हाइड्रो और सौर क्षेत्रों को मिलाकर क्या नेपाल भविष्य में अपनी बिजली की जरूरतों को पूरा कर पाएगा

हिमालय की गोद में बसा ये देश अपने यहां बहने वाली 6000 से ज्यादा नदियों के लिए जाना जाता है और इसकी 96 फीसदी बिजली की जरूरतें पनबिजली से ही पूरी होती हैं। लेकिन जलवायु परिवर्तन के चलते तापमान बढ़ रहा है और ग्लेशियर पिघल रहे हैं। बारिश का पैटर्न भी अनियमित हो चला है। ऐसे में सौर ऊर्जा उत्पादन को बढ़ावा देने वाले एनर्जी मिक्स को अपनाना महत्वपूर्ण हो जाता है। इसे नेपाल की पनबिजली परियोजनाओं के साथ हासिल किया जा सकता है।

Nidhi JamwalNidhi Jamwal   12 April 2023 7:30 AM GMT

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
हाइड्रो और सौर क्षेत्रों को मिलाकर क्या नेपाल भविष्य में अपनी बिजली की जरूरतों को पूरा कर पाएगा

सात अलग-अलग जगहों पर स्थापित सौर पैनलों के साथ एक पहाड़ी क्षेत्र में एक सौर फार्म होना वाकई तारीफ के काबिल है।

नुवाकोट, नेपाल। बड़े लोहे के तख्ते पर लगे कांच से ढके सैकड़ों पैनल बड़े करीने से ढलान वाले इलाके के खुले पैच पर सूरज की रोशनी में चमकते नजर आ रहे हैं। उनके चारों ओर पेड़ों से ढकी पहाड़ियां हैं। त्रिशूली नदी यहां से बमुश्किल दो मीटर की दूरी पर है। नेपाल की राजधानी काठमांडू से 70 किलोमीटर से ज्यादा दूर बसा नुवाकोट नेपाल का सबसे बड़ा और एकमात्र सरकारी स्वामित्व वाला सौर ऊर्जा संयंत्र है, जिसकी खूबसूरती देखते ही बनती है।

सात अलग-अलग जगहों (एक जगह पर पर्याप्त जमीन न होने के कारण) पर स्थापित सौर पैनलों के साथ एक पहाड़ी क्षेत्र में एक सौर फार्म होना वाकई तारीफ के काबिल है।

25 मेगावाट पीक (MWp) सौर परियोजना ने इस साल 15 जनवरी से अपना परिचालन शुरू किया और तब से ये नेपाल में घरों को रोशन कर रही है। 500 रोपियन (25 हेक्टेयर) जमीन पर फैली ये परियोजना धूप के दिनों में रोजाना 100,000 यूनिट बिजली का उत्पादन कर सकती है। यहां उत्पन्न हुई बिजली को सबसे पहले दूर स्थित देवीघाट हाइड्रोपावर स्टेशन को भेजा जाता है, जहां से इसे राष्ट्रीय ग्रिड में डाला जाता है और फिर काठमांडू के घरों में इसकी सप्लाई की जाती है।

जलवायु परिवर्तन की वजह से नेपाल अनियमित बारिश का सामना कर रहा है। यह साफ तौर पर हाइड्रोपावर उत्पादन सहित जल संसाधनों के लिए भी एक सीधा खतरा है।

मौजूदा समय में नेपाल अपनी ज्यादातर बिजली जरूरतों को पूरा करने के लिए पनबिजली पर काफी हद तक निर्भर है। ऐसे में नुवाकोट सौर फार्म न सिर्फ 'ग्रीन' पावर का इस्तेमाल करने के लिए बल्कि एनर्जी मिक्स के नजरिए से भी महत्वपूर्ण हो जाता है।

नेपाल इकोनॉमिक फोरम के मुताबिक, देश की स्थापित क्षमता में 96.2 फीसदी हिस्सेदारी पनबिजली की, 3.7 फीसदी थर्मल की और 0.1 फीसदी सौर संयंत्रों की है। नेपाल की कुल बिजली उत्पादन क्षमता 2,577.48 मेगावाट तक पहुंच गई है। इसमें से 2,492.95 मेगावाट राष्ट्रीय ग्रिड से जुड़ा है, जबकि बाकी के 84.53 मेगावाट की सप्लाई ऑफ-ग्रिड है।

