पहला राउन्ड शिवपाल का, दूसरा अखिलेश के नाम, अगला? 

Dr SB MisraDr SB Misra   23 Oct 2016 5:46 PM GMT

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पहला राउन्ड शिवपाल का, दूसरा अखिलेश के नाम, अगला? शिवपाल सिंह यादव और अखिलेश यादव।

यदुवंशियों ने जब ताल ठोंकी तो अधिकतर लोगों ने सोचा यह नूरा कुश्ती होने जा रही है। लेकिन जब तीर चलने लगे और महारथी घायल होने लगे तो सब को यकीन होने लगा यह संघर्ष नहीं रण है। शिवपाल यादव विरथ हुए और उनके साथी भी पैदल हो गए तो लगा नेता जी का हस्तक्षेप ही आखिरी विकल्प है, उनका हस्तक्षेप सब ठीक कर देगा। शिवपाल यादव को रथ और सारथी वापस हुए साथ ही मिली प्रदेश पार्टी की कमान, अधिकांश साथी पैदल से रथ पर आ गए और अखिलेश यादव से पार्टी अध्यक्ष का पद छिन गया। शिवपाल यादव के चेहरे पर मुस्कान थी और अखिलेश यादव के सीने में ज्वालामुखी। शिवपाल यादव पहला राउन्ड जीत चुके थे।

नेता जी पूरी तरह निष्पक्ष नहीं दिखे जब उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री का फैसला करेंगे चुने हुए विधायक। जब अखिलेश ने चारों तरफ अपनों को देखा तो शायद महाभारत के यदुवंशी अर्जुन की तरह हथियार डाल सकते थे, लेकिन कृष्ण की भूमिका में आ गए रामगोपाल यादव। उनका कहना है विजय वहीं होगी, जहां अखिलेश हैं यानी अखिलेश यादव अर्जुन की भूमिका में भी हैं और कृष्ण की भी। अखिलेश ने शिवपाल यादव को फिर विरथ कर दिया है और उनके अनेक साथी भी मिनिस्टर से जमीन पर आ गए। इस बार अखिलेश यादव समझौते के मूड में नहीं हैं। अखिलेश यादव ने दूसरा राउन्ड जीत लिया है, लेकिन आगे क्या होगा ?

रोचक रहा है कि नेता जी के बहुत पुराने साथी आज़म खां अखिलेश के खेमें में दिखाई पड़े क्योंकि अमर सिंह के प्रति अखिलेश का आक्रामक रवैया आजम खां को पसन्द आएगा। कामन सेंस कहती है कि प्रदेश अध्यक्ष होने के नाते शिवपाल किसी को भी पार्टी से निकाल सकते हैं और वह अखिलेश और आजम के बजाय प्रोफेसर रामगोपाल यादव को निकालेंगे। यदि अखिलेश ने विरोध किया तो उन्हें भी पार्टी से बाहर करेंगे और रामगोपाल यादव की अध्यक्षता में नई पार्टी बनेगी जो चुनाव लड़ेगी और जीतेगी। इतिहास में अखिलेश यादव के सामने इंदिरा गांधी का उदाहरण है जब पुराने बुजुर्ग कांग्रेसी उन्हें अपदस्थ करना चाहते थे और उन्होंने चुनौती स्वीकार करते हुए विजय हासिल की थी। यदि अखिलेश यादव इतना साहस न जुटा पाए तो चुनावी विजय में आशंका रहेगी।

उधर मुलायम सिंह भाजपा से दूरियां घटाते नज़र आ रहे हैं। अमर सिंह और अरुन जेटली की पुरानी मित्रता है और शिवपाल यादव का झुकाव जय गुरुदेव की तरफ़ है और अंसारी की पार्टी से उम्मीदें रहेंगी। लेकिन यह कुछ काम नहीं आएगा और यदि भाजपा ने मुलायम सिंह से कोई समझौता किया तो उसके लिए भी यह घाटे का सौदा होगा जैसे मायावती से गठबंधन करके हुआ था।

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