विश्व रेडियो दिवस: जब रेडियो हमारी जिंदगी का एक जरूरी हिस्सा हुआ करता था

विश्व रेडियो दिवस पर, मैं आप सभी को चालीस साल पीछे लिए चलती हूं, जब रेडियो पर प्रसारित होने वाली क्रिकेट कमेंट्री, समाचार बुलेटिन जिंदगी का अहम हिस्सा हुआ करते थे।

Nidhi JamwalNidhi Jamwal   13 Feb 2023 11:52 AM GMT

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विश्व रेडियो दिवस: जब रेडियो हमारी जिंदगी का एक जरूरी हिस्सा हुआ करता था

रविवार की वो सुबह बहुत खास होती थी। बात चालीस साल पहले की है, लेकिन लगता है जैसे कल की ही बात हो।

मैं पाँच बरस की थी। मेरे पिता के हल्के भूरे रंग के 'ट्रांजिस्टर' पर बजने वाली आकाशवाणी की सिग्नेचर ट्यून सुनकर जगते थे, जब घोषणा होती थी कि आज रविवार की सुबह है, जिसका मतलब था कि यह वह दिन था जब मेरे पापा हमारे साथ खेलने, कागज के खिलौने बनाने और इस्तेमाल किए गए चेरी ब्लॉसम शू पॉलिश के खाली डिब्बों से तराज़ू बनाते थे, जिसे लेकर तब मैं और मेरी बड़ी बहन अपने कॉलोनी के दोस्तों के सामने इठलाते थे।

उन सुबहों में, मैं आंधी नींद में बिस्तर से उठती थी और AIR (ऑल इंडिया रेडियो) की सिग्नेचर धुन सुनकर पापा के पास जाती थी। मैंने अक्सर उन्हें रेडियो पर बजने वाले समाचार बुलेटिन के साथ पानी की बाल्टी भरते देखा।

उन्होंने एक भी न्यूज बुलेटिन मिस नहीं किया। हम जम्मू और कश्मीर के रियासी जिले में ज्योतिपुरम नामक एक छोटी सी पहाड़ी बस्ती में रहते थे और रेडियो बाहरी दुनिया के साथ हमारी एकमात्र कड़ी थी जिसे हम पहाड़ी बच्चों को अभी तलाशना था।


मेरे पिता का ट्रांजिस्टर उनका सबसे पसंदीदा साथी था, खासकर क्रिकेट मैचों के दौरान जब हमारा दो बेडरूम का क्वार्टर ग्राफिक क्रिकेट कमेंट्री से गूंजता था। जब भारत ने मैच जीता तो जश्न जोरों पर होता था।

ज्यादातर गर्मी की छुट्टियां मेरे नानाजी के यहां 100 किलोमीटर दूर जम्मू में बीतती थीं। मैं और मेरे चचेरे भाई चूल्हे पर खाना बनाते थे, नहर में डुबकी लगाते थे, नाचते-गाते थे और गर्मी की रातें तारों वाली रात के नीचे छत पर बिछी चारपाई पर बिताते थे।

मेरे नाना जी, जिन्हें हम प्यार से बाजी कहते थे, के पास भी एक ट्रांजिस्टर भी था, जो हमेशा उनके बिस्तर के ठीक पीछे खिड़की की चौखट पर लगा रहता था। मेरे पिता के हल्के भूरे रंग के रेडियो के विपरीत, मैं वास्तव में कभी नहीं जान पायी कि वो किस रंग का था क्योंकि बाजी का रेडियो मोटे चॉकलेटी भूरे रंग के कवर से ढका हुआ था।

बाजी की शामें उनके ट्रांजिस्टर के साथ बीतती थीं, और अगर हम उनके कमरे के बाहर खेलते समय बहुत अधिक शोर करते थे, जब उनका समाचार बुलेटिन चालू होता था, तो हमें डांट भी लगाई जाती थी। इसके बाद कुछ मिनटों के लिए हम सब शांत हो जाते थे, कुछ देर में फिर शरारत भरी हंसी गूंज उठती थी।

फिर हमारे किशोरावस्था के दिन आए - पहली बार किसी पर क्रश आया हो, जब दिल तेजी से धड़कता शुरू करना था, पेट में गुदगुदी सी होती है और रेडियो पर गाने दिल की धड़कन पर थिरकते। और अगर आपका क्रश आपके घर के सामने से गुजरे, और तभी रेडियो पर कोई रोमांटिक गाना बजे, तब वो दिन और खास हो जाता था।

उस समय की कई शामें मेरी सबसे अच्छी दोस्त के घर के बाहर सीढ़ियों पर बैठकर उसके पिता के ट्रांजिस्टर को गोंद में रखकर बीतती थीं। अमीन सयानी के साथ बिनाका गीतमाला और उनकी अमर आवाज हमारी पसंदीदा थी। पहाड़ी शहर में अक्सर रेडियो तरंगें थम जाती थीं और मैं खुद से कहती था कि जिस दिन मैं बड़ी दुनिया में जाऊंगी मैं रेडियो पर अपने पसंदीदा गाने सुनुंगी।

फिर, 1990 के दशक की शुरुआत में, हम दिल्ली चले गए और मैंने रेडियो से नाता तोड़ लिया। रंगीन टेलीविजन लोकप्रिय हो गया था और 'केबल' टीवी पर ही दिन रात गुजरती थी। गानों के लिए टेप रिकॉर्डर था। घर से ऑफिस तक के लंबे सफ़र में सिर्फ रेडियो का साथ होता था, जिससे ट्रैफिक जाम को सह पाते थे।

मैं अब मुंबई में रहती हूं और अक्सर वीकेंड की रातें शहर में गाड़ी चलाते हुए रेडियो पर गाने सुनते हुए बीतती हैं। मैं अपने पसंदीदा गाने के बजने का इंतजार करती हूं और जब यह चलता है, तो मुझे लगता है कि पूरे गाने को सुनने के लिए कुछ किलामीटर गाड़ी चलाने में क्या हर्ज है। यह एक ऐसा अनुभव है जिसे शब्दों में बयां करना मुश्किल है।

रेडियो की ये सारी यादें पिछले अगस्त में मेरी आंखों के सामने तब कौंधीं, जब भारत के 76वें स्वतंत्रता दिवस पर गाँव कनेक्शन ने अपना इंटरनेट आधारित रेडियो - गाँव रेडियो - ग्रामीण भारत का एक राष्ट्रीय ऑडियो स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म लॉन्च किया।

पिछले दस सालों से गाँव कनेक्शन वीडियो और टेक्स्ट स्टोरीज और ग्राउंड एक्टिवेशन के जरिए ग्रामीण भारत की आवाज को मजबूत कर रहा है। लेकिन भारत के गाँवों में ऐसे लोग हैं जो निरक्षर हैं और हमें लगा कि रेडियो उन तक पहुंचने का शक्तिशाली माध्यम हो सकता है। इसने उनकी आवाज भी दर्ज की और उन्हें सत्ता के गलियारों में सुना, जहां ग्रामीण भारत के लिए नीतियां बनाई जाती हैं।

गाँव कनेक्शन की वेबसाइट पर गाँव रेडियो को 24*7 सुना जा सकता है। हमारे पास अपने श्रोताओं के लिए विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम हैं, जिनमें खेती पर सलाह और स्वास्थ्य पर चर्चा से लेकर देश के विभिन्न कोनों की कहानियां और लोकगीत शामिल हैं। मेरी मातृभाषा डोगरी में गाने भी अक्सर गाँव रेडियो पर बजाए जाते हैं।

हाल ही में गाँव कनेक्शन ने ग्रामीण और आदिवासी भारत पर ध्यान देने के साथ देश भर के शिक्षकों और शिक्षकों की कहानियों को दर्ज करने के लिए एक खास मुहिम शिक्षक कनेक्शन की शुरुआत की। शिक्षकों की इन कहानियों और आवाजों को प्रसारित करने के लिए हम गाँव रेडियो का उपयोग कर रहे हैं।

सभी तकनीकी विकास के बावजूद, रेडियो, जनसंचार के सबसे पुराने साधनों में से एक, प्रासंगिक बना हुआ है। आज की दुनिया में, जो जलवायु परिवर्तन और बढ़ती मौसम की घटनाओं से प्रभावित है, रेडियो सूचना प्रसार के लिए सबसे विश्वसनीय साधन बना हुआ है और इसने आपदाओं के समय लोगों की जान भी बचाई है।

विश्व रेडियो दिवस की शुभकामनाएं!

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