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पारदर्शिता की शुरुआत : अदालत की कार्यवाही को कैमरा पर लाइव दिखाइए

Supreme Court Judges

माननीय उच्चतम न्यायालय के चार वरिष्ठ जजों ने अपनी ही संस्था पर गम्भीर आरोप लगाए हैं कि यदि इसका काम काज ऐसे ही चलता रहा तो लोकतंत्र खतरे में पड़ जाएगा। इससे उच्चतम न्यायालय की विश्वसनीयता तार तार हो गई है। यह महत्वपूर्ण नहीं है कि कब और कैसे हालात खराब हुए और इन जजों ने एक पत्र लिखने, पत्रकार वार्ता करने और कम्युनिस्ट नेता डी राजा से बात करने के अलावा और क्या उपाय किए हालात सुधारने के। जो भी हो हालात सुधारने का फैसला जनता पर छोड़ना अजीब लगता है क्योंकि जज तो स्वयं ही जनता का निर्णय करते हैं ।

न्यायालय की दीवारों के अन्दर पिछले 70 साल से क्या हो रहा था इसका कुछ अता पता आम आदमी को इसलिए नहीं लगा कि गोपनीयता भंग हो जाएगी। विधायिका में कुछ पारदर्शिता आई है और उसकी कार्यवाही टीवी पर दिखाई जाती है और पत्राजात उपलब्ध रहते हैं। कार्य पालिका में भी पारदर्शिता है सूचना के अधिकार के माध्यम से। पत्रकारिता की तो खुली दुनिया है। अब खो चुकी इज्जत बचाने का न्यायपालिका के पास अवसर है कार्यवाही सार्वजनिक और पारदर्शी बनाकर, मीडिया को देखने और दिखाने का अवसर देकर।

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वरिष्ठ जजों की एक शिकायत है कि कुछ महत्वपूर्ण वाद उन्हें न देकर कनिष्ठ जजों की बेंच को दिए गए। क्या वे कनिष्ठ जज सक्षम नहीं थे अथवा वरिष्ठजों की उन मसलों में विशेष रुचि थी। यदि फैसले गलत हुए तो भी पारदर्शिता ही समाधान है इसका क्योंकि आवश्यक नहीं कि सभी निर्णय वरिष्ठ जजों के मन के हों अन्यथा सब निर्णय एकमत होते। वरिष्ठ जजों ने जनता की अदालत पर वाद का निर्णय छोड़ा है तो क्या जजों की नियुक्ति के मसले पर मतभेंद होगा तो जनता ही नियुक्ति पर अन्तिम मुहर लगाएगी?

न्याय प्रक्रिया की पारदर्शिता इसलिए भी जरूरी है कि जजों द्वारा पेशी दर पेशी गरीबों को दौड़ाया जाता है, वकीलों की जगह यदि वादी और प्रतिवादी वकीलों की हड़ताल होने पर अपनी पैरवी खुद करना चाहें तो कर सकें और वकीलों पर से फरियादी की निर्भरता घटे या समाप्त हो सके। आज जो जज न्यायपालिका की कार्यवाही पर उंगली उठा रहे हैं कल कार्यशैली जनता देखेगी और असलियत समझेगी। है हिम्मत सरकार, जजों, वकीलों और जनता में कि वे पूरी प्रक्रिया पारदर्शी बना सकें और गुलामी के जमाने की मरम्परा समाप्त कर सकें ?

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