बमों की भी मां होती है। वो भी सारे बमों की जिसे मदर ऑफ़ ऑल बॉम। नाम तो इसका मैसिव आर्डिनेंस एयर बम है लेकिन सारे बमों की मां कहते हैं। हिरोशिमा में जो गिरा था वो शायद बमों का बाप रहा होगा। ये मां गिरी है।
अभी तक लगता है, बमों के माता पिता कहीं शिमला गए थे, इस बीच उनके छोटे छोटे चुन्नू मुन्नू बम कभी अफ़ग़ानिस्तान में तो कभी सीरिया में गिर कर फूट फाट जा रहे थे। जब से सुना हूं कि अमरीका ने MOAB गिरा दिया है, जिसका मतलब मदर ऑफ़ ऑल बॉम होता है, तब से बमों के ख़ानदान को लेकर चिंतित हूं। क्या पता किसी रोज़ नौ हज़ार टन का कोई लगा चाचा बम आ गिरे। आपका शहर ग़ुबार से भर जाए।
अफ़ग़ानिस्तान की उन पहाड़ियों पर गिराया गया है जहां आई-सीस के आतंकी छिपे थे। ये अमरीका का दावा है और उसी का इंसाफ़। बताया जा रहा है कि बमों की इस मम्मी की क्षमता परमाणु बम जैसी है। माएं इतनी ख़ूखांर ख़तरनाक होने लगी हैं। हमने इतने युद्ध की ख़बरें देखी हैं, मगर बमों की इस मां के बारे में अभी सुन रहा हूं। जैसे भारत में न्यायिक और ग़ैर न्यायिक होता है, राजनीतिक और ग़ैर न्यायिक राजनीतिक होता है, सरकारी और ग़ैर सरकारी होता है, उसी तरह से बमों के ख़ानदान में परमाणु बम होता है, ग़ैर परमाणु बम होता है।
2003 में अमरीका ने फ़्लोरिडा में जब इसका परीक्षण किया था तो बीस मील दूर से इसका गर्द आसमान में दिख रहा था। ओबामा काल में ये बम माता अफ़ग़ानिस्तान चली गई थी। कल इसने रौद्र रूप धारण कर लिया। पहाड़ों को बर्बाद कर देने की क्षमता रखने वाला यह बम अफ़ग़ानिस्तान में कई साल से गिरने के इंतज़ार में था। अमरीका सुपर पावर बना रहे, इसके जैसा बनने का सपना बना रहे। आतंकी को मारने के नाम पर ये मां आई है तो जग स्वागत करेगा।
ट्रंप साहब के लोग चुनाव पर हिलेरी पर आरोप लगाते थे कि अमरीका ने आई सीस पैदा किया। अब वही ट्रंप सारे बमों की मां गिरा कर आईसीस मिटा रहे हैं। ख़ैर छोड़िये इन बातों को। इस बम का दुनिया जश्न मनाएगी। वो अपने अंदर ताकत का संचार महसूस करेगी। भारत में लोग ऐसे बमों का सपना देखेंगे। शर्म करेंगे कि सत्तर साल में हम बमों की माँ नहीं बना सके। अब तक तो हमारे पास बमों के परदादा, परनानी होनी चाहिए थी। अब हम रोटी बोटी भूल कर नेताओं को कोसेंगे कि ऐसा बम हमारे यहां नहीं बना। जल्दी ही भारत इस सपने को पूरा करेगा। कोई नेता ट्वीट करेगा, तब तो चर्चा में रहेगा।
इस बम के गिरने से आबो हवा को क्या नुक़सान पहुंचा, इन सबके चक्कर में मत पड़िएगा। वर्ना लोग गरियायेंगे कि आतंकी का समर्थन कर रहे हैं। ये कौन से आतंकी हैं जिन्हें कई महीनों की बमबारी में मिटाया नहीं जा सका है। कहां से इन्हें हथियार मिलते हैं और भेड़ बकरी की तरह मरने के लिए लोग। इन सबकी राजनीति है और खेल है। कैसे ये आई सीस वाले अभी तक साधन संपन्न बचे हैं, समझ नहीं आता। एक ज़माना था जब रसायनिक हथियार का भूत खड़ा कर बम गिराये गए, इस ज़माने में आतंक के नाम पर गिराये जा रहे हैं। ब्रिटेन की सरकारी कमेटी ने पिछले साल आठ साल की छानबीन के बाद कहा था कि इराक़ में रसायनिक हथियार होने की बात ग़लत थी। झूठ फैलाई गई थी।
बहरहाल, चैनलों पर अब इस बम की कहानी ख़ूब चलेगी। टीआरपी का ऐसा विस्फोट होगा कि पूछिये मत। मूल सवालों को छोड़ बम का बखान चलेगा। ग्राफिक्स और बैकग्राउंड म्यूज़िक के ज़रिये दिन रात बम की कथा बांची जाएगी। ये बम वो बम। अपना तो बस बोल बम। अमरीका ने ये बम गिरा कर चैनलों को कुछ काम दे दिया है। आप टीवी देखिये। सारे बमों की मां आई है। वो यहां अफ़ग़ानिस्तान में गिरी है, उसके पीछे उसके बच्चे कहां कहां गिर रहे होंगे, कौन जानता है।
हम तो सोचा करते थे कि बमों के ख़ूंख़ार बाप हुआ करते होंगे या ये बिन मां बाप की औलाद होते होंगे पर सारे बमों की एक मां है, ये तो पता नहीं था। इसके धमाके का असर भारत के चैनलों में दिखेगा। एंकर बमंकर हो जायेंगे। रिटायर सेनापतियों का स्वागत करेंगे। एक से एक बमाचार्य, बमाधिपति आपको बम पुराण सुनायेंगे।
(लेखक एनडीटीवी में सीनियर एग्जीक्यूटिव हैं ये उनके निजी विचार हैं)
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