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उज्जवला 2.0 से देश में ऊर्जा की कमी दूर की जा सकती है, लेकिन आसानी से उपलब्ध, जागरूक और आर्थिक मदद की जरूरत होगी

80 मिलियन से ज्यादा उज्ज्वला कनेक्शन पहले ही बांटे जा चुके हैं। यूनियन बजट 2021 से इस योजना का फायदा और 10 मिलियन लोगों मिला। लेकिन लाभार्थियों का एक बड़ा वर्ग खाना बनाने के लिए ईंधन के रूप में एलपीजी का इस्तेमाल करने में असफल रहा है, इसे बदलने की जरूरत है।
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अजय सिंह नागपुरे, मणिभूषण झा और यश खंडेलवाल

प्रधानमंत्री मोदी ने हाल ही में उज्जवला 2.0 लॉन्च किया, जिसके माध्यम से लाभार्थियों को एलपीजी (लिक्विफाइड पेट्रोलियम गैस) कनेक्शन के साथ पहली रिफिल और एक गैस चूल्हा मुफ्त मिलेगा। यह इस संदर्भ में महत्वपूर्ण हो जाता है कि भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा ऊर्जा खपत वाला देश है।

2000 के बाद से हमारी ऊर्जा का उपयोग दोगुना हो गया है। 80 प्रतिशत मांग अभी भी कोयले, तेल और ठोस बायोमास द्वारा पूरी की जाती है। प्रति व्यक्ति आधार पर भारत का ऊर्जा उपयोग और उत्सर्जन विश्व औसत के आधे से भी कम है। स्वच्छ और टिकाऊ ऊर्जा के लक्ष्य के मामले में भी हम काफी पीछे हैं।

लगभग 65 फीसदी भारतीय परिवार अत्यधिक ऊर्जा से दूर हैं। ऊर्जा गरीबी एक ऐसा मुद्दा है जो इससे जुड़ी सामाजिक-आर्थिक समस्याओं से निपटने के लिए तत्काल ध्यान देने की मांग करता है। ‘ऑवर वर्ल्ड इन डेटा’ में उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, भारत की प्रति व्यक्ति ऊर्जा खपत 6,924 किलोवाट घंटा (kWh) है, जबकि विश्व औसत लगभग 21,027 kWh है, जो तीन गुना अधिक है।

इसके अलावा, ग्रामीण और शहरी ऊर्जा खपत के बीच भी एक बड़ा अंतर है। शहरी भारत में घरेलू ऊर्जा गरीबी सूचकांक (HEPI) 2.1 है जबकि ग्रामीण भारत के लिए सूचकांक 3.1 है। आंकड़े बताते हैं कि ग्रामीण आबादी वाले भारत में पर्याप्त बिजली आपूर्ति और स्वच्छ ऊर्जा ईंधन की कमी है, जिसके परिणामस्वरूप स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों को प्रभावित करने वाले अस्थिर ऊर्जा स्रोतों पर निर्भरता है। शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच यह भेदभाव ऊर्जा समानता और न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है।

आर्थिक समानता के लिए देश में प्रत्येक घर को सस्ती और विश्वसनीय ऊर्जा प्रदान करना बेहद जरूरी है। यह पर्यावरण के साथ-साथ नागरिकों के स्वास्थ्य और भलाई के लिए जरूरी हैं।

उज्जवला ने स्वच्छ ईंधन का वादा किया

इन उद्देश्यों के साथ प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना ने भारतीय आबादी के वंचित वर्गों तक स्वच्छ ईंधन की पहुंच बनाई है। उज्ज्वला उन प्रमुख योजनाओं में से एक है जिसका उद्देश्य देश के अंदर ऊर्जा खपत को बढ़ाना है, जो भारत की तुलना में दुनिया में तीन गुना ज्यादा है।

उज्जवला योजना का लक्ष्य बायोमास (कोयला, जलाऊ लकड़ी, फसल अवशेष, लिग्नाइट) और मिट्टी के तेल की खपत को कम करके उसके स्थान पर स्वच्छ एलपीजी का उपयोग, प्रति व्यक्ति बढ़ावा देना है। आर्थिक रूप से कमजोर घरों में भी प्रति व्यक्ति ऊर्जा की खपत बढ़ी है। उज्ज्वला योजना देश में ऊर्जा गरीबी की स्थिति को कम करने में सफल हो सकती है।

