ओडिशा के जाजपुर जिले के जाजपुर शहर से सुकिंडा की ओर बढ़ने पर चारों ओर बंजर खेतों और सूखे जैसी स्थिति को देखा जा सकता है। पेड़ों की पत्तियों पर धूल जम गए हैं और वे मर रहे हैं। इस रास्ते से लगातार ट्रक गुजरते हैं, जिसके धुएं की वजह से भी वातावरण प्रदूषित हो रहा है। कामकाजी और मजदूर वर्ग के लोग इस रास्ते से काम पर जाते और फिर अपने घर लौटते हैं। इस प्रदूषण का उनके स्वास्थ्य पर बहुत बुरा असर पड़ रहा है।
टाटा स्टील के स्वामित्व वाली क्रोमाइट खानों के बाहर एक बोर्ड लगा हुआ है, जिसमें रियल टाइम पर वायु की गुणवत्ता की निगरानी करते हुए इसे प्रदर्शित किया जाता है। धुंध की वजह से बोर्ड में प्रदर्शित इन आंकड़ों को पढ़ना मुश्किल है, लेकिन इस साल मई में प्रकाशित एक शोध अध्ययन में सुकिंडा की हवा में कुल क्रोमियम 10-400 पार्ट्स प्रति मिलियन (PPM) पाया गया। यह 0.1 PPM की निर्धारित सीमा से ज्यादा है।
यहां पहुंचने पर स्वागत द्वार पर लिखा हुआ है – “स्वच्छ सुकिंडा में आपका स्वागत है।” साल 2007 में, यूएस-आधारित ब्लैकस्मिथ इंस्टीट्यूट की एक रिपोर्ट ने सुकिंडा को यूक्रेन में चेरनोबिल के साथ पूरी दुनिया में सबसे प्रदूषित स्थानों में से एक बताया था। ओडिशा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने इस रिपोर्ट को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि यहां का पूरा प्रबंधन संतोषजनक है और स्थिति उतनी भी खराब नहीं है जितनी कि रिपोर्ट में बताई गई है।
ओडिशा में क्रोमाइट खनन
भारत में कुल क्रोमाइट रिजर्व में से 98.6 प्रतिशत ओडिशा के सुकिंडा इलाके में पाया जाता है। इस क्षेत्र में वर्तमान में लगभग 12 से 14 खदानें चल रही हैं जिनमें सरकारी स्वामित्व वाली ओडिशा माइनिंग कॉरपोरेशन (OMC), टाटा के स्वामित्व वाली सुकिंडा क्रोमाइट माइंस, IMFA (इंडियन मेटल एंड फेरो अलॉयज लिमिटेड) आदि शामिल हैं।
ये खदानें क्रोमाइट अयस्क का निष्कर्षण ओपनकास्ट खनन विधियों के ज़रिए करती हैं जिसकी वजह से भारी मात्रा में पानी का रिसाव होता है। यह पानी खदान की जमीन में रिसता है और क्रोमियम को घोलकर हेक्सावलेंट क्रोमियम का उत्पादन करता है, जिससे भूजल प्रदूषित होता है।
धातुओं का यह रिसाव और अयस्क की धुलाई के बाद खदानों से निकलने वाला अपशिष्ट घाटी से जल निकासी का एक मुख्य चैनल दमसाला नाला में जाकर मिल जाता है। इस नाले के पानी का उपयोग 75 गांवों में लगभग 26 लाख लोग सतही जल स्रोत के रूप में करते हैं।
घाटी में मुख्य रूप से सबर, मुंडा, संथाल और जुआंगा जैसी स्थानीय जनजातियां निवास करती हैं। यहां के लोग पीने के साथ ही कृषि कार्य के लिए भी इस नाले के पानी पर निर्भर हैं। क्रोमियम हेक्सावलेंट न केवल शरीर द्वारा आसानी से अवशोषित हो जाता है, बल्कि इसे कार्सिनोजेनिक (कैंसरजनक) और टेराटोजेनिक (भ्रूण के असामान्य विकास की संभावना पैदा करने वाला) के तौर पर भी पहचाना जाता है।
