स्मार्ट सिटी के लिए सिर्फ जुमलेबाज़ी

रवीश कुमाररवीश कुमार   9 Feb 2017 2:31 PM GMT

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स्मार्ट सिटी के लिए सिर्फ जुमलेबाज़ीक्या आपको इस बजट में स्मार्ट सिटी के बारे में कुछ सुनाई दिया? 2014 में मोदी सरकार के आने के बाद के हर बजट में स्मार्ट सिटी सुनाई देता था।

क्या आपको इस बजट में स्मार्ट सिटी के बारे में कुछ सुनाई दिया? 2014 में मोदी सरकार के आने के बाद के हर बजट में स्मार्ट सिटी सुनाई देता था। सरकार ने 2020 तक 100 नए पुराने शहरों को स्मार्ट सिटी बनाने और विकसित करने का लक्ष्य तय किया था। स्मार्ट सिटी के लिए कितना हंगामा हुआ, प्रचार हुआ, रोज़गार से लेकर तमाम तरह के सपने दिखाए गए प्रधानमंत्री की इस महत्वकांक्षी योजना का इस बार के बजट में कोई ज़िक्र ही नहीं है। इस साल के बजट भाषण में स्मार्ट सिटी का ज़िक्र क्यों नहीं आया?

हमने सोचा कि गूगलागमन किया जाए। खोजा जाए कि अख़बारों में स्मार्ट सिटी के बारे में क्या क्या मिलता है। 2014-15 के बजट में स्मार्ट सिटी के लिए 7060 करोड़ दिया गया था। 2015-16 के बजट में 6000 करोड़ और 2016-17 के बजट में 7,296 करोड़। 2017-18 के बजट भाषण में ज़िक्र ही नहीं है। बजट के दूसरे हिस्से में 2017-18 के लिए 4000 करोड़ का प्रावधान किया गया है। अगर 4000 करोड़ दिया है तो फिर वित्त मंत्री ने भाषण में ज़िक्र क्यों नहीं किया? क्या इसलिए कि लोगों की नज़र पड़ जाती कि प्रधानमंत्री के ख़ास प्रोजेक्ट के लिए ही बजट कम हो गया है। ज़रूर नोटबंदी के कारण सरकार के पास अतिरिक्त पैसे नहीं आए होंगे।

30 अप्रैल 2015 के बिजनेस स्टैंडर्ड ने लिखा है कि कैबिनेट ने 100 स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट को मंज़ूरी दी है। कैबिनेट ने 100 स्मार्ट सिटी के लिए 48,000 करोड़ और अन्य 500 शहरों के जीर्णोद्धार के लिए अमृत योजना के तहत 50,000 करोड़ की मंज़ूरी दी है। कैबिनेट की मंज़ूरी और बजट के प्रावधान में कुछ तो अंतर होता होगा। क्या कैबिनेट बजट प्रावधान से कई गुणा पैसे की मंज़ूरी दे सकता है? जब कैबिनेट ने 48,000 करोड़ की मंज़ूरी दे ही दी तो 2015 के बजट में स्मार्ट सिटी के लिए 6000 करोड़ का प्रावधान क्यों किया गया। अब आपको जवाब मिल जाना चाहिए।

2022 तक 100 स्मार्ट सिटी का प्रोजेक्ट पूरा कर लिया जाना है। 2014-2018 के बीच पांच साल के दौरान बजट में 24,000 करोड़ के प्रावधान का ही उल्लेख मिलता है। जब स्मार्ट सिटी की चर्चा शुरू हुई तो कहा गया कि 2022 तक एक खरब का खर्च आएगा। 1000 अरब में से अभी तक 24,000 करोड़ का ही प्रावधान हुआ है। पिछले बजट के बाद 29 फरवरी के इकोनोमिक टाइम्स ने लिखा है कि 7296 करोड़ स्मार्ट सिटी के लिए दिए गए हैं मगर इसमें से स्मार्ट सिटी का वास्तविक बजट 3,205 करोड़ ही है। 4,091 करोड़ की राशि 4,091 अटल मिशन फार रेजुवनेशन एंड अर्बन ट्रांसफार्मेसन के लिए है।

डीएनए के लिए Deloitte Touche Tohmatsu India Ltd के पार्टनर अरिंदम गुहा ने लिखा है कि चेन्नै को स्मार्ट बनाने में 1300 करोड़ और इंदौर को स्मार्ट बनाने के लिए 6000 करोड़ रुपए की ज़रूरत है। अरिंदम गुहा 2017-18 के बजट से उम्मीद कर रहे थे कि प्राइवेट निवेशक को प्रोत्साहित किया जाएगा। लेखक को पढ़ते हुए लग रहा है कि स्मार्ट सिटी को निवेशक नहीं मिल रहे हैं इसलिए वे फंड की उपलब्धता के तरह- तरह के उपाय सुझा रहे हैं कि सरकार जीवन बीमा जैसे निगमों से कहे कि स्मार्ट सिटी के लिए कर्ज़ देने की गारंटी करे।

फर्स्टपोस्ट के लिए आईपीई के ग्लोबल के मैनेजिंग डायरेक्टर ने लिखा है कि जून 2015 में भारत सरकार ने 60 शहरों को स्मार्ट सिटी के तौर पर विकसित करने के लिए 34,000 करोड़ के निवेश की बात कही थी। केंद्र और राज्यों की हिस्सेदारी के बाद भी निवेशकों को आकर्षित करना चुनौती का काम है। नगरीय निकायों की जो हालत है, उसके आधार पर तो निवेशक आने से रहे इसलिए लेखक सुझाव देते हैं कि सरकार की निवेशकों को कर्ज दिलाने की गारंटी का इतंज़ाम कर दे। कहते हैं कि निवेशकों का ध्यान तो गया है मगर निवेश करने की प्रक्रिया बहुत जटिल है इसलिए स्मार्ट सिटी के के लिए नेशनल फाइनेंसिंग फैसिलिटी होनी चाहिए। जो फंड जुटाए उधार लेकर, और फिर स्मार्ट सिटी को दे। इसके लिए गारंटी सरकार दे।