80 मिलियन से ज्यादा उज्ज्वला कनेक्शन पहले ही बांटे जा चुके हैं। यूनियन बजट 2021 से इस योजना का फायदा और 10 मिलियन लोगों मिला। यह पहुंच को और बढ़ाएगा और अपने नागरिकों के लिए ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए भारत को करीब लाएगा।

उज्ज्वला योजना को मजबूत बनाना होगा

हालांकि उज्ज्वला योजना और इसी तरह की सौभाग्य योजना ने आबादी के बड़े हिस्से में ऊर्जा सुरक्षा पैदा करने के लिए कदम उठाए हैं, लेकिन एक मजबूत ऊर्जा वितरण प्रणाली बनाने के लिए अभी भी कई चुनौतियां मौजूद हैं।

जबकि इस योजना ने स्वच्छ ऊर्जा तक पहुंच बढ़ा दी है और महिला सशक्तिकरण का नेतृत्व किया है। आंकड़ों से पता चलता है कि भारत में ऊर्जा गरीबी को दूर करने के लिए और प्रयासों की जरूरत है। घरेलू स्तर पर स्वच्छ ऊर्जा की खपत बढ़ाने के लिए उज्ज्वला योजना की पहुंच का सकारात्मक उपयोग किया जा सकता है।

गरीबों तक किफायती और स्वच्छ ईंधन पहुंचाने के लिए यह योजना है तो बहुत अच्छी लेकिन एलपीजी उपयोग को सुनिश्चित करने के लिए नीति और रणनीतियों पर फिर से विचार करने की जरूरत है।

पीएमयूवाई लाभार्थियों का एक बड़ा वर्ग जिन्हें एक कनेक्शन भी दिया गया है, एलपीजी के उपयोग से नियमित खाना पकाने के मामने में पीछे रहे हैं या इसे ईंधन कम यूज किया गया है। इसके पीछे की वजह ज्यादा रसोई गैस महंगा होना ही नहीं है। कम आय वाले परिवारों ने पिछले साल के लॉकडाउन चरण के दौरान छह महीने में सरकार द्वारा दी गई 240 मिलियन मुफ्त रसोई गैस रिफिल में से केवल 60 प्रतिशत का उपयोग किया है।

इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन के एक सर्वे के अनुसार जिन लोगों ने मुफ्त रिफिल का लाभ नहीं उठाया है, उन्होंने एडवांस में मिले उन पैसों को कहीं खर्च कर दिय। 40 प्रतिशत लोग तो ऐसे भी रहे जिनके घर में रिफिल ऑर्डर करने के लिए खाली सिलेंडर नहीं था। फ्री में सिलेंडर मिलने के बावजूद जागरुकता की कमी के कारण लोगों ने इसका लाभ नहीं उठाया।

उज्जवला के माध्यम से ऊर्जा की कमी को दूर करने के लिए ईंधन स्टैकिंग, यानी एक ही परिवार द्वारा कई ईंधन का उपयोग करना एक महत्वपूर्ण चुनौती है। नेचर एनर्जी के आंकड़ों को देखें तो पीएमयूवाई के कुल लाभार्थियों में से 56 फीसदी बायोमास का इस्तेमाल एलपीजी के साथ खाना पकाने के ईंधन के रूप में करते हैं।

फ्यूल स्टैकिंग एलपीजी सिलेंडरों की रिफलिंग में रुकावट की प्रमुख वजह है। इस मुद्दे के प्रमुख कारण पारंपरिक ईंधन से एलपीजी में बदलाव, ईंधन की कीमतों, पीडीएस प्रणाली की अक्षमता, शिक्षा की कमी, ईंधन चयन में महिलाओं की भागीदारी, पहुंच और घर के खर्च में बढ़ोतरी है।