पानी में जहर और बीमारी
सुकिंडा क्षेत्र में सतही जल और भूजल में अधिकतम हेक्सावैलेंट क्रोमियम स्तर 2.5 PPM है, जो कि 0.05 PPM की निर्धारित सीमा से 50 गुना ज्यादा है। आईसीएआर-भारतीय जल प्रबंधन संस्थान की 2018 की वार्षिक रिपोर्ट से पता चलता है कि सुकिंडा में 70 प्रतिशत पानी और 28 प्रतिशत मिट्टी बहुत ज्यादा ज़हरीलेपन की वजह से कृषि कार्यों के लिए अनुपयुक्त है।
रोजाना हेक्सावलेंट क्रोमियम से प्रदूषित पानी पीने से गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ब्लीडिंग (यह पाचनतंत्र से जुड़ी एक गंभीर बीमारी है, जिसमें ब्लीडिंग होती है), अल्सर, एलर्जी, ब्रेन डैमेज, समय से पहले मौत और लीवर/गुर्दे से संबंधित बीमारियां होती हैं।
ओडिशा स्वैच्छिक स्वास्थ्य संघ द्वारा 1994-1997 के बीच किए गए एक सर्वेक्षण में बताया गया था कि खनन क्षेत्रों में सालाना 84.75 फीसदी मौतें और आसपास के गांवों में 86.42 फीसदी मौतें क्रोमाइट खान से संबंधित बीमारियों के कारण होती हैं। इस सर्वेक्षण के मुताबिक खनन स्थलों से एक किलोमीटर के दायरे में बसे गांव सबसे ज्यादा प्रभावित हुए थे, जिनमें से लगभग 25 प्रतिशत लोग प्रदूषण की वजह से होने वाली बीमारियों से पीड़ित थे।
हाल के कई शोध अध्ययन इस बात की पुष्टि करते हैं कि भारत की सामान्य आबादी की तुलना में खनन इलाकों में रहने वाले लोग ज्यादा बीमार होते हैं। सुकिंडा के स्थानीय लोगों में पोषण स्तर में कमी के कारण भी यहां बीमार लोगों की संख्या बढ़ गई है। साल 2017 में नगाड़ा गांव में रहने वाले जुआंगा जनजाति के बीच कुपोषण से कई लोगों की मौत हो गई थी।
समृद्ध भूमि लेकिन गरीब हैं लोग
आजादी के बाद से ओडिशा में खनिजों का सालाना उत्पादन साठ गुना से ज्यादा बढ़ गया है, फिर भी राज्य में 46 प्रतिशत परिवार गरीबी रेखा से नीचे रहते हैं और एक वर्ष में 15,100 रुपये से भी कम कमाते हैं। राज्य के 73 प्रतिशत आदिवासी और 53 प्रतिशत दलित गरीबी रेखा से नीचे हैं।
राष्ट्रीय खनिज नीति 2019 खनिजों को एक राज्य के नागरिकों की साझा विरासत के रूप में परिभाषित करती है और कहती है कि सरकार लोगों की ओर से केवल एक ट्रस्टी है। इसका मतलब है कि सरकार, खदानों के मालिक नहीं हैं। इसी तरह एक्सप्लोरेशन कंपनियां (पीएसयू या निजी) भी खदानों के मालिक नहीं हैं, बल्कि आम लोग इसके मालिक हैं। फिर क्यों यहां के आदिवासी भूखे, बीमार और दिहाड़ी मजदूर बन गए हैं? क्यों उन्हें अपनी ही जमीन के नीचे मिली खदानों पर काम करना पड़ रहा है?