इन सुझावों से लगता है कि स्मार्ट सिटी को लेकर जुमलेबाज़ी ही चल रही है। इसी गणतंत्र दिवस के मौके पर कर्नाटक के राज्यपाल के भाषण का समाचार छपा है जिसमें वे राज्य के छह शहरों को स्मार्ट बनाने के लिए 1,118 करोड़ की बात करते हैं। अब आप थोड़ा तो दिमाग़ लगाइये। एक शहर को 186 करोड़ से आप स्मार्ट बना लेंगे। डिवाइडर पर तरह तरह की आकृतियां बना देने से और चौराहे पर एल ई डी स्क्रीन लगा देने से कोई शहर स्मार्ट नहीं बन जाता है।

जून 2016 में पुणे के पांच हज़ार की क्षमता वाले छत्रपति स्पोर्ट्स स्टेयिम से प्रधानमंत्री ने 20 स्मार्ट सिटी के कई प्रोजेक्ट लांच किये थे। अखबारों ने लिखा है कि 20 स्मार्ट सिटी को विकसित करने में 48,000 करोड़ की लागत आएगी। मगर इस राशि का प्रावधान बजट में कहां दिख रहा है। सरकार ने कैशलेस की तरह स्मार्ट सिटी मामले में भी नागरिकों को आकर्षित करने के लिए इनामी प्रतियोगिता का आयोजन किया था। इसके लिए विजेता को दस हज़ार और एक लाख के इनाम दिये गए थे। कई शहरों में लोग आंदोलन की तरह शामिल हो गए।

2007 के साल में गुजरात में गिफ्ट नाम से स्मार्ट सिटी लांच हुई थी। 2007 से 2017 आ गया मगर गिफ्ट पूरी तरह तैयार नहीं हुआ है। इसे अंतर्राष्ट्रीय फाइनांस सेंटर के तौर पर विकसित होना था, अनुमान किया जा रहा था कि यहां से साल में दो लाख करोड़ का कारोबार होगा। फिर भी गिफ्ट काफी कुछ बन गया है और 2019 तक पूरा हो जाने की बात लाइव मिंट से लेकर तमाम बिजनेस अखबारों की रिपोर्ट में मिलती है। गिफ्ट में पचास फीसदी गुजरात अर्बन डेवलपमेंट कंपनी और पचास फीसदी एक प्राइवेट कंपनी इंफ्रास्ट्रक्चर लीज़िंग एंड फाइनेनशियस सर्विसेज़ लिमिटेड भागीदार है. लाइव मिंट की एक रिपोर्ट कहती है कि 2007 में 886 एकड़ ज़मीन में गिफ्ट सिटी की बुनियाद पड़ी थी ।

78,000 करोड़ की योजना है। अकेले गिफ्ट की लागत 78,000 करोड़ है तो क्या आपको लगता है कि गिफ्ट की तरह कोई और शहर स्मार्ट सिटी बन पाएगा। ध्या रहे अभी तक सरकार ने 100 स्मार्ट सिटी के लिए 20,000 करोड़ भी नहीं दिया है। 78,000 करोड़ के निवेश के बदले मिलेगा क्या, इस सवाल को अभी छोड़ देते हैं।

लाइव मिंट ने लिखा है कि गिफ्ट स्मार्ट सिटी दावा करती है कि दस साल में दस लाख नई नौकरियों का सृजन करेगी। मेरे पास ऐसे फालतू और बकवास दावों के लिए टाइम नहीं है। केरल के कोची में भी अक्तूबर 2010 से स्मार्ट सिटी बन रही है। यह स्मार्ट सिटी भी 90,000 नई नौकरियां सृजित करने का दावा कर रही है। जो कि पूरी तरह झूठ है। कुलमिलाकर यह प्रोजेक्ट स्मार्ट सिटी के नाम ज़मीन हथियाने का ही मामला लगता है। पिछले साल 8 सितंबर की एक रिपोर्ट है। जिसके मुताबिक 2020 तक कोचि का यह स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट पूरा हो जाएगा। इसका पहला चरण पूरा हो गया है. 5,500 लोगों को काम मिलने की बात है। आप जाकर देखिये, किसी को जानते हों तो पता कीजिए क्या वहां इतने लोगों को नौकरियां मिली हैं।

ऐसा तो हो नहीं सकता कि सरकार विभिन्न मदों के ज़रिये इन 100 स्मार्ट सिटी के लिए कोई पैसा नहीं दे रही होगी या कोई काम नहीं चल रहा होगा। पहले भी केंद्र से कुछ न कुछ पैसा शहरों को सुधार के नाम पर मिल ही रहा था। कुल मिलाकर पुराने आधार पर बहुत बेहतर प्रगति तो नहीं दिखती है। नए सपनों की बुनियाद तो है मगर इमारत बनने के आसार नज़र नहीं आ रहे हैं। अगर यह इतना बड़ा सपना था तो क्या इसे बजट में नज़रअंदाज़ किया जा सकता था।

(लेखक एनडीटीवी में सीनियर एग्जीक्यूटिव एडिटर हैं। ये उनके निज़ी विचार हैं।)

    

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