों में 26,609 व्यक्तियों की जांच की है जिनमें 5008 गैर आदिवासी लोग हैं। इन सब में से 107 लोग रोगग्रस्त पाए गएऔर 2,359 वाहक थे।

ऐसे रोगियों के मासिक इलाज पैकेज में हाइड्रोक्सीयूरिया, फोलिकएसिड और मल्टीविटामिन दिए जाते हैं। साथ ही पोषण में सुधार के लिए खाने के पैक और खनिज तत्व दिए जाते हैं। इन सेवाओं का मकसद दर्द के संकट को कम करना और जीवनकाल को बढ़ाना है।

एनएडब्ल्यूए पिछले दो साल से अनायकट्टी के आदिवासी बहुल क्षेत्रों में सिकल सेल स्क्रीनिंग और उसके इलाज की गतिविधियां चला रहा है। इस काम में जीकेडीचैरिटेबल ट्रस्ट ने अपने सीएसआरफंड के तहत एनएडब्ल्यूए की खासी मदद की है। यह चैरिटेबल ट्रस्ट कोयम्बटूर स्थित लक्ष्मी मशीन वर्क्स की एक इकाई है।

डॉक्टरों, नर्सों, लैब तकनीशियनों और सहायक कर्मचारियों की एक समर्पित टीम तमिलनाडु में सिकल सेल एनीमिया अनुसंधान और इलाज के लिए जरूरी कदम उठा रही है। केंद्र और राज्य सरकार, गैर-लाभकारी, समर्पित सामाजिक कार्यकर्ता और क्षेत्र के उदार लोगों के कारण एनएडब्ल्यूए इस क्षेत्र में पिछले 63 साल से समुदाय की जरूरतों का ध्यान रख रहा है और सिकल सेल एनीमिया के क्षेत्र में सार्थक कार्य कर पा रहा है।

आदिवासी समुदाय में सिकल सेल एनीमिया से लोग पीड़ित हैं। फोटो: यूनिसेफ इंडिया

भारत सरकार के हस्तक्षेप

1995 में, भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने कुछ आदिवासी इलाकों में पोषण संबंधी एनीमिया और हीमोग्लोबिनोपैथिज का अध्ययन करने के लिए एक राष्ट्रीय नेटवर्क का गठन किया था। एनएडब्ल्यूए भी इस काम में जुड़ गया।

1998 में सिकल सेल स्क्रीनिंग और हस्तक्षेप कार्यक्रम की शुरूआत हुई जो वर्ष 2004 तक चलता रहा। इस अवधि के दौरान नीलगिरी में आदिवासी समुदायों के लगभग 4,000 लोगों की जांच गई और उनके लिए इलाज के लिए जरूरी उपाय किए गए।

एनएडब्ल्यूए2009 से तमिलनाडु में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन से भी जुड़ा है और सरकार के सहयोग से नीलगिरी और कोम्यबटूर में जरूरी हस्तक्षेप कार्यक्रम चला रहा है। क्षेत्र के सभी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों द्वारा प्रसवपूर्व रोगियों को, चाहे वे आदिवासियों हों या गैर आदिवासी, जांच के लिए एनएडब्ल्यूएरेफर किया जाता है।

आईसीएमआर ने 2019 में एनएडब्ल्यूए को उस टास्क फोर्स का सदस्य नियुक्त किया, जो सिकल सेल रोग की समय रहते पहचान के लिए नवजात शिशु की जांच और रोग के उपचार के प्रारंभिक उपायों का मूल्यांकन करने के लिए बनाई गई थी।

एनएडब्ल्यूए के पास जांच के लिए अत्याधुनिक परीक्षण उपकरणों वाली एक प्रयोगशाला है। फिलहाल तमिलनाडु में नवजात शिशुओं में भी सिकल सेल की जांच हो रही है।

इस तरह, एनएडब्ल्यूए ने पिछले पांच दशकों से अधिक समय से इस क्षेत्र में काम करते हुए स्किल सेल रोग के प्रबंधन में गहन जानकारी जुटा ली है।

विशेष अस्पताल की जरूरत

सिकल सेल रोगियों की जांच और उपचार के लिए आधुनिक उपकरणों वाला एक विशेष अस्पताल समय की मांग है। ऐसा अस्पताल जो लोगों की पहुंच से दूर न हो, जहां जैनेटिककाउंसलिंग हो और जरूरी हस्तक्षेप के उपाय सुझाए जाएं।

अनुवांशिक रक्त विकार के लिए इस विशेष अस्पताल में प्रशिक्षित पूर्णकालिक स्टाफ, डॉक्टर और हेमेटोलॉजिस्ट को सिकल सेल की मामलों को कम करने के लिए लंबा रास्ता तय करना होगा।

सिकल सेल एनीमिया से निपटते समय नीचे दी गई बातों को ध्यान में रखा जाना चाहिए

  • सिकल सेल एनीमिया को पूरी तरह से ठीक नहीं किया जा सकता लेकिन इसका इलाज हो सकता है। नियमित जागरूकता अभियान और शिविरों के जरिए लोगों को सिकल सेल और इसके प्रभावों के बारे में जानकारी दी जा सकती है।
  • रोग के प्रसार को रोकने में मैरिजकाउंसलिंग लंबे समय तक के लिए असरदार साबित होगी।
  • नवजात बच्चे से लेकर वृद्ध तक, सभी आयु वर्ग के लोगों की जांच जरूरी है। किशोरों, प्रसव पूर्व महिलाओं और नवजात शिशुओं पर खास तौर से ध्यान देने की जरूरत है।
  • प्रसव पूर्व महिलाओं की सिकल सेल जांच करते समय, पतियों की भी जांच की जा सकती है ताकि सुनिश्चित किया जा सके कि आने वाले बच्चे को कोई खतरा ना हो। अगर गर्भ में पल रहे बच्चे में सिकल सेल रोग पाया जाता है तो ऐसे में कानूनी तौर पर गर्भपात की सलाह दी जा सकती है।
  • सिकल सेल रोगियों के पुनर्वास पर ध्यान देने की जरूरत है। उन्हें मुआवजा और रोजगार के उपयुक्त अवसर भी प्रदान किए जाएं।

(के. विजय कुमार नीलगिरी आदिवासी कल्याण संघ के शिक्षा निदेशक हैं. वह 1977 से इस गैर लाभकारी संस्था से जुड़े हुए हैं और उनकी निगरानी में स्वास्थ्य संबंधी बहुत सी पहलें चलाई गई हैं। यह उनके व्यक्तिगत विचार हैं।)

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अनुवाद- संघप्रिया मौर्य

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