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खान और खनिज संशोधन अधिनियम 2015 में कहा गया है कि सभी राज्यों में एक डिस्ट्रिक्ट मिनरल फाउंडेशन (डीएमएफ) का गठन किया जाए, जिसके फंड का इस्तेमाल खनन प्रभावित स्थानीय लोगों के कल्याण और विकास के लिए किया जाए। अधिनियम में इस फंड का इस्तेमाल संबंधित इलाके में पेयजल आपूर्ति, स्वास्थ्य सेवा, पर्यावरण संरक्षण, शिक्षा, महिलाओं और बच्चों के कल्याण में करने का निर्देश दिया गया है।
अधिनियम में इस फंड के लिए नीलामी की गई खदानों से रॉयल्टी का 10 प्रतिशत (12.01.2015 को या उसके बाद दी गई लीज़ पर) और 12.01.2015 से पहले आवंटित खदानों से रॉयल्टी का 30 प्रतिशत लेने की बात कही गई है. ओडिशा में डिस्ट्रिक्ट मिनरल फाउंडेशन के तहत पूरे देश में सबसे ज्यादा राशि लगभग 12 अरब रुपये जमा की गई है। हालांकि, इसका इस्तेमाल ठीक से नहीं हो पा रहा है।
डीएमएफ का हो रहा है दुरुपयोग
ओडिशा मंत्रिमंडल ने हाल ही में 2023 में पुरुष हॉकी विश्व कप से पहले राउरकेला में एक अंतरराष्ट्रीय हॉकी स्टेडियम के निर्माण के लिए डीएमएफ सुंदरगढ़ से 266 करोड़ रुपए लेने की मंजूरी दी। इसके साथ ही डीएमएफ फंड का इस्तेमाल करते हुए लोगों के मनोरंजन के लिए सुंदरगढ़ में 30.42 करोड़ रुपए की लागत से म्यूजिकल फाउंटेन, एम्फीथिएटर, जॉगिंग ट्रैक, बच्चों के खेलने की जगह, गज़ेबो समेत क्लस्टर सिटिंग का निर्माण किया जा रहा है।
इसके पहले झारसुगुड़ा जिले में जिला प्रशासन ने झारसुगुड़ा हवाई अड्डे के लिए बिजली आपूर्ति से संबंधित कार्यों को डीएमएफ फंड से स्वीकृत किया था। सुंदरगढ़ जिला प्रशासन ने पिछले दिनों डीएमएफ का उपयोग करते हुए 25 पुलिस गश्ती वाहन खरीदे और सर्किट हाउस की चारदीवारी का निर्माण भी किया।
क्योंझर जिले के डीएमएफ फंड का उपयोग कटक में रोगी सुविधा केंद्र, हैंडबॉल स्टेडियम और खेल का मैदान बनाने के लिए किया गया था। सुकिंडा में 500 एकड़ से अधिक जमीन पर अमरूद के पेड़ उगाने के लिए इस फंड के 10 करोड़ रुपये का उपयोग किया जा रहा है, जबकि नगाड़ा गांव तक कनेक्टिविटी के लिए एक उचित सड़क का निर्माण अब तक नहीं किया जा सका है।
इसी तरह, सुकिंडा में स्थानीय लोगों की स्थिति में सुधार के लिए उपयोग किए जाने वाले एक अन्य फंड, ओडिशा खनिज असर क्षेत्र विकास निगम (OMBADC) पर भी कई तरह के सवाल उठ रहे हैं।
OMBADC का गठन साल 2014 में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के अनुसार “खनिज क्षेत्रों के समावेशी विकास को सुनिश्चित करने के लिए विशिष्ट जनजातीय कल्याण और क्षेत्र विकास कार्यों को करने” के लिए किया गया था, लेकिन आरटीआई कार्यकर्ता प्रदीप प्रधान के अनुसार चार वर्षों में खनन प्रभावित जिलों में कुल फंड का केवल एक प्रतिशत ही आदिवासी लोगों के विकास के लिए उपयोग किया गया है। शेष 99 प्रतिशत राशि को विधायी मंजूरी के बिना ही दूसरी जगहों पर खर्च किया गया है।
टाटा स्टील के टाउनशिप और स्टील प्लांट “कलिंगनगर” को राज्य सरकार के सहयोग से सुकिंडा में आदिवासियों की मेहनत के बूते बनाया गया है। जनवरी 2006 में इस संयंत्र के लिए अपनी भूमि के अधिग्रहण का विरोध करने वालों पर पुलिस ने गोली चला दी थी। इस घटना में 13 प्रदर्शनकारियों की मौत हो गई थी। हाल ही में सरकार ने इस मामले की जांच कर रहे आयोग के उस तर्क को स्वीकार किया है जिसमें पुलिस द्वारा गोली चलाने की इस घटना को सही ठहराया गया है।
मूल रिपोर्ट में कहा गया है कि कार्यकारी मजिस्ट्रेट के पास दंगाइयों पर लाइव फायरिंग के लिए आदेश देने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था, क्योंकि भीड़ को डराने और तितर-बितर करने के लिए किए गए अन्य सभी उपाय विफल रहे थे।
विडंबना है कि टाटा स्टील सुकिंडा के कुपोषित बच्चों के लिए एक ग्रीन स्कूल प्रोजेक्ट शुरू करने जा रहा है, ताकि उन्हें पर्यावरण संरक्षण के बारे में पढ़ाया और सिखाया जा सके, हालांकि वहां के बच्चे प्रदूषित हवा और पानी लेने को मजबूर हैं।
अनुवाद- शुभम ठाकुर