डॉ. रहीस सिंह
ट्रंप द्वारा व्हाइट हाउस की कमान संभालने से पूर्व कम से कम भारत द्वारा यह उम्मीद की जा रही थी कि पाकिस्तान के प्रति उनका रवैया अपेक्षाकृत अनुदार रहेगा।
अपने चुनाव प्रचार अभियान के दौरान वे पाकिस्तान के प्रति चूंकि काफी सख्त दिख रहे थे, इसलिए ऐसी उम्मीद लाजिमी भी थी लेकिन राष्ट्रपति पद के लिए चुने जाने से लेकर अब तक पाकिस्तान को लेकर उनकी तरफ से जो संकेत मिल रहा है, वह एक ऐसी अनिश्चित स्थिति को व्यक्त करता है जिसे देखते हुए भारत सही अर्थों में अमेरिका-पाकिस्तान सम्बंधों के मामले में किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सकता। ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि भारत अमेरिका की पाक नीति को किस नजरिए से देखे?
डोनाल्ड ट्रंप की पाकिस्तान नीति के संदर्भ में यहां तीन पक्षों को देखना उचित प्रतीत होता है। एक वह जो पाकिस्तान के प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो द्वारा जारी रीडआउट्स के रूप में सामने आया। दूसरा वह जो कुछ मुस्लिम देशों पर प्रतिबंध लगाने के समय दिखा और तृतीय वह जो पाकिस्तानी संसद के उपसभापति मौलाना अब्दुल गफूर हैदरी के वीजा मामले में दिखा। पहला पक्ष उन रीडआउट्स से जुड़ा है जो 30 नवम्बर को पाकिस्तान के प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो द्वारा जारी किए गए थे। इनके अनुसार, ‘राष्ट्रपति ट्रंप ने प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से कहा था कि आप की काफी प्रतिष्ठा है। आप एक शानदार पुरुष हैं। आप हर तरीके से काफी अच्छा काम कर रहे हैं जो साफ नजर आ रहा है। मैं जल्द ही आपसे मिलने का इंतजार कर रहा हूं।
मैं एक प्रधानमंत्री से बात कर रहा हूं, मुझे महसूस हो रहा है मैं ऐसे व्यक्ति से बात कर रहा हूं जिसे मैं काफी दिनों से जानता हूं।’ यही नहीं ट्रंप ने पाकिस्तान को एक महान देश बताया जहां काफी अवसर हैं। पाकिस्तान के लोगों को सबसे बुद्धिमान लोग करार दिया और पाकिस्तान की समस्याओं के समाधान के लिए हर तरह से तैयार होने का संकेत दिया। इन रीडआउट्स में डोनाल्ड ट्रंप पाकिस्तान के प्रति अपने उस नजरिए से 180 डिग्री घूमे हुए नजर आए जो वे अपने चुनाव के दौरान या उससे पहले से प्रदर्शित कर रहे थे।
राष्ट्रपति ट्रंप ने 27 जनवरी को एक शासकीय आदेश पर हस्ताक्षर कर यह आदेश दिया कि अमेरिकी शरणार्थी कार्यक्रम को 120 दिनों के लिए रोक दिया गया है, सीरियाई शरणार्थियों पर अनिश्चित काल तक के लिए प्रतिबंध लगा दिया गया है और सात मुस्लिम बहुल देशों- ईरान, इराक, लीबिया, सूडान, यमन, सीरिया और सोमालिया के सभी नागरिकों के अमेरिका आगमन को निलंबित कर दिया गया है। ट्रंप के इस आदेश के बाद कुछ लोग यह मान सकते हैं कि ट्रंप शासन आतंकवाद को लेकर कितना गम्भीर है लेकिन क्या ऐसा मानना उचित होगा? हालांकि अमेरिकी अदालत के हस्तक्षेप के चलते मामला फिलहाल अटक गया है, लेकिन उक्त सवाल तो अभी भी बरकरार है। यदि ऐसा है तो फिर इस सूची में पाकिस्तान का नाम क्यों शामिल नहीं किया गया? सबसे अहम प्रश्न यह है कि इस सूची में वही देश क्यों है जो शिया हैं, जबकि इस समय आईएसआईएस के साथ-साथ अलकायदा और तालिबान दुनिया के लिए ज्यादा बड़ी चुनौती बने हुए हैं ?