हालांकि, ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद (सीईईडब्ल्यू) द्वारा राज्यों के एक सर्वेसे यह भी पता चलता है कि पारंपरिक ईंधन (INR 563) खरीदने वाले परिवारों का औसत मासिक खर्च उन परिवारों की तुलना में अधिक था जो विशेष रूप से एलपीजी (INR 385) पर निर्भर थे। इससे पता चलता है कि पारंपरिक ईंधन उतना आसान और सस्ता नहीं हो सकता जितना माना जाता है।

पीएमयूवाई में सुधार

तो, समाधान कहाँ है? स्वच्छ भारत मिशन का सफल क्रियान्वयन हमें कुछ महत्वपूर्ण बताते हैं। खुले में शौच मुक्त (ओडीएफ) अभियान (1.0 से 2.0) के माध्यम से सरकार ढंग के शौचालय बनाने की पहल की और लोगों की सोच बदलने पर भी काम किया।

प्रधान मंत्री स्वयं कम्युनिकेटर-इन-चीफ बन गए, और विभिन्न क्षेत्रों से कई मशहूर हस्तियों को शामिल किया गया। स्वच्छ ईंधन को अपनाने की व्यवहारिक चुनौती से निपटने के लिए इसी तरह के दृष्टिकोण को अपनाया जा सकता है। एलपीजी के उपयोग से महिला सशक्तिकरण जैसे अभियानों में अधिक जोर देने की आवश्यकता है।

ऐसे कई राज्य हैं जहां पिछले कुछ वर्षों में एलपीजी के उपयोगकर्ता बढ़े हैं। उदाहरण के लिए, पश्चिम बंगाल में यह 44 प्रतिशत, बिहार में 23 प्रतिशत और झारखंड में 18 प्रतिशत है। इन राज्यों में सफलता के कारणों को समझने के लिए एक अध्ययन की आवश्यकता है।

बिहार में सीतामढ़ी जिले की ममता देवी के लिए, जिन तत्वों ने उन्हें विशिष्ट एलपीजी उपयोगकर्ता बनाया, वे सामाजिक प्रतिष्ठा और अधिकारिता से संबंधित हैं। पहले, एलपीजी का उपयोग करना केवल उच्च वर्ग के परिवारों के लिए उपलब्ध विशेषाधिकार के रूप में अधिक था। लेकिन जब उन्हें उज्ज्वला कनेक्शन मिला, तो उन्होंने खुद को सशक्त महसूस किया और उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई। यही कारण है कि वे अब खाना पकाने के लिए केवल एलपीजी का ही उपयोग करती हैं।

उपलब्धता की परेशानी पर भी ध्यान देने की जरूरत है। एलपीजी कलेंक्शन सेंटर गांवों में ठीक से उपलब्ध नहीं होते हैं। भारतीय गांवों में एलपीजी की उपलब्धता बढ़ाने के लिए ‘सामुदायिक सेवा केंद्रों’ (सीएससी) के अनुभवों का उपयोग किया जा सकता है।

लेकिन वित्तीय संसाधनों की कमी की एक और चुनौती पर सरकार के समर्थन की आवश्यकता है, जो या तो आय सहायता (डीबीटी के माध्यम से) दे सकती है या उज्ज्वला उपयोगकर्ताओं को सब्सिडी प्रदान कर सकती है।

स्मार्ट सिटी, स्वच्छ भारत आदि जैसे मिशनों के साथ, शहरी क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया गया है। लेकिन स्वच्छ ऊर्जा में भारत की सफलता तभी सुनिश्चित होगी जब वह समय पर ग्रामीण आबादी तक पहुंचेगा। भारत की आत्मा अभी भी गांवों में रहती है।अ

(अजय सिंह नागपुरे एयर पॉल्यूशन एंड सस्टेनेबल सिटीज, डब्ल्यूआरआई इंडिया के हेड हैं। मणिभूषण झा ने हाल ही में विली ब्रांट स्कूल ऑफ पब्लिक पॉलिसी, जर्मनी से सार्वजनिक नीति में स्नातक किया है। यश खंडेलवाल एमिटी विश्वविद्यालय में जैव प्रौद्योगिकी के छात्र हैं और एक विज्ञान पत्रकार भी हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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