नुवाकोट सौर परियोजना देश की कुल ऊर्जा में सौर ऊर्जा की हिस्सेदारी बढ़ाने की नेपाल सरकार की प्रतिबद्धता का हिस्सा है। जलवायु परिवर्तन की वजह से नेपाल अनियमित बारिश का सामना कर रहा है। यह साफ तौर पर हाइड्रोपावर उत्पादन सहित जल संसाधनों के लिए भी एक सीधा खतरा है। इसे ध्यान में रखते हुए एनर्जी मिक्स खासा महत्वपूर्ण हो जाता है।

उदाहरण के लिए, इस साल की सर्दी नेपाल की सबसे शुष्क सर्दियों में से एक रही है। औसतन, दिसंबर और फरवरी के बीच देश में लगभग 60 मिलीमीटर (मिमी) बारिश हो जाती थी, जो खेती और बिजली उत्पादन दोनों के लिए महत्वपूर्ण है। लेकिन इस बार सर्दी के मौसम (11फरवरी तक) में हिमालयी देश में सिर्फ 7.9 मिमी बारिश दर्ज की गई है।

जमीन की जरूरतों को पूरा करते हुए अक्सर स्थानीय समुदायों के साथ संघर्ष की स्थिति पैदा हो जाती है, क्योंकि ये लोग अपनी आजीविका के लिए भूमि और खेती पर निर्भर हैं।

यह विडंबना है कि मानसून के दौरान देश इलेक्ट्रिसिटी-सरप्लस की स्थिति में होता है क्योंकि इसकी नदियां पूरे उफान पर होती हैं और जल विद्युत उत्पादन अपने चरम पर होता है। लेकिन सर्दियों में नजारा उलट जाता है। नेपाल को भारी बिजली की कमी का सामना करना पड़ता है और अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए उसे भारत का मुंह ताकना पड़ता है। वह महंगी बिजली खरीदने के लिए मजबूर हो जाता है।

नुवाकोट में त्रिशूली हाइड्रोपावर स्टेशन के प्लांट मैनेजर ने बिजली की लागत में अंतर को विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि स्थानीय रूप से उत्पादित बिजली की कीमत 1.6 रुपये प्रति यूनिट है, जबकि भारत से आयातित बिजली की कीमत 16 रुपये प्रति यूनिट तक पड़ जाती है।

संयोग से साल 2021 के बाद से, नेपाल भारत को मानसून के मौसम के दौरान अपनी सरप्लस पनबिजली को बेच रहा है। लेकिन शुष्क मौसम में उसे बिजली की कमी का सामना करना पड़ता है। चीजें तब और ज्यादा बिगड़ जाती हैं जब सर्दियों की बारिश देश को इस साल की तरह धोखा दे देती है।

साफ तौर पर कहें, तो हिमालय की गोद में बसे इस देश को एक एनर्जी मिक्स बनाने की जरूरत है ताकि हाइड्रो पावर पर इसकी अत्यधिक निर्भरता कम हो जाए। और यहीं पर नुवाकोट सोलर फार्म जैसी सौर ऊर्जा परियोजनाओं की भूमिका अहम हो जाती है। इस साल फरवरी में नेपाल विद्युत प्राधिकरण ने देश में 100 मेगावाट सौर परियोजनाओं को विकसित करने के लिए बोली आमंत्रित की थी।

मौजूदा समय में, नेपाल के पास कुल 58.14 मेगावाट ग्रिड से जुड़ी सौर ऊर्जा क्षमता है। इसमें से 25 मेगावाट नेपाल इलेक्ट्रिसिटी के स्वामित्व वाला नुवाकोट फार्म के पास है और बाकी 33.14 मेगावाट स्वतंत्र बिजली उत्पादकों के पास। सरकार 133.56 मेगावाट की सौर परियोजनाओं के लिए निर्माण लाइसेंस पहले ही दे चुकी है। वहीं 1,244.99 मेगावाट की सौर परियोजनाओं के लिए सर्वेक्षण लाइसेंस फिलहाल जारी किया गया है।

इस साल फरवरी में नेपाल विद्युत प्राधिकरण ने देश में 100 मेगावाट सौर परियोजनाओं को विकसित करने के लिए बोली आमंत्रित की थी।

नेपाल का लक्ष्य 2030 तक 15,000 मेगावाट बिजली का उत्पादन करना है, जिसमें से 15 प्रतिशत (2,250 मेगावाट) सौर और पवन ऊर्जा परियोजनाओं सहित नवीकरणीय ऊर्जा के माध्यम से पूरा किया जाना निर्धारित है। इस समय सौर स्थापित क्षमता सिर्फ 58.14 मेगावाट है और आज तक देश में व्यावसायिक पैमाने पर कोई पवन ऊर्जा संयंत्र विकसित नहीं किए गए हैं।