हालांकि व्हाइट हाउस के शीर्ष अधिकारियों के एक बयान में यह कहा गया था कि पाकिस्तान जैसे कई और देशों को प्रतिबंध सूची में शामिल किया जा सकता है। यानि ट्रंप प्रशासन ने यह संकेत तो दिया है कि पाकिस्तान को उन मुस्लिम बहुल देशों की सूची में डाला जा सकता है, जहां से अमेरिका में होने वाले आव्रजन को राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने प्रतिबंधित कर दिया है। चूंकि अमेरिकी अदालत ने ट्रंप के कार्यकारी आदेशों पर रोक लगा दी है, इसलिए इस प्रकार की किसी भी रोक की संभावनाएं अभी खारिज हो गयीं है लेकिन यह तो सभी जानते हैं कि पाकिस्तान दक्षिण एशिया ही नहीं बल्कि कुछ मायनों में एशियाई आतंकवाद की नाभि है और जब तक इस नाभि के अमृत को खत्म नहीं किया जाता तब तक आतंकवाद के खिलाफ कोई भी युक्ति अथवा लड़ाई सार्थक परिणाम तक नहीं पहुंच सकती।
ध्यान रहे कि भारत अमेरिका सहित कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान में चल रहे आतंकी कैंपों को खत्म करने की मांग करता रहा है। लेकिन भारत के प्रयासों को कभी अमेरिका द्वारा तो कभी चीन के द्वारा लगातार रोका जाता रहा और पाकिस्तान को आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में एक सिपहसालार की तरह से पेश किया जाता रहा।
महत्वपूर्ण बात यह है कि अमेरिका ने पाकिस्तान को उस प्रतिबंधित देशों वाली सूची में शामिल नहीं किया लेकिन पाकिस्तानी संसद के उपसभापति मौलाना अब्दुल गफूर हैदरी को वीजा देने से इनकार कर दिया है। रिपोर्टों के अनुसार ट्रंप प्रशासन की तरफ से ना सिर्फ हैदरी की सरकारी यात्रा का वीजा निरस्त किया गया है बल्कि उसे लंबित भी रखा गया है। दरअसल जमायत उलेमा इस्लाम के महासचिव अब्दुल गफूर हैदरी को 13 और 14 फरवरी को संयुक्त राष्ट्र की तरफ से प्रायोजित इंटरनेशनल पार्लियामेंट यूनियन (आईपीयू) की बैठक के लिए न्यूयॉर्क जाना था, लेकिन अमेरिकी दूतावास की तरफ से वीजा देने से इनकार कर दिया गया। रिपोर्टों पर पर ध्यान दें तो ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि अब्दुल गफूर हैदरी को अमेरिका विरोधी गतिविधियों के लिए जाना जाता है। लेकिन दूतावास की तरफ से ऐसा कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है।
प्रश्न यह उठता है कि क्या अमेरिका का यह फैसला सिर्फ जमायत उलेमा इस्लाम जैसी पार्टी के लिए ही है, या फिर वह ऐसी ही नीति अन्य राजनीतिक नेताओं अथवा सदस्यों के लिए अपनाएगा? यदि ट्रंप प्रशासन वास्तव में पाकिस्तान और पाकिस्तान आधारित चरमपंथ को लेकर इतना ही सख्त है तो फिर उसने उन सात देशों में पाकिस्तान को शामिल क्यों नहीं जिन ट्रैवेल प्रतिबंध लगाया गया था? अगर कुछ दिन पीछे जाएं तो ट्रंप आपको यह कहते दिखेंगे कि पाकिस्तान हमारा दोस्त नहीं है। हमनें पाकिस्तान को बिलियन डॉलर्स दिए हैं और हमें क्या मिला? बेइज्जती और धोखा और इससे भी बहुत बुरा। ट्रंप ने हमेशा अमेरिका में बसे मुसलमानों को देश में आने की पाबंदी की बात की और चरमपंथी इस्लामिक आतंकवाद फैलाने वाली उन सभी जगहों से मुसलमानों के अमेरिका आने पर पाबंदी की बात की थी जो आतंकवाद का गढ़ हैं जिसमें पाकिस्तान भी शामिल था। वे पाकिस्तान में आतंकवादी ठिकानों को लेकर भी काफी उग्र दिखे थेे। फिर पाकिस्तान को प्रतिबंधित सूची में शामिल क्यों नहीं किया गया? क्या हमें एक सांसद को अमेरिकी वीजा न मिलने मात्र से यह संतुष्टि कर लेनी चाहिए कि अमेरिका का पाकिस्तान के प्रति नजरिया बदल रहा है?
बहरहाल अमेरिका अभी तक पाकिस्तान के प्रति अपना नजरिया बदलता हुआ नहीं दिख रहा है। हालांकि पाकिस्तान अमेरिकी नीतियों को लेकर इस्लामी दुनिया का नेता स्वयं को घोषित करने की छद्म कवायद कर रहा है। ध्यान रहे कि पाकिस्तान ने अमेरिका की ट्रैवल प्रतिबंध नीति की आलोचना यह कहकर की थी कि पूरी दुनिया में करीब 1.5 अरब मुस्लिम हैं।
ऐसे में अमेरिका की पाकिस्तान नीति पर अभी कोई निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता। अगर हम किसी निष्कर्ष पर पहुंचाना ही चाहते हैं तो पहले यह समझना होगा कि जिन डोनाल्ड ट्रंप को उन्मादी, कट्टर राष्ट्रवादी, आतंकवाद के दमनकर्ता के रूप में देखा जा रहा है वे वास्तव में अमेरिकी मिलिट्री इण्डस्ट्रियल काम्प्लेक्स के पैरोकार हैं। इसी मिलिट्री इण्डस्ट्रियल काम्प्लेक्स ने तानाशाहों से लेकर अल-कायदा तक को पैदा किया, प्रशिक्षित किया और इन्हें खत्म करने के ‘वॉर इनड्यूरिंग फ्रीडम’ जैसे छद्म युद्ध लड़े हैं।
(लेखक आर्थिक व राजनीतिक विषयों के जानकार हैं। ये उनके निज़ी विचार हैं।)