सर्जिकल स्ट्राइक का लक्ष्य चन्द आतंकवादी मारना भर नहीं

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सर्जिकल स्ट्राइक का लक्ष्य चन्द आतंकवादी मारना भर नहींसर्जिकल स्ट्राइक का लक्ष्य चन्द आतंकवादी मारना भर नहीं

पराधीन कश्मीर में घुसकर पाकिस्तानी आतंकवादियों के कैम्प ध्वस्त करने और उसका एलान करने के बाद से देश भर में बहस मुबाहिसा आरम्भ हो गया। विपक्षी दलों का कहना है कि सर्जिकल स्ट्राइक एलान करके भाजपा चुनावी लाभ लेना चाहती है लेकिन एलान के फायदे कम नहीं हैं, आतंकवादियों के हौसले कम होते हैं, दुश्मन देश सोच-समझ कर हमले करेगा और अपनी सेना और जनता का मनोबल बढ़ता है। कुछ आतंकवादियों का मारा जाना और अपने सैनिकों का सकुशल वापस आना भी उपलब्धि है। पिछले 70 साल में हमारी सेना में यही पराक्रम था लेकिन सरकारों में खतरा लेने की हिम्मत नहीं थी। अब दुनिया में भारत के पराक्रम और सरकार की हिम्मत पर सन्देह नहीं रहा।

उधर पाकिस्तान में हाफिज़ सईद की चिन्ताएं अलग हैं। उसका कहना है हम बताएंगे सर्जिकल स्ट्राइक कैसे होती है। वह तो 70 साल से बता रहा है। मुम्बई का ताजमहल होटल, अक्षरधाम पर हमला, संसद पर हमला और पठानकोट और उड़ी पर घात लगाकर हमला यह सब लक्षित आक्रमण ही तो थे। तो फिर भारत द्वारा पराधीन कश्मीर में किया गया सर्जिकल स्ट्राइक इन सब से भिन्न कैसे है? इस मायने में भिन्न है कि सेना को उसका श्रेय दिया गया और मोदी की इच्छा शक्ति सामने आई। दुनिया ने भारत की सराहना की और शक्ति को समझा।

सच बात यह है कि हमारी सेना ने हमेशा ही शत्रु की जमीन को जीता है चाहे 1948 हो या 1965 अथवा 1971 हर बार की लड़ाई में युद्ध के बाद समझौते हुए और जीती हुई जमीन वापस कर दी। यही कारण है कि अटल बिहारी बाजपेयी ने कहा था हम युद्ध के मैदान में कभी नहीं हारे, हम हारे हैं दिल्ली के दरबार में।

हमारी सेनाएं दुनिया में राष्ट्रसंघ द्वारा भेजे जाने पर जगह-जगह जाकर शान्ति स्थापित करती रही हैं। उनका पराक्रम अद्वितीय रहा है, लेकिन उनके पराक्रम को उजागर नहीं किया गया। इतना ही नहीं सेना के अधिकारियों को सुपरसीड करने की परम्परा शायद इन्दिरा गांधी के पहले नहीं थी। नेवी में शेखर सिन्हा और पीएस भगत, थल सेना में एसके सिन्हा और वायु सेना में एयर मार्शल शिवदेव सिंह के अलावा भी सुपरसीड होने की अनेक घटनाएं हुई हैं। एसके सिन्हा तो समयपूर्व सेवानिवृत्त हो गए थे। उनके साथ हुई ये घटनाएं सेना का मनोबल बढ़ाने वाली तो नहीं रही होंगी।

अपने देश के हित में अमेरिका हमेशा शत्रु देश में घुसकर मारता है शायद इसीलिए अमेरिका भारत द्वारा रक्षात्मक सर्जिकल स्ट्राइक पर मौन ही रहा और रूस और फ्रांस व अन्य देशों की तरह दो टूक बात नहीं की। जब अमेरिका ने पाकिस्तान में घुसकर ओसामा बिन लादेन को मारा तो सारी दुनिया ने प्रशंसा के पुल बांध दिए थे। दूसरे बलशाली देश भी यही करते हैं तभी तो कहा गया है समरस्तहिं नहिं दोष गोसाई।

कूटनीति के लिहाज़ से मोदी, आजाद भारत के सफलतम प्रधानमंत्री हैं। मैं नहीं कहता कि दो साल में ही भारत समृद्ध और बलशाली हो गया है लेकिन आज भारत को सुरक्षा परिषद में सदस्यता देने को दुनिया तैयार है। विदेशों में भारतीयों का सम्मान है और भारत की आवाज सुनी जाती है। देश के अन्दर भी आम आदमी मोदी में खोट नहीं बताता, नेताओं की बात अलग है।

जहां तक भारतीय सेना द्वारा किए गए यशस्वी काम के यश का सवाल है तो 1965 और 1971 में कांग्रेस ने यश पाया था और 1971 में वोट भी। अब यदि मोदी सरकार को यश मिलता है तो आपत्ति नहीं होनी चाहिए। कई आलोचक कहते हैं सेना का वेतन, पेंशन और सुविधाएं बढ़नी चाहिए थी जो नहीं बढ़ीं लेकिन इनके लिए सेना के सेवानिवृत्त सिपाही और अधिकारी लड़ते रहे हैं और इन्हे नामंजूर करने की जिम्मेदारी मोदी की नहीं है। मोदी की अनावश्यक आलोचना से कुछ हासिल नहीं होगा।

  

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