यह अनुमान लगाया गया है कि नेपाल में प्रति वर्ष 50,000 टेरावाट-घंटे (1 टेरावाट = 1,000,000 मेगावाट) की सौर क्षमता है, जो कि इसके जल संसाधन से 100 गुना अधिक है और इसकी वर्तमान बिजली खपत से 7,000 गुना अधिक है। लेकिन दूसरी तकनीक की तरफ जाने, काम में प्रशिक्षित लोगों की कमी, बिजली शुल्क आदि की चुनौतियां भी मुंह बाएं खड़ी हैं।

इसके अलावा सौर परियोजनाओं के लिए काफी ज्यादा जगह की जरूरत होती है। जमीन की जरूरतों को पूरा करते हुए अक्सर स्थानीय समुदायों के साथ संघर्ष की स्थिति पैदा हो जाती है, क्योंकि ये लोग अपनी आजीविका के लिए भूमि और खेती पर निर्भर हैं।

नुवाकोट सौर परियोजना का निर्माण उस जमीन पर किया गया है जिसे सरकार ने देवीघाट हाइड्रोपावर स्टेशन के लिए पहले ही अधिग्रहित कर लिया था। फिर भी अक्सर इस बात को लेकर चिंता की जाती है कि नुवाकोट में उत्पन्न सौर ऊर्जा को काठमांडू के शहरी निवासियों को भेज दिया जाता है।

इस संदर्भ में IUCN का हालिया अध्ययन ‘सस्टेनेबल एनर्जी ट्रांजिशन इन दि गंगा रिवर बेसिन: बेसलाइन एंड सिनारियो’ महत्वपूर्ण है। यह गंगा बेसिन में नवीकरणीय ऊर्जा की ओर बदलाव की मौजूदा स्थिति के बारे में बताता है। नेपाल, बांग्लादेश और भारत जैसे देश अपनी राष्ट्रीय ऊर्जा प्रणालियों का निर्माण किस तरह से कर रहे हैं, इसकी गहन रूपरेखा प्रदान करता है। इसके साथ ही बिजली और नदी संरक्षण पर क्षेत्रीय समन्वय से संबंधित मौजूदा नीति और बाजार के रुझान, अंतराल और चुनौतियों की पड़ताल करता है।


अध्ययन की मसौदा रिपोर्ट पर आईयूसीएन और द एशिया फाउंडेशन ने इस साल फरवरी में काठमांडू में आयोजित एक बैठक के दौरान चर्चा की गई थी। इसमें मौजूदा पनबिजली बेसलोड और उच्च सौर ऊर्जा क्षमता वाले नेपाल के लिए एक आकर्षक विकल्प के तौर पर फ्लोटिंग सौर फोटोवोल्टिक सिस्टम का उल्लेख किया गया था।

फ्लोटिंग सोलर इंस्टॉलेशन पानी की सतह पर तैरते हैं। इन्हें कुछ इस तरह से डिजाइन किया गया है कि मौसम की वजह से जलाशय के बढ़ते या गिरते स्तर के आधार पर कहीं और स्थानांतरित किया जा सकता है। यह अनुमान लगाया गया है कि फ्लोटिंग हाइड्रो का एक MWp , हर साल 8,000 मीटर घन के पानी के वाष्पीकरण के नुकसान को रोक सकता है।

IUCN मसौदा रिपोर्ट में कहा गया कि मौजूदा समय में चालू और पहले से ही निर्माणाधीन बांधों की संख्या को देखते हुए - जिनमें से कुछ के पास महत्वपूर्ण जलाशय भूमि क्षेत्र है - नेपाल में फ्लोटिंग सोलर के लिए काफी संभावनाएं हैं।

2020 में नेपाल विद्युत प्राधिकरण ने शुरुआती विश्लेषण करने के लिए एक सहायक कंपनी को काम पर रखा और इंद्रशरोवर बांध में संभावित 10 मेगावाट की पायलट परियोजना के लिए साइट की पहचान की। अब यह देखा जाना बाकी है कि क्या नेपाल अपने विशाल हाइड्रो सेक्टर को सनशाइन सेक्टर के साथ सफलतापूर्वक मिला पाता है।

#nepal #hydro power solar energy #story 

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.