ये लोग प्राथमिक शिक्षा का मटियामेट करके छोड़ेंगे

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ये लोग प्राथमिक शिक्षा का मटियामेट करके छोड़ेंगेgaonconnection

पिछला सत्र 31 मार्च को समाप्त करा दिया गया क्योंकि उसमें कुछ खर्चा तो होता नहीं। परीक्षाफल बनाने और परिणाम निकालने में पुराने ही समय की भांति 20 मई आ गई और हो गया ग्रीष्मावकाश। पहले की ही भांति एक जुलाई को फिर स्कूल खुले और अब एक महीना बीत चुका है। किताबें न तब बांटी गईं और न अब बटीं। किताबों के नाम और प्रकाशक बता दिए होते तो अभिभावक खरीद भी सकते थे। किताबें न तो बांटेंगे और न बच्चों को खरीदने देंगे। सत्र अवधि तितर-बितर करने से क्या मिला, यह तो मैं नहीं जानता लेकिन चार महीने का समय बर्बाद हुआ यह जानता हूं। आखिर ग्रामीण शिक्षा का मटियामेट जो करना है।

बच्चों को दिया जाने वाला वज़ीफा तो पहले से ही बन्द पड़ा है और कुछ समय से स्कूल ड्रेस भी नहीं मिल रही है। शायद लोगों के लिए ये सब कमाई का अच्छा धन्धा नहीं रहा। कुछ दिनों तक बच्चे फल, मिठाई और दूध की उम्मीद में आते रहे लेकिन उधर से भी मायूसी दिख रही है। खेल का सामान भी नहीं दिखाई देता इसलिए समय बिताने के लिए उनके पास बेहतर साधन भी नहीं है। गाँव के बच्चों का समय धान रोपाई में बीत जाता है।गाँव के स्कूलों में अध्यापकों के पद जो खाली हैं उनके लिए अभ्यर्थी शायद अधिकारियों को सन्तुष्ट नहीं कर पाते और पद रिक्त ही रहते हैं। यदि प्राथमिक अध्यापकों के लिए चयन आयोग होता तो शायद ग्रीष्मावकाश में अध्यापकों के रिक्त पद भर लिए गए होते लेकिन आयोग बनने के बाद अधिकारियों का चरागाह समाप्त हो जाएगा इसलिए आयोग का गठन नहीं होने देते।

गाँव के प्राइमरी स्कूलों में पांच कक्षाओं पर एक या कभी दो अध्यापक रहते हैं। वे भी यदि पूरे समय पढ़ाएं तो अन्तर आ सकता है। सरकारी अध्यापकों में हड़ताल करने की आदत बढ़ रही है। पंचायत स्तर पर नियुक्त शिक्षामित्र भी लामबन्द हो चुके हैं वेतन बढ़ाने और नियमितीकरण के लिए।पुराने समय में छोटी कक्षाओं में गाँव के बच्चों की पढ़ाई कापियों के अभाव में नहीं रुकती थी। उनके पास लकड़ी की एक तख्ती रहती थी जिसे घोटपोत कर चमकाना होता था। इस बात पर कॉम्पिटीशन होता था किसकी तख्ती अधिक चमाचम है। एक मिट्टी का बुदिका यानी दवात होती थी जिसमें खड़िया यानी चॉक घोलकर सेंठा की कलम से तख्ती पर लिखते थे। मुझे याद है एक दिन स्कूल जाते हुए मैं गिर गया था और मेरा बुदिका फूट गया था। मुंशी जालिम सिंह ने इम्ला बोलना शुरू किया तो मैं बुदिका के दो टुकड़े सामने रखकर उसमें बची खड़िया से लिखने की कोशिश कर रहा था, मुंशी जालिम सिंह ने देख लिया तो सामने वाले बच्चे से बुदिका मेरे साथ शेयर करने को कहा। प्राइमरी शिक्षा की गुणवता सुधारने के लिए वैधानिक रुकावटें दूर करके राष्ट्रीय रोजगार गारन्टी अधिनियम 2005 को शिक्षा के अधिकार अधिनियम 2005 के साथ जोड़ा जा सकता है। उस स्थिति में रोजगार गारन्टी स्कीम में फावड़ा चलाने वाले मजदूर भी होंगे और स्थानीय स्तर पर उपलब्ध शिक्षित बेरोजगार भी। ऐसे युवक ग्राम प्रधान द्वारा नियुक्त होकर उसी की देख-रेख में प्राइमरी स्कूलों में शिक्षकों की कमी पूरा करेंगे लेकिन शिक्षा अधिकारी विकेन्द्रीकरण कतई नहीं होने देंगे क्योंकि उनका चरागाह चला जाएगा।जब तक बेसिक शिक्षा अधिकारी का पद समाप्त नहीं होगा कोई सुधार सम्भव ही नहीं है। यहीं से ट्रांस्फर और पोस्टिंग का व्यापार चलता है और नियुक्तियों का धंधा भी। अध्यापकों की नियुक्ति के लिए आयोग न बनने देना भी इसी रैकेट का भाग है। यदि आयोग का गठन हो जाए और तबादले मंडल स्तर पर हों तो कुछ सुधार हो सकता है लेकिन तब ग्रामीण शिक्षा का मटियामेट कैसे कर पाएंगे।

